लद्दाख का महत्त्व | 13 Apr 2021
परिचय:
- लद्दाख (95,876 किमी 2) क्षेत्रफल की दृष्टि से आसपास के क्षेत्रों में सबसे बड़ा है। इसे “लैंड ऑफ पासेस” (ला-दर्रा, दख-भूमि) के रूप में भी जाना जाता है। इस क्षेत्र को भारत द्वारा केंद्रशासित प्रदेश के रूप में प्रशासित किया जाता है।
- सीमा क्षेत्र: यह पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, दक्षिण में भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, और पश्चिम में जम्मू और कश्मीर तथा पाकिस्तान प्रशासित गिलगित-बाल्टिस्तान से एवं शिनजियांग के दक्षिण-पश्चिम कोने से दूर उत्तर में काराकोरम दर्रा से घिरा है।
- नदी प्रणाली: सिंधु नदी और इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ, श्योक-नुब्रा, चांग चेनमो, हानले, जांस्कर, और सुरू नदियाँ इस क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं।
- जलवायु: लद्दाख में बेहद कठोर जलवायु है और यह पृथ्वी पर सबसे ऊँचे तथा सूखे स्थानों में से एक है। आर्कटिक और रेगिस्तानी जलवायु की संयुक्त विशेषताओं के कारण लद्दाख की जलवायु को "ठंडे रेगिस्तान" जलवायु के रूप में जाना जाता है।
- निम्नलिखित कारकों के कारण घाटी की तली और सिंचित क्षेत्रों को छोड़कर पूरा क्षेत्र वनस्पति से रहित है:
- इन कारकों में व्यापक रूप से तापमान में गिरावट और मौसमी उतार-चढ़ाव जैसे शीत ऋतु में -40 डिग्री सेल्सियस से ग्रीष्म ऋतु में + 35 डिग्री सेल्सियस, अत्यंत कम वर्षा जिसमें वार्षिक 10 सेमी से 30 सेंटीमीटर तक बर्फ होती है आदि शामिल हैं।
- अधिक ऊँचाई और कम आर्द्रता के कारण, यहाँ विकिरण स्तर विश्व में सबसे अधिक है।
- मृदा प्रकार: यहाँ की मृदा दरदरी और रेतीली है, यहाँ की मृदा में कम कार्बनिक पदार्थ और जल प्रतिधारण क्षमता अधिक नहीं होती है।
लद्दाख का इतिहास:
- डोगरा आक्रमण: ऐतिहासिक रूप से लद्दाख 950 ईस्वी से वर्ष 1834 तक एक स्वतंत्र राज्य था, जब हिंदू डोगरा (जम्मू से, जो लद्दाख के दक्षिण पश्चिम में है) ने इस पर आक्रमण किया था।
- सिखों द्वारा वर्ष 1819 में कश्मीर का अधिग्रहण करने के बाद सम्राट रणजीत सिंह की महत्त्वाकांक्षा लद्दाख को जीतने की थी, परंतु जम्मू में सिखों के डोगरा सामंत गुलाब सिंह ने लद्दाख को जम्मू व कश्मीर के साथ एकीकृत करने का कार्य शुरू किया।
- तिब्बत आक्रमण: मई 1841 में चीन के किंग राजवंश (Qing Dynasty) के एक राज्य के रूप में तिब्बत ने लद्दाख को शाही चीनी राजवंश में मिलाने की आशा के साथ उस पर आक्रमण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप चीन-सिख युद्ध हुआ।
- हालाँकि इस युद्ध में चीन-तिब्बत की सेना पराजित हो गई तथा चुशुल की संधि पर हस्ताक्षर किये गए जिसके तहत भविष्य में अन्य देश की सीमाओं में किसी प्रकार के बदलाव या हस्तक्षेप न करने पर सहमति बनी।
- अंग्रेजों का आधिपत्य: 1845-46 के पहले एंग्लो-सिख युद्ध के बाद लद्दाख सहित जम्मू और कश्मीर राज्य को सिख साम्राज्य से बाहर ब्रिटिश आधिपत्य के तहत लाया गया।
- बफर क्षेत्र के रूप में: जम्मू और कश्मीर राज्य का निर्माण अंग्रेजों ने मुख्य रूप से एक बफ़र क्षेत्र के रूप में किया था जहाँ वे रूसियों से मिल सकते थे।
- इसके फलस्वरूप लद्दाख, जम्मू और कश्मीर राज्य की सीमा का परिसीमन करने की कोशिश की गई, परंतु इस क्षेत्र के तिब्बती व मध्य एशियाई प्रभाव में आने के बाद सीमांकन करना जटिल हो गया।
