सागरमाला परियोजना | 14 Mar 2020
भारतीय बंदरगाह बुनियादी ढाँचा संरचना के विकास तथा माल ढुलाई आवाजाही आदि के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में जहाँ रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 9% और सड़क परिवहन की 6 % है, वहीं बंदरगाहों का हिस्सा लगभग 1% के आस-पास है। वर्तमान समय में भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90% से अधिक हिस्सा संभालते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बंदरगाहों के बुनियादी ढाँचें को विकसित करने के लिये वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा सागरमाला परियोजना की शुरुआत की गई।
नोट- यह मानचित्र जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन से पूर्व की स्थिति को दर्शाता है
परियोजना के बारे में
- सागरमाला परियोजना केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गई योजना है जो बंदरगाहों के आधुनिकीकरण से संबंधित है।
- हालाँकि इस परियोजना की परिकल्पना सर्वप्रथम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 15 अगस्त, 2003 को प्रस्तुत की गई थी।
- इस योजना द्वारा 7500 किमी. लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
- इस योजना में 12 स्मार्ट शहर तथा विशेष आर्थिक ज़ोन को शामिल किया गया है।
- योजना के अंतर्गत आठ तटीय राज्यों को चिन्हित किया गया है जिनमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
- केंद्रीय शिपिंग मंत्रालय को इस योजना की नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।
परियोजना के उद्देश्य
- बंदरगाहों के आस-पास प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विकास को प्रोत्साहन देना।
- तटीय आर्थिक क्षेत्र में बसे लोगों के सतत् विकास को प्रोत्साहित करना।
- देश के बड़े तटवर्ती शहरों को बेहतर सड़क मार्ग,वायु मार्ग,तथा समुद्री मार्ग से जोड़ना।
- बंदरगाहों से माल की आवाजाही के लिये किफायती, त्वरित और कुशल बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराना।
- नए बंदरगाहों का विकास तथा पुराने बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करना।
परियोजना के मुख्य स्तंभ
सागर माला परियोजना के तहत विकास प्रक्रिया को तीन मुख्य स्तंभों पर केंद्रित कर संपन्न किया जाएगा। ये तीन प्रमुख स्तंभ इस प्रकार हैं-
- भीतरी क्षेत्रों से बंदरगाहों तक तथा बंदरगाहों से भीतरी क्षेत्रों तक माल निकासी व्यवस्था को सुगम बनाना।
- बंदरगाह अवसंरचना में वृद्धि करना जिनमे बंदरगाहों का आधुनिकीकरण तथा नये बंदरगाहों का निर्माण शामिल है।
- उपयुक्त नीति और संस्थागत हस्तक्षेपों के माध्यम से पोर्ट लीड विकास (Port-led Development) का समर्थन करना तथा उसे अधिक सक्षम बनाना साथ ही एकीकृत विकास को सुनिश्चित करने के लिये अंतर-एजेंसी और मंत्रालयों / विभागों / राज्यों के माध्यम से संस्थागत ढाँचा उपलब्ध कराना।
परियोजना के चार रणनीतिक पहलू:
- घरेलू कार्गों की लागत घटाने के लिये मल्टी-माॅडल ट्रांसपोर्ट को विकसित करना।
- निर्यात-आयात कार्गो लॉजिस्टिक्स में लगने वाले समय एवं लागत को कम करना।
- बल्क उद्योगों को कम लागत के साथ स्थापित करना तथा कर लागत में कमी करना।
- बंदरगाहों के पास पृथक विनिर्माण क्लस्टरों की स्थापना कर निर्यात के मामले में बेहतर प्रतिस्पर्द्धी क्षमता प्राप्त करना।
परियोजना का महत्त्व:
- वर्तमान समय में वैश्विक समुद्री व्यापार की महत्ता बढ़ रही है, अकेले हिंद महासागर द्वारा दुनिया के तेल व्यापार का 2/3 हिस्सा संचालित किया जाता है।
- कंटेनर द्वारा तकरीबन 50% व्यापार हिंद महासागर द्वारा होता है तथा आने वाले दिनों में इसके बढ़ने की संभावना है।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की योजना जो सागरमाला परियोजना की रूपरेखा का ब्योरा प्रस्तुत करती है, के अनुसार, इस योजना के परिचालन से लाजिस्टिक्स लागत में लगभग 3500 करोड़ रुपए की सालाना बचत के साथ-साथ भारत का व्यापार निर्यात 110 अरब डाॅलर के स्तर तक पहुँचने की संभावना है।
- इस परियोजना के क्रियान्वयन से 1 करोड़ नए रोज़गारों के सजृन होने की संभावना है जिनमें 40 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होंगे।
निष्कर्ष:
सागरमाला परियोजना द्वारा ‘कौशल विकास’ एवं ‘मेक इन इंडिया’ को ध्यान में रखते हुए बंदरगाहों का विकास कर औधयोगीकरण को बढ़ावा देते हुये तटीय संभावनाओं का दोहन किया जाएगा। परियोजना के माध्यम से मछुआरों एवं तटीय समुदायों के लिये भी नए अवसर सजृत होगे। यदि परियोजना के सामरिक पक्ष पर विचार करें तो यह चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ प्रोजेक्ट के विरुद्ध भारत को बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर में सामरिक दृष्टिकोण से सुरक्षा भी प्रदान करती है। अत: कहा जा सकता है कि सागर माला परियोजना भारत के लिये न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से अपितु सामरिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अति महत्त्वपूर्ण है।