भारत में विकलांगताः समस्याएँ एवं समाधान | 13 Mar 2019
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री द्वारा अपने ‘मन की बात’ संबोधन में ‘विकलांग’ शब्द के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द के प्रयोग के आग्रह एवं इससे जुड़े विमर्श ने विकलांग जनों को चर्चा के केन्द्र में ला दिया है।
विकलांगता क्या है?
सामान्य अर्थों में विकलांगता ऐसी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता है जिसके चलते कोई व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तरह किसी कार्य को करने में अक्षम होता है। तकनीकी दृष्टि से विकलांग एवं विकलांगता व्यापक संदर्भ वाले शब्द हैं जिनकी एक से अधिक परिवर्तनशील परिभाषाएँ हैं। भारत में ऐसे व्यक्ति को विकलांग माना गया है जो चिकित्सा अधिकारी द्वारा प्रमाणित 40 प्रतिशत से कम विकलांगता का शिकार न हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जहाँ विश्व की 15 प्रतिशत आबादी किसी-न-किसी रूप में विकलांगता से पीडि़त है वहीं भारत की महज 2.21 प्रतिशत आबादी ही विकलांगता से पीडि़त है। आँकड़ों की ये विसंगति विकलांगता के लिये तय मानकों में भिन्नता के कारण है।
भारत में विकलांगता की श्रेणियाँ
- 1981 की जनगणना में 3 तरह की, 2001 में 5 तरह की और 2011 में 8 तरह की निर्योग्यताओं को विकलांगता का आधार माना गया। दिव्यांग जनों के अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2016 में दिव्यांग श्रेणियों को बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, एसिड अटैक से पीडि़तों को भी सुप्रीम कोर्ट ने निर्योग्यता की एक श्रेणी में रखने का आदेश दिया है। विकलांगता श्रेणी हेतु निर्योग्यताओं की संख्या बढ़ाने का उद्देश्य ‘विकलांग जनों के लिये राष्ट्रीय नीति’ एवं ‘विकलांग जन अधिनियम, 1995’ के मध्य सामंजस्य बढ़ाना था।
नोटः ध्यातवय है कि निःशक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक, 2014 में दिव्यांगों की श्रेणियाँ 7 ही थीं।
पुनर्वास एवं आत्मनिर्भरता बढ़ाने हेतु प्रयास
विकलांग जनों का आर्थिक पुनर्वास उनके सामाजिक पुनर्वास की प्राथमिक शर्त है, जबकि विकलांगों का चिकित्सीय एवं शैक्षिक पुनर्वास उनके आर्थिक पुनर्वास का माध्यम है और उनके सशक्तीकरण के लिये अत्यन्त आवश्यक भी है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर यूएन कन्वेंशन का अनुच्छेद 9 राष्ट्रीय सरकारों को सूचना, परिवहन, भौतिक वातावरण, संचार प्रौद्योगिकी और विभिन्न सेवाओं तक विकलांग व्यक्तियों की पहुँच सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपता है। इस दिशा में भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अन्तर्गत विकलांग जन सशक्तीकरण विभाग ने एक राष्ट्रव्यापी फ्लैगशिप अभियान के तौर पर ‘सुगम्य भारत अभियान’ की शुरुआत की है।
विकलांग व्यक्तियों को स्वरोज़गार के लिये रियायती ब्याज दरों पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने हेतु 1997 में राष्ट्रीय विकलांग वित्त एवं विकास निगम की स्थापना की गई थी। इसके अलावा उनके कौशल उन्नयन हेतु दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना के अन्तर्गत व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
विकलांगों के सशक्तीकरण की दिशा में सरकारी प्रयास
संविधान का अनुच्छेद 41 निःशक्तजनों को लोक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता है। इसी प्रकार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का उद्देश्य भी एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ विभिन्न पिछड़े एवं कमजोर तबकों के साथ-साथ विकलांग जनों को एक सुरक्षित सम्मानित और समृद्ध जीवन सुलभ कराया जा सके।
विकलांग जनों के कल्याण एवं विकास हेतु सरकार द्वारा किये गए कुछ प्रमुख प्रयास इस प्रकार हैं-
- भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम, 1992
- विकलांग जन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 ।
- ऑटिज्म, सेरेब्रल पॉलसी, मानसिक बीमारी और बहुविकलांगों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 ।
- मानसिक स्वास्थ अधिनियम, 1987 ।
विकलांग जनों के पुनर्वास उपायों को मूलतः तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- पहला- आरंभिक पहचान, परामर्श, चिकित्सकीय मदद तथा उपकरण आधारित शारीरिक पुनर्वास।
- दूसरा- व्यावसायिक शिक्षा समेत शैक्षणिक पुनर्वास।
- तीसरा- समाज में गरिमामय जीवन जीने के लिये आर्थिक पुनर्वास।
- सरकार विकलांग जनों को स्तरीय, टिकाऊ तथा वैज्ञानिक तरीकों से निर्मित आधुनिक यंत्रें एवं उपकरणों की खरीद के लिये सहायता भी देती रही है। विकलांग जन अधिनियम, 1995 के अनुच्छेद-26 के तहत विकलांग बच्चों को 18 वर्ष की उम्र तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।