- पाकिस्तान और चीन सीमा विवाद: लद्दाख, भारत और पाकिस्तान जैसे नए स्वतंत्र देशों के बीच एक विवादास्पद क्षेत्र बन गया। वर्ष 1960 की शुरुआत में पूर्वी लद्दाख का एक बड़ा क्षेत्र चीन द्वारा अपने क्षेत्र में संलग्न कर लिया गया था।
- भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव, 1950 के दशक में तिब्बत पर चीनी आक्रमण और वर्ष 1962 में अक्साई चिन क्षेत्र पर चीन के आधिपत्य के कारण लद्दाख भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्रों में से एक बन गया है।
- पाकिस्तान और चीन के साथ रणनीतिक अवस्थिति और सीमा विवादों ने पिछले 50 वर्षों से इस क्षेत्र में सेना की उपस्थिति के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया है।
लद्दाख की महत्ता:
भारत और चीन दोनों के लिये लद्दाख का महत्त्व जटिल ऐतिहासिक प्रक्रियाओं में निहित है, जिसके कारण यह क्षेत्र वर्ष 2019 में केंद्रशासित प्रदेश बन गया (पहले यह जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था) तथा इसमें चीन का स्वार्थ वर्ष 1950 में तिब्बत पर आधिपत्य के बाद बढ़ा।
- प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर: लद्दाख सिंधु जल सीमा के ऊपरी हिस्से के भीतर स्थित है, जो भारत में लगभग 120 मिलियन लोगों (हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब तथा राजस्थान) और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत (शाब्दिक रूप से "पाँच नदियों की भूमि") के लगभग 93 मिलियन लोगों को जल संसाधन प्रदान करता है।
- इसीलिये लद्दाख के भीतर जल संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन न केवल लद्दाख की आजीविका और लद्दाख के पारिस्थितिक तंत्र के लिये बल्कि पूरे नदी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सौर विकिरण: यह लद्दाख में सबसे प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों में से एक है, जिसमें वार्षिक सौर विकिरण उच्च इन्सुलेशन के साथ भारत के अन्य क्षेत्रों के लिये औसत से अधिक है।
- भूतापीय क्षमता: कुछ सर्वेक्षणों द्वारा अन्वेषण और विकास के लिये उपयुक्त गहराई पर भू-तापीय संसाधन की खोज की गई है।
- राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित छोटी बस्तियों और सेना के ठिकानों को ग्रिड से जुड़ी विद्युत् ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिये इन संसाधनों को विकसित किया जा सकता है।
- पर्यटन उद्योग: लामा भूमि या छोटे तिब्बत के रूप में लोकप्रिय लद्दाख लगभग 9,000 फीट से 25,170 फीट ऊँचाई पर स्थित है। लद्दाख में ट्रेकिंग और पर्वतारोहण से लेकर विभिन्न मठों के बौद्ध पर्यटन जैसे मनोरंजन के कार्य होते हैं।
- कनेक्टिविटी: लद्दाख क्षेत्र में स्थित दर्रे मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, चीन और मध्य पूर्व जैसे विश्व के कुछ राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को जोड़ते हैं।
- बाज़ार पहुँच: दक्षिण एशियाई देश इस क्षेत्र के माध्यम से मध्य एशियाई बाज़ारों तक पहुँच सकते हैं। उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कज़ाखस्तान जैसे देश यूरेनियम, कपास, तेल और गैस संसाधनों से समृद्ध हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: भविष्य में ईरान से चीन तक तेल और गैस पाइपलाइन इस पहाड़ी गलियारे से गुजर सकती है। इस क्षेत्र के माध्यम से मध्य एशिया से एक पाइपलाइन का निर्माण करके भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को भी पूरा किया जा सकता है।
