अनुच्छेद 370 | 07 Sep 2019
चर्चा में क्यों ?
केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में करने का प्रस्ताव किया।
अनुच्छेद 370 की पृष्ठभूमि
- 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का हिस्सा बना तथा इसे एक 'अस्थायी प्रावधान' के रूप में जोड़ा गया था, जिसने जम्मू-कश्मीर को छूट दी थी, ताकि वह अपने संविधान का मसौदा तैयार कर सके और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर सके।
- यह संविधान के प्रारूप में एन गोपालस्वामी अय्यंगार द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को यह सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था कि भारतीय संविधान के कौन से अनुच्छेद राज्य में लागू होने चाहिये।
- राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को भंग कर दिया गया था। धारा 370 के अनुच्छेद 3 में भारत के राष्ट्रपति को अपने प्रावधानों और दायरे में संशोधन करने की शक्ति दी गई है।
- अनुच्छेद 35A अनुच्छेद 370 से उपजा है और जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश पर 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से लागू किया गया था।
- अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर विधायिका को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 370 में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों ?
- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने के लिये जोड़ा गया था। किंतु यह कश्मीरियों की भलाई करने में विफल रहा।
- इसी के चलते कश्मीर लंबे समय से उग्रवाद और हिंसा से पीड़ित रहा है।
- इसने कश्मीर और अन्य राष्ट्रों के बीच खाई को बढ़ाने का कार्य किया है।
- इसके चलते पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से भारत की सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ और जटिल हो रही थीं।
अनुच्छेद 370 पर केंद्र का वर्तमान निर्णय
- अब अनुच्छेद-370 का केवल खंड-1 लागू रहेगा, शेष खंड समाप्त हो गए हैं।
- खंड-1 भी राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया तथा राष्ट्रपति द्वारा ही इसे भी हटाया जा सकता है।
- जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार नहीं।
- एकल नागरिकता ।
- एक राष्ट्र एक ध्वज ।
- अनुच्छेद 360 ( वित्तीय आपातकाल ) अब लागू ।
- दूसरे राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीद सकते हैं।
- लद्दाख और जम्मू कश्मीर को अलग-अलग केंद्र-शासित प्रदेश का दर्ज़ा ।
- जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल- 5 वर्ष।
- आरटीआई व मानवाधिकार नियम लागू ।
संवैधानिक चुनौतियाँ
- राष्ट्रपति का आदेश जो जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने की मांग करता है,अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति को इस तरह के बदलाव के लिये जम्मू-कश्मीर की विधानसभा की सिफारिश की आवश्यकता होगी।
- हालाँकि, 2019 के राष्ट्रपति के आदेश में अनुच्छेद 367 में एक उप-खंड जोड़ा गया है, जो शर्तों को प्रतिस्थापित करता है:
- "जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा" का अर्थ है "जम्मू-कश्मीर की विधान सभा" ।
- "जम्मू-कश्मीर सरकार" का अर्थ है "जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल तथा मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना"।
- सरकार ने संविधान में संशोधन करके अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता को कम करने की मांग की, जिसके लिये संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
- इस प्रावधान को वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इसने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35A को केवल राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से जोड़ा।
- जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना अनुच्छेद 3 का उल्लंघन है, क्योंकि विधेयक को राज्य विधानसभा द्वारा राष्ट्रपति को नहीं भेजा गया था।
- राज्य के पुनर्गठन में, राष्ट्रपति के आदेश को भी राज्य की सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है। हालाँकि,जम्मू-कश्मीर वर्तमान में राज्यपाल के अधीन है, राज्यपाल की सहमति को सरकार की सहमति माना जाता है।
संभावित परिणाम
आतंकवाद में वृद्धि: अनुच्छेद 370 को कश्मीरियों ने अपनी अलग पहचान और स्वायत्तता के रूप में चिन्हित किया है।
- अनुच्छेद 370 के कमज़ोर पड़ने की प्रतिक्रिया के रूप में व्यापक विरोध और हिंसा की संभावना है।
- पाकिस्तान के आतंकवादी तत्व भारत में आतंकवाद फ़ैलाने के लिये कश्मीर का आसानी से उपयोग कर सकते हैं।
- कश्मीर में अशांति उसकी लोकतांत्रिक प्रगति को प्रभावित कर सकती है।
आगे की राह
- कश्मीर के उत्थान के लिये शिक्षा तथा रोज़गार हेतु लगभग 10 साल की रणनीति को लागू किया जाना चाहिये।
- कश्मीर में वैधता के संकट को हल करने के लिये अहिंसा और शांति का गांधीवादी रास्ता अपनाया जाना चाहिये।
- सरकार सभी कश्मीरियों के लिये एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करके धारा 370 हटाए जाने से उत्पन्न चुनौतियों को कम कर सकती है।
- इस संदर्भ में कश्मीर समस्य के समाधान के लिये अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद और लोकतंत्र) के प्रारूप को राज्य में सुलह हेतु आधारशिला बनाना चाहिये।