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भारतीय राजव्यवस्था

दबाव समूह

  • 17 Jul 2020
  • 10 min read

भूमिका

दबाव समूह शब्द का प्रयोग उन हित-समूहों के लिये किया जाता है जिनके प्रभाव डालने के तरीके सामान्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक दबावपूर्ण होते हैं। ये समूह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये दबाव के अतिरिक्त असंवैधानिक तरीके अपनाने से भी नहीं हिचकिचाते हैं।

दबाव समूह ऐसे ही संगठन है जो औपचारिक रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेते, न ही अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। इसके बजाय वे अपने सदस्यों के हितों की प्राप्ति के लिये राजनीति को प्रभावित करते हैं। वर्तमान समय में ‘नागरिक समाज संगठनों’ को प्रमुख दबाव समूह के रूप में देखा जाता है।

दबाव समूहों की प्रकृति:

  • भारत जैसे बहुधार्मिक, बहुभाषाई और लोकतांत्रिक देश में दबाव समूहों की प्रकृति उनके विविध लक्ष्यों से निर्धारित होती हैं। कुछ दबाव समूह जाति समूहों के रूप में देखे जा सकते हैं, कुछ सामाजिक संरचना पर आधारित दबाव समूह होते हैं, जैसे- अखिल भारतीय दलित महासभा, तमिल संघ आदि।
  • दबाव समूह औपचारिक, संगठित, वृहद और सीमित दोनों ही सदस्यता वाले संगठन होते हैं। लॉबिंग के जरिए यह अपना हित साधने की कोशिश करते हैं। जैसे- फिक्की व एसोचैम।
  • राजनीतिक दलों के विपरीत दबाव समूहों की कार्यप्रणाली किसी विचारधारा अथवा वैचारिक लक्ष्य से संचालित नहीं होती। इनका मूल लक्ष्य हितों का संरक्षण, अभिव्यक्तिकरण, समूहीकरण, सरकार पर दबाव डालना आदि होता है।

दबाव समूह के प्रकार:

  • राजनीति विज्ञान के अनेक विद्वानों ने दबाव समूहों के वर्गीकरण के अनेक आधार बताये हैं। ब्लेंण्डल के अनुसार, दबाव समूह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- सामुदायिक तथा संघात्मक। पुनः समुदायक दबाव समूह के दो रूप हैं- प्रथागत तथा संस्थागत। संघात्मक दबाव समूह के दो रूप हैं- संरक्षक एवं तथा उत्थानात्मक।
  • सामुदायिक दबाव समूह वे समूह है जिनकी उत्पत्ति में लोगों के सामाजिक संबंधों, भावनात्मक लगावों एवं लोगों की एक समान दृष्टि की भूमिका होती है। ऐसे समूहों का संगठन औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूपों में हो सकता है।
  • ऐसे दबाव समूह जिन की कार्यप्रणाली तथा उनके सदस्यों के परस्पर संबंधों में प्रथाओं, परंपराओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों की प्रधानता होती है, प्रथागत सामुदायिक दबाव समूह कहलाते हैं जैसे- अखिल भारतीय क्षत्रिय समाज, अखिल भारतीय दलित समाज आदि।
  • संस्थागत दबाव समूह औपचारिक रूप से संगठित होते हैं जिनसे पेशेवर लोग संबद्ध होते हैं। ये सरकारी तंत्र के भाग होते हैं और शासन पर अपना प्रभाव छोड़ने का प्रयास करते हैं। इन समूहों में व्यापक तौर नौकरशाही संगठनों को रखा जाता है। उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल सिविल सर्विसेज एसोसिएशन एक संस्थागत दबाव समूह है।
  • संघात्मक दबाव समूह वे दबाव समूह हैं जो किसी विशेष हित की प्राप्ति के लिये बनाए जाते हैं। ऐसे समूहों की स्थापना, अस्तित्व उनकी कार्यशैली विशिष्ट हितों के साथ जुड़ी रहती है।
  • संरक्षणात्मक दबाव समूह के लक्ष्य विशिष्ट होते हुए भी सामान्य हो सकते हैं। इसके अंतर्गत श्रम संघ, व्यावसायिक संगठन आदि को शामिल किया जाता है। जैसे- फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI), एसोचेम आदि।
  • उत्थानात्मक दबाव समूह में वे दबाव समूह होते हैं, जिन्हें किसी विचार एवं दृष्टिकोण के प्रचार तथा समाज को उन विचारों, दृष्टिकोण के माध्यम से उन्नत बनाने के लिये बनाया जाता है। निशस्त्रीकरण, नारी उत्थान, विश्व शांति हेतु बनाए गए दबाव समूहों को इनमें शामिल किया जाता है।