अन्य लाभ:
- भू-राजनीतिक महत्त्व: लद्दाख की भूमि प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित होने के कारण महत्त्व रखती है जो इन क्षेत्रों से गुजरता है और अतीत में संस्कृति, धर्म, दर्शन, व्यापार तथा वाणिज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- भू-स्थानिक अवस्थिति: प्रचुर संसाधनों की उपस्थिति के कारण इस क्षेत्र में संसाधनों पर नियंत्रण पाने के लिये भारत, चीन और पाकिस्तान लद्दाख पर अपना आधिपत्य जमाने के लिये संघर्षरत हैं। इस क्षेत्र में सियाचिन और अक्साई चिन को लेकर पाकिस्तान और चीन का भारत के साथ टकराव है। इन संघर्षों की पृष्ठभूमि में लद्दाख का भूस्थैतिक महत्त्व बढ़ गया है।
भारत-चीन सीमा विवाद:
- इस विवाद की उत्पत्ति ब्रिटिश राज से हुई जो अपने उपनिवेश और चीन के बीच की सीमा का निश्चित रूप से सीमांकन करने में विफल रहा।
- हाल ही में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख के पैंगॉन्ग त्सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी में गतिरोध की स्थिति देखी गई।
- गलवान घाटी क्षेत्र सब सेक्टर नॉर्थ (SSN) के अंतर्गत आता है, जो सियाचिन ग्लेशियर के पूर्व में स्थित है और भारत से अक्साई चिन तक सीधी पहुँच प्रदान करने वाला एकमात्र बिंदु है।
- दोनों उभरते हुए देश हैं तथा 3800 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं जिसका एक बड़ा हिस्सा विवादित है।
कुल मिलाकर वर्तमान का सीमा मुद्दा दो मुख्य सीमा अवस्थितियों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा बढ़ावा दिया गया।- भारत ने मैकमोहन रेखा को कानूनी सीमा के रूप में बनाए रखा है, जबकि चीन ने यह कहते हुए कि तिब्बत कभी स्वतंत्र नहीं था, इस सीमा को स्वीकार नहीं किया है।
- वर्ष 1962 में चीनी सैनिकों ने मैकमोहन रेखा को पार किया और युद्ध के बाद चीन "वास्तविक नियंत्रण रेखा" स्थापित करने के लिये आगे बढ़ा।
- हालाँकि इनमें से कोई भी सीमा कभी भी बाध्यकारी द्विपक्षीय संधि में शामिल नहीं हुई थी और इसलिये भारतीय स्वतंत्रता के समय पश्चिमी खंड में भारत-चीन सीमा की स्थिति अनसुलझी रही।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एक प्रकार की सीमांकन रेखा है, जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र और चीनी-नियंत्रित क्षेत्र को एक दूसरे से अलग करती है।
- जहाँ एक ओर भारत मानता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की लंबाई लगभग 3,440 किलोमीटर है, वहीं चीन इस रेखा को तकरीबन 2,000 किलोमीटर लंबा मानता है।
- इसे तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
- पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम तक फैला है।
- उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मध्य क्षेत्र।
- लद्दाख में पश्चिमी क्षेत्र।
निष्कर्ष:
- लद्दाख क्षेत्र भारत के आवश्यक ऊर्जा संसाधनों की पूर्ति करने में सक्षम है, इसके लिये लद्दाख में शांति बनाए रखना एक शर्त है। शांति के लिये समान निष्पक्ष विकास अनिवार्य है।
- इसलिये भारत के नीति निर्माताओं को लद्दाख के लिये अपनी नीतियों का मसौदा तैयार करते समय इसकी भौगोलिक स्थिति, नाजुक वातावरण, संसाधन क्षमता तथा यहाँ के लोगों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखना चाहिये। ऐसे रणनीतिक स्थानों का लाभ उठाने के लिये इन सभी पहलुओं को सामंजस्य के साथ रखना महत्त्वपूर्ण है।