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टू द पॉइंट

भारतीय अर्थव्यवस्था

कृषि कलस्टर एवं भारत में इनकी प्रासंगिकता

  • 20 May 2020
  • 8 min read

भूमिका

  • वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय कृषि के समक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिला है।
  • घरेलू एवं वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा के क्रम में स्वयं को स्थापित करने अथवा प्रतिस्पर्द्धा में बनाए रखने था वैश्विक चुनौतियों से निपटने हेतु क्षमता निर्माण के लिये नए टूल्स की आवश्यकता है।
  • विकासशील देशों में टिकाऊ विकास की सबसे बड़ी संभावना कृषि क्षेत्र में निहित है। 
  • यहाँ पर गरीबी व्यापक और खराब स्वरूप में विद्यमान है तथा किसान छोटे पैमाने पर सीमित क्षेत्रों में कृषि करते हैं।

पृष्ठभूमि

  • भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी जीविकोपार्जन हेतु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
  • इससे न केवल कृषि पर दबाव बना हुआ है बल्कि कृषकों की आय में भी अपेक्षानुरूप वृद्धि नहीं हो पाई है।
  • भारत भौगोलिक, जलवायवीय और मृदा संबंधी विविधता वाले विशाल देशों में से एक है इसलिये भारत के कृषि स्वरूप में पर्याप्त विविधता है। 
  • भारत के विभिन्न क्षेत्र किसी विशेष फसल की कृषि के लिये आदर्श स्थल हैं, उदाहरणस्वरूप गुजरात और महाराष्ट्र में कपास संबंधी आदर्श स्थितियाँ हैं। 
  • इसी प्रकार किसी फसल विशेष के संबंध में भी स्थानीय विविधता है, जैसे- मूँगे की विभिन्न किस्मों के लिये कर्नाटक, झारखंड और असम में विशेष परिस्थितियाँ पाई जाती हैं। धान की अमन, ओसों जैसी प्रजातियाँ विभिन्न कृषि क्षेत्रों में बेहतर उत्पादन करती हैं।
  • भारत में कृषि अर्थव्यवस्था के क्षेत्रीकरण संबंधी पूर्व अध्ययनों की जाँच करने के बाद योजना आयोग द्वारा यह सिफारिश की गई थी कि कृषि-आयोजन संबंधी नीतियाँ कृषि-जलवायु क्षेत्रों के आधार पर तैयार की जानी चाहिये। 
  • इसी प्रकार संसाधन विकास के लिये देश को कृषि-जलवायु विशेषताओं, विशेष रूप से तापमान और वर्षा सहित मृदा कोटि, जलवायु एवं जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर पंद्रह कृषि जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा महाराष्ट्र में क्लस्टर से संबंधित कई विशेषताओं, उनकी प्रतिस्पर्द्धा या उनकी कमी के कारणों की समीक्षा की गई।

क्या हैं कृषि क्लस्टर?

  • उद्योगों की भौगोलिक विशेषता जो स्थान विशेष की परिस्थितियों के माध्यम से अधिक लाभ प्राप्त करते हैं, क्लस्टर कहलाते हैं।
  • वस्तुतः क्लस्टर से जुड़े उद्योगों एवं अन्य संस्थाओं की एक शृंखला होती है, जिसमें संबंधित उद्योगों के घटक, मशीनरी, सेवा और विशेष बुनियादी ढाँचे शामिल होते हैं।
  • क्लस्टर सामान्यतः चैनलों के माध्यम से ग्राहकों, कंपनियों के साथ-साथ उद्योग विशेष से संबंधित कौशल एवं प्रौद्योगिकियों के मध्य एकीकृत दृष्टिकोण स्थापित करता है।
  • इस प्रकार कृषि क्लस्टर (Agriculture Cluster) से अभिप्राय कृषि संबंधित क्षेत्र की उन भौगोलिक विशेषताओं से है जो स्थान विशेष की परिस्थितियों के माध्यम से लाभ प्राप्त करती है।
  • भारत में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA), कृषि क्लस्टरों की निगरानी/सर्वेक्षण करता है।

भारत में कृषि-क्लस्टर्स की संभावनाएँ एवं महत्त्व

  • हरित क्रांति का प्रभाव भारत के सीमित क्षेत्रों तक ही परिलक्षित हुआ है, अतः भारत में विद्यमान छोटे एवं सीमांत कृषि जोत वाले क्षेत्रों के मध्य क्लस्टर आधारित कृषि की पर्याप्त संभावनाएँ हैं।
  • विभिन्न कृषि क्षेत्रों में अनुकूल फसल व उससे संबंधित बुनियादी बातों को ध्यान में रखकर विशेष विनियामक रणनीति के माध्यम से कृषि आय को दोगुना करने संबंधी प्रयोजन में बेहतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।
  • भारत में कृषकों की खाद्यान्न व जीविकोपार्जन कृषि से संबंधित कृषि अवधारणा को व्यावसायिक कृषि में बदलकर स्थानीय प्रवास, रोजगार और स्थानीय व्यवसाय जैसी फॉरवर्ड व बैकवर्ड सुधारों के माध्यम से कृषि पर निर्भर जनसंख्या की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ आर्थिक विकास में कृषि की प्रासंगिकता को बढ़ाया जा सकता है।
  • इससे कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा जिससे कृषि के आधुनिकीकरण एवं मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी बल मिलेगा जिससे खाद्यान्न संरक्षण एवं भंडारण संबंधी अवसंरचना का विकास एवं रोजगार सृजन होगा।
  • कृषि क्लस्टरों के विकास से सामाजिक-आर्थिक विषमता में कमी आएगी।
  • इन संभावनाओं एवं महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार ने कृषि निर्यात नीति 2018 (Agri Export Policy-2018) के तहत आंध्र प्रदेश के अनंतपुर एवं कडप्पा जिलों को कला क्लस्टर के तौर पर अधिसूचित किया है।

भारत में कृषि क्लस्टरों के विकास संबंधी समस्याएँ

  • भारत में कृषि परंपरागत दृष्टिकोण पर आधारित खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। भारतीय कृषि में कौशल, ज्ञान एवं नवीन तकनीकों का अभाव है। कृषकों में कृषि एवं फसल संबंधी जानकारी का अभाव है।
  • भारत में आज भी कृषि समर्पित संस्थाओं, कृषि विशेष क्षेत्र एवं अनुसंधानों तक कृषकों की पँहुच में कमी जैसे कारक इस क्षेत्र की सफलता में बाधक  बनते हैं।

समाधान

  • कृषि क्षेत्र से संबंधित शोध संस्थानों की स्थापना की जानी चाहिये तथा पहले से मौजूद संस्थानों के कार्य निष्पादन में अपेक्षित सुधार किया जाना चाहिये।
  • कृषि संबंधी नवीन तकनीकों एवं जानकारियों को समय पर कृषकों तक पहुँचाने का प्रयास किया जाए तथा किसानों को तकनीकी कुशल बनाने का प्रयास किया जाए।
  • ग्राम पंचायत एवं स्थानीय स्तर पर नियमित कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • वित्तीय प्रवाह, अवसंरचना और जागरूकता के साथ-साथ बाजार पहुँच जैसे अन्य आवश्यकताओं को पूरा कर भारत अपनी श्रम शक्ति एवं जनसंख्या का बेहतर प्रयोग अपने आर्थिक एवं मानव विकास हेतु कर सकता है।
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