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ब्रेक्जि़ट और उसके निहितार्थ

  • 20 Feb 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने या न होने यानी ब्रेक्जिट को लेकर 23 जून, 2016 को ब्रिटेन में मतदान हुआ जिसमें 52% लोगों ने यूरोपीय संघ को छोड़ने, जबकि 48% ने बने रहने के पक्ष में मत दिया। इस निर्णय के बाद ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने का रास्ता साफ हो गया, हालाँकि इसमें लगभग 2 वर्ष का समय लगेगा।

ब्रेक्जि़ट (BRIXIT) के कारण:

  • ब्रेक्जिट के मुख्य कारण–प्रवासियों की लगातार बढ़ती संख्या, ई.यू. पर जर्मनी एवं फ्राँस की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति, ई.यू. की अत्यधिक शर्तें थोपने की नीति, वैश्विक नेताओं की आर्थिक चेतावनियों के प्रति प्रतिक्रियात्मक मनोदशा एवं इस्लामीफोबिया इत्यादि रहे।
  • प्रवासियों की बढ़ती संख्या तथा गतिविधियों को लेकर स्थानीय लोगों में भय व संशय पनपने लगा था। धीरे-धीरे यह मुद्दा ब्रिटेन की संस्कृति, पहचान और राष्ट्रीयता से जुड़ गया।
  • जब सैमुअल हंटिंगटन और पॉल बेरेट जैसे विचारक यह अनुमान व्यक्त करते हैं कि 2025 तक इस्लामिक दुनिया ईसाईयत को दुनिया के प्रमुख धर्म होने से वंचित कर देगी, तब ईसाई और खासकर यूरोपीय दुनिया का डरना और इस्लामी कट्टरपंथ द्वारा साहस जुटा लेना स्वाभाविक ही है।
  • द डेली टेलीग्राफ ने वेटिकन सिटी की तरफ से यह भी प्रकाशित किया था कि यूरोप इस महाद्वीप में इस्लाम के वर्चस्व से बचना चाहता है तो वहाँ की सरकारें ईसाइयों को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने को प्रेरित करें।
  • देखा जाए तो ई.यू. इस्लामी आव्रजन रोकने के बजाय उसके प्रोत्साहक के रूप में दिख रहा था और शायद ब्रेक्जिट इसी का नतीजा है।
  • कंजर्वेटिव पार्टी के बावजूद लेबर पार्टी, स्कॉटिश नेशनल पार्टी और लिबरल डेमोक्रेट्स सभी आदि ने ई.यू. में रहने का प्रचार किया, जबकि लेबर पार्टी के कुछ सांसदों, यूके इंडिपेंडेंस जैसी पार्टियों ने ई.यू. से बाहर होने का पक्ष लिया था।

आगे और भी मुद्दे उठ सकते हैं,जैसे -

  • यही राजनीति अब इंग्लैंड में अन्य विभाजनों को भी हवा दे सकती है। इसलिये संभव है कि स्कॉटलैंड की आजादी का मुद्दा फिर से पुनर्जीवित हो, जो उत्तरी आयरलैंड के भविष्य को भी खतरे में डाल देगा।
  • इसी संदर्भ में जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को चेताया कि वे ई.यू. को छोड़ने के ब्रिटेन के फैसले के बारे में जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें, क्योंकि इससे यूरोप के और बँटने का जोखिम पैदा हो सकता है। 
  • दूसरी तरफ अब यूरोप के अन्य देशों में भी ई.यू. से बाहर होने की मांग जोर पकड़ सकती है। इसलिये ई.यू. के नेताओं को भी यह डर लगने लगा है कि कई और देश भी संघ छोड़ने के लिये अपने यहाँ जनमत संग्रह करा सकते हैं।

ब्रिटेन के लिये कितना उचित रहा ब्रेक्जि़ट?

  • ऐसा माना जाता है कि ब्रेक्जिट से ई.यू. के बड़े बाजार से हाथ धोने के कारण ब्रिटेन के दबदबे में कमी आएगी। इससे पाउंड में गिरावट के साथ-साथ पूंजी व कारोबार में संकुचन भी दृष्टिगोचर होगा।
  • चूँकि जर्मनी व फ्राँस का ई.यू. पर नियंत्रण है, इसलिये संभव है कि ब्रिटेन को आगे द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में भी अड़चनों का सामना करना पड़े।
  • ब्रिटेन को ई.यू. से पूरी तरह से बाहर निकलने में लगभग 2 वर्ष का समय लगेगा, इस दौरान ब्रिटेन संक्रमण के दौर से गुजरेगा जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और राजनीति को झटके लग सकते हैं।

ब्रेक्जि़ट व भारत

  • जो कंपनियाँ ब्रिटेन के जरिये यूरोप में कारोबारी गतिविधि का अवसर प्राप्त कर लेती थीं, अब उन्हें यह सुविधा नहीं मिल पाएगी। भारत को भी इसी तरह का नुकसान होगा।
  • ब्रेक्जिट से भारतीय पूंजी बाजार में उथल-पुथल, विदेशी निवेश में कमी, भारतीय निर्यात में गिरावट जैसे नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • साथ ही यूरोपीय संघ में भारत के व्यापार के लिये ब्रिटेन प्रवेश द्वार का काम करता रहा है इसलिये ब्रिटेन के ई.यू. से अलग होने से भारत को ब्रिटेन व ई.यू. के साथ संबंधों को नए सिरे से तय करना होगा।

निष्कर्ष

ब्रिटेन को अब नई चुनौतियों के रूप में आतंकवाद के वैश्विक खतरे, बहुराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से एकल अर्थव्यवस्था की ओर पुनरागमन, उपराष्ट्रीयता का उभार, ई.यू. के देशों के साथ रिश्तों एवं नीतियों को पुनःपरिभाषित करने जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है। जब विश्व बैंक के प्रमुख से एक साक्षात्कार में ब्रेक्जिट के विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यदि यह ब्रेक्जिट 2008-09 के विश्व आर्थिक संकट के समय होता तो इसके कुछ अधिक दुष्परिणाम देखे जा सकते थे, किंतु अभी उतना नकारात्मक असर देखने को नहीं मिलेगा। साथ ही इसे वैश्वीकरण के विरोध में एक नकारात्मक उदाहरण के रूप में भी देखा गया है।

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