भारतीय निर्यात: चिताएँ एवं संभावनाएं | 22 Oct 2019
चर्चा में क्यों?
भारत के निर्यात में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है, अगस्त 2018 की तुलना में अगस्त 2019 में इसमें 6% की गिरावट दर्ज की गई।
परिचय
- भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (PPP के आधार पर) होने के बावजूद, वैश्विक निर्यात में बड़ी भूमिका अदा नहीं करता है और मात्र विश्व व्यापार के 2% से कम का हिस्सेदार है।
कारण
- पेट्रीलियम उत्पाद, आभूषण एवं रत्न तथा अभियांत्रिकीय वस्तुओं का गिरता निष्पादन
- वैश्विक मांग में कमी
- GST रिफंड में देरी के कारण कार्यशील पूंजी का अभाव
- व्यापार युद्ध
- अमेरिकी द्वारा GSP (Generalized System of Prefence) को खत्म करना
- भारत में लाजिस्टिक लागत का अत्याधिक होना (विकसित देश से 3-4 गुना अधिक)
- बंदरगाह अवसंरचना का अभाव
निर्यात को बढ़ावा देने की ज़रूरत क्यों?
- अतिरिक्त उत्पादन क्षमता के पूर्ण उपयोग के लिये
- चालू खाता घाटा कम करने एवं व्यापार संतुलन को बनाए रखने के लिये
- रोज़गार सृजन एवं आर्थिक विकास को गति देने के लिये
- साउथ कोरिया एवं चीन की तरह, भारत को भी एक नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिये।
सरकारी पहल
- 2015-2020-विदेश व्यापार नीति
- वित्तीय कमी की पूर्ति के लिये निर्यातको हेतु प्राथमिक क्षेत्रक उधारी-
- एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन ने बैंक ऋण पर ज़्यादा बीमा का प्रस्ताव किया है।
- GST के तहत पूर्णत ‘स्वचालित इलेक्ट्रानिक रिफंड रूट’
- हाल ही मे RODTEP (रिमीसन ऑफ ड्यूटी ऑर टैक्स ऑफ एक्पोर्ट प्रोडक्ट)- यह 2020 से MEIS (मर्केन्डाइल एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम) को पूर्णत: प्रतिस्थापित कर देगी।
चिंताए/चुनौतियाँ
- गैर-तकनीकी बाधाँए (सैनीटरी एवं फाइटोसैनिटरी से संबंधित समस्याएं)
- विनिर्माण क्षेत्र का कमजोर होना साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का लगभग 65% भाग का आयात भारत द्वारा किया जाना
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा (बांग्लादेश एव वियतनाम का ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी होना )
- आधुनिक तकनीकी एवं कुशल श्रमबल का अभाव, जो वैश्विक मांग के अनुरूप नवाचार युक्त उत्पाद उपलब्ध करा सकें।
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रभावी विपणन एवं संवर्द्धन रणनीति का अभाव
- वैश्विक मूल्य शृंखला से अपर्याप्त जुड़ाव
आगे की राह
- संबंधित देश की सरकार से नान-टैरिक बाधाओं पर विचार-विमर्श करना
- अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय उत्पाद की ब्राण्ड वैल्यू बढ़ाने के लिये विपणन एवं संवर्द्धन केद्रों की स्थापना करना।
- उत्पाद विशिष्ट निर्यात आधारित उद्योगों की स्थापना करना।
- सागरमाला (बंदरगाह आधुनिकीकरण) तथा भारत माला (सड़क परिवहन) परियोजनओं के माध्यम से लॉजिस्टिक लागत एवं कनेक्टिविटी को प्रभावी एवं वहनीय बनाना।
- कृषि आधारित औद्योगिक इकाईयों पर विशेष बल देना।
- प्रयोगशाला क्षेत्रों का नवीकरण एवं उनकी स्थापना (ताकि सैनिटरी एवं फाइटीसैनिटरी बाधाओं की दूर किया जा सके)
- R & D पर बल देने के साथ मानव संसाधन को कौशलयुक्त बनाना
- नवाचार आधारित उत्पादों जैसे आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्म, रक्षा, अंतरिक्ष पर ध्यान केंद्रित करना ताकि वैश्विक मांगों को पूरा किया जा सकें।
- हाल ही में CII के एक अध्ययन के अनुसार भारत 31 उत्पादों जैसे महिलाओं के परिधान, दवाईयों, चक्रीय हाइड्रोकार्बन पर ध्यान केद्रित कर सकता है जिनकी उच्च निर्यात संभावनाएं है और भारत इन उत्पादों का ‘टाप एक्पोर्टर’ बन सकता है।