दबाव समूहों की कार्यपद्धति:

  • दबाव समूहों की कार्यपद्धति में अपने हितों का प्रचार-प्रसार, संबद्ध लोगों के साथ वार्ताएँ, लाबिंग, न्यायिक कार्यवाहियाँ, प्रदर्शन हड़तालें, याचना, बंद, धरना, पद का प्रस्ताव करना, सरकार व अधिकारियों के साथ बैठकों-गोष्ठियों आदि का उल्लेख किया जा सकता है।
  • दबाव समूह अपनी मांगों को पूरा करने के लिये संबद्ध संस्थाओं व सरकार पर दबाव डालते हैं, मंत्रियों व कर्मचारियों को प्रलोभन देते हैं, चुनावों में राजनीतिक दलों को धन व कार्यकर्ताओं को सुविधाएँ देते हैं। दबाव समूह लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करते हैं।

दबाव समूह की भूमिका:

  • दबाव समूह आम जनता एवं सरकार के बीच एक कड़ी एवं संचार का साधन के रूप में कार्य करते हैं तथा लोकतंत्र में व्यापक भागीदारी संभव बनाते हैं।
  • दबाव समूह सामाजिक एकता के प्रतीक हैं क्योंकि ये व्यक्तियों के सामान्य हितों की अभिव्यक्ति के लिये जन साधारण और निर्णय लेने वालों के बीच अंतर को कम करते हैं तथा पूरे समाज में परंपरागत विभाजन को भी कम करने का कार्य करते हैं।
  • दबाव समूह एक संगठित हित समूह है जो अपने-अपने समूह के हितों के पक्ष में सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा राजनीतिक जागरूकता एवं सदस्यों की सहभागिता में वृद्धि करते हैं।

चुनौतियाँ:

  • कभी-कभी ये दबाव समूह हित समूह के रूप में राष्ट्रीय एकीकरण के समक्ष खतरे भी उत्पन्न कर देते हैं। जहाँ राजनीतिक सत्ता कमजोर होती है वहाँ अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली दबाव समूह सरकारी मशीनरी को अपनी मुट्ठी में ले सकता है। 
  • दबाव समूह सरकारी निर्णयों को केवल अपने समूह के पक्ष में असंतुलित कर सकते हैं और शेष जन समुदाय के अधिकारों का हनन हो सकता है।

कुछ महत्त्वपूर्ण दबाव समूह:

  • फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI)-
    • इसकी स्थापना वर्ष 1927 में हुई थी। फिक्की भारत में सर्वाधिक बड़ा और सार्वजनिक पुराना व्यावसायिक संगठन है जो देश की आर्थिक नीतियों व उद्योगपतियों के हितो के संरक्षण हेतु कानून बनाने का उन्हें लागू करने हेतु सरकार पर दबाव डालता है।
    • यह देश में उद्योग और वाणिज्य के विकास में उपयोगी आर्थिक और वैज्ञानिक अनुसंधानों को बढ़ावा देता है। इसके साथ ही व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा का भी प्रबंधन करता है। निवेश का व्यापार समझौतों के प्रभावों पर अपनी राय भी व्यक्त करता है।
  • एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM)-
    • यह एक गैर-लाभकारी संगठन और प्रमुख व्यावसायिक दबाव समूह है, जिसने भारतीय उद्योग के लिये वर्ष 1920 से काम करना प्रारंभ किया।
    • यह उद्योग जगत के हितों के संरक्षण के लिये विभिन्न मुद्दों जैसे- औद्योगिक संवृद्धि, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति, विनिमय दर नीति, आर्थिक नियोजन, करारोपण और कॉरपोरेट कानूनों पर अपनी विशेषज्ञ राय देते हुए सरकार की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करता है।
  • इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स- 
    • इनकी स्थापना वर्ष 1925 में हुई, यह भारत का प्रमुख व्यवसाय समूह है। यह फिक्की का संस्थापक सदस्य भी है।
    • यह पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में औद्योगिक विकास, व्यापार व वाणिज्य की बेहतर दशाओं के निर्माण के लिये सरकार के निर्णय को प्रभावित करता है।
    • यह वार्षिक स्तर पर उत्तर-पूर्व बिजनेस समिति का आयोजन करता है और उत्तर-पूर्व के आर्थिक विकास की संभावनाओं का अन्वेषण करता है।
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