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सूचना का अधिकार: प्रगति, चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  • 16 Jan 2019
  • 6 min read

भूमिका


वर्ष 2015 में सूचना का अधिकार अधिनियम ने अपनी प्रगति यात्रा के 10 वर्ष पूरे किये। इसने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य किया है। लोक प्राधिकारियों के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत उपलब्ध सूचनाओं तक आम नागरिकों की पहुँच सुनिश्चित करने के मुख्य उद्देश्य के साथ यह अधिनियम बनाया गया।

प्रमुख प्रावधान


12 अक्तूबर, 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम अस्तित्व में आया। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

  1. प्रत्येक लोक प्राधिकारी के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वह 30 दिन की निर्धारित समयावधि के भीतर सूचना उपलब्ध कराए। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो सूचना को 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
  2. प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
  3. राष्ट्र की संप्रभुता, एकता-अखण्डता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ प्रकट करने की बाध्यता से मुक्ति प्रदान की गई है।
  4. इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, कैग और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना के अधिकार के दायरे में लाया गया है।
  5. इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। राज्य स्तर पर इसी तर्ज पर एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।

आर.टी.आई की अब तक की उपलब्धियाँ


सूचना का अधिकार अधिनियम ने अक्तूबर 2015 में अपने दस वर्ष पूरे किये। यह पिछले एक दशक में निम्नांकित रूपों में शासन-प्रशासन व आम जनता के हितों की दृष्टि से उपलब्धिपूर्ण रहा हैः

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम ने मंत्रियों की विदेश यात्राओं व उन पर हुए व्यय को सार्वजनिक करने में महती भूमिका निभाई है। इससे उन पर व्यर्थ में विदेश यात्रओं को न करने का दबाव बढ़ा है।
  2. मंत्रियों, नौकरशाहों और न्यायाधीशों की परिसंपत्तियों से संबंधित सूचना आर.टी.आई के जरिये ही प्राप्त हो सकती है। इसके प्रभाव के चलते अब नौकरशाहों द्वारा अपनी परिसंपत्तियों व देयताओं को सरकारी वेबसाइट्स पर दिखाया जाने लगा है, साथ ही इसे वार्षिक स्तर पर अद्यतन भी किया जाता है।
  3. सूचना के अधिकार से संबंधित आवेदनों ने विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं के परिणामों व अन्य जानकारियों को उद्घाटित करने के लिये संबंधित संस्थाओं पर दबाव डाला है।
  4. केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देशों व आर.टी.आई. आवेदनों के चलते सरकार ने वर्ष 2012 में आर.टी.आई. एक्ट के तहत फाइल नोटिंग को उपलब्ध कराया। इससे नौकरशाहों पर यह दबाव पड़ा कि वे फाइलों पर उचित तरीके से लिखें।
  5. सूचना के अधिकार संबंधी आवेदनों ने कई घोटालों को उजागर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें आदर्श आवासीय घोटाला, 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला व कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला आदि शामिल हैं।

सूचना के अधिकार के समक्ष चुनौतियाँ

  • सूचना के अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने से सबसे बड़ा खतरा आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं को है। इन्हें कई तरीकों से उत्पीडि़त एवं प्रताडि़त किया जाता है।
  • औपनिवेशिक हितों के अनुरूप बना 1923 का आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम आरटीआई की राह में प्रमुख रोड़ा है, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश की है जिस पर पारदर्शिता के लिहाज से अमल आवश्यक है।

इसके अलावा कुछ अन्य चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं, जैसे-

  1. नौकरशाही में अभिलेखों के रखने व उनके संरक्षण की व्यवस्था बहुत कमजोर है।
  2. सूचना आयोगों को चलाने के लिये पर्याप्त अवसंरचना और स्टाफ का अभाव है।
  3. सूचना के अधिकार कानून के पूरक कानूनों, जैसे- ‘व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम’ का कुशल क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

निष्कर्ष


कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हालाँकि सूचना का अधिकार जन अधिकारों के पक्ष में अग्रसर तो हुआ है लेकिन वास्तविक लाभों को प्राप्त करने के लिये इसके मार्ग में आने वाली संरचनात्मक, संस्थागत और प्रक्रियागत बाधाओं व जटिलताओं के दुष्चक्र को तोड़ना होगा। इस क्रम में जागरूकता फैलाने वाला ठोस अभियान चलाना होगा। सूचना का अधिकार के संरक्षण में न्यायालयों और सिविल सोसाइटी संगठनों को अग्रणी भूमिका निभानी होगी।

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