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भूगोल

स्टेपी तुल्य जलवायु एवं वर्तमान खाद्य सुरक्षा

  • 26 Aug 2020
  • 10 min read

स्टेपी तुल्य जलवायु को समशीतोष्ण महाद्वीपीय जलवायु तथा समशीतोष्ण ग्रासलैंड जलवायु के नाम से भी जाना जाता है।

वितरण (Distribution):

  • इसका विकास समशीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (मध्य अक्षांश) के पछुवा पवन प्रभाव वाली पेटी में होता है। साथ ही यह दोनों गोलार्द्धों में महाद्वीपों के आंतरिक भागों में विकसित होता है।
  • सामान्यत: वर्षा करने वाली पवनें महाद्वीपों के आंतरिक भागों तक नहीं पहुँच पाती जिससे महाद्वीपीय के प्रभाव में वृद्धि होती है।
  • महाद्वीपीय प्रभाव के कारण इन जलवायु प्रदेशों में लंबी एवं छोटी दोनों प्रकार की घास के मैदानों का विकास बहुतायत में हुआ है। साथ ही यहाँ वृक्षों का सामान्यत: अभाव (Treeless) पाया जाता है।
  • गौरतलब है कि वृक्षों के अभाव तथा मध्यम एवं कम ऊँचाई वाली घास के मैदानों के विकास का प्रमुख कारण वार्षिक वर्षा की कमी है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों का देशांतरीय विस्तार अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण महाद्वीपीय प्रभाव अधिक होता है। परंतु दक्षिणी गोलार्द्ध में सागरीय प्रभाव भी पाया जाता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में इनका विकास अपेक्षाकृत अधिक हुआ है।
  • इन घास के मैदानों (Temperate Grasslands) को यूरेशिया में स्टेपीज (Steppes) कहा जाता है।
  • समशीतोष्ण घास के मैदानों को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
क्रम संख्या  क्षेत्र  घास के मैदान का नाम
1 हंगरी एवं उसके आस-पास का क्षेत्र पुस्ताज़ (Pustaz)
2 उत्तरी अमेरिका प्रेयरीज़ (Prairies)
3 अर्जेंटीना एवं उरुग्वे पम्पास (Pampas)
4 साउथ अफ्रीका वेल्ड्स (Velds)
5 आस्ट्रेलिया डाउन्स (Dawns)
6 न्यूजीलैंड कैन्टरबरी (Canterbury)

तापमान (Temperature)

  • महाद्वीपीय प्रभाव के कारण गर्मियों एवं सर्दियों का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है।
  • जहां ग्रीष्म काल में तापमान 26° सेंटीग्रेड रहता है वहीं शीतकाल में तापमान 10° सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है।
  • महाद्वीपीय प्रभाव अधिक होने के कारण वार्षिक तापांतर अधिक पाया जाता है। उत्तर गोलार्द्ध में वार्षिक तापांतर दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा अधिक रहता है।
  • गौरतलब है कि चिनूक रॉकी पर्वत के पश्चिमी ढलानों पर खूब वर्षा करती है (पवन अभिमुख ढलान पर), वहीं रॉकी पर्वत को पार करके जब यह पूर्वी ढलान पर नीचे उतरती है तो ये गर्म तथा शुष्क हो जाती है।
  • पूर्वी ढलान के साथ-साथ नीचे उतरने पर यह तापमान में तेज़ी से वृद्धि करती है जिसके परिणामस्वरूप प्रेयरीज के मैदानों की बर्फ पिघल जाती है। इसी कारण इन्हें हिमभक्षी (Snow Eaters) भी कहा जाता है।
  • चिनूक के कारण प्रेयरीज़ के मैदानों में कृषि एवं पशुपालन को बढ़ावा मिलता है क्योंकि यह बर्फ को पिघलाने के साथ-साथ तापमान में पर्याप्त वृद्धि करती है।

प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegitation)

  • प्राकृतिक वनस्पति के रूप में यहाँ मध्यम एवं कम लंबाई की घास बहुतायत में पाई जाती है। व्यावहारिकता में ये प्रदेश वृक्षविहीन होते हैं।
  • यहाँ घास लंबी होने के साथ-साथ पोषक तत्त्वों से भरपूर होती है।
  • कम वर्षा एवं अनुपजाऊ भूमि वाले एशिया के आंतरिक महाद्वीपीय क्षेत्रों में घास की लंबाई अपेक्षाकृत कम होती है।
  • ध्रुवों की ओर बढ़ने पर वर्षा में वृद्धि होने के कारण घास के साथ-साथ शंकुधारी वृक्ष भी पाए जाते हैं।
  • इन क्षेत्रों में पशु विविधता कम होती है। एशियाई स्टेपीज में घोड़े पाए जाते हैं।

वर्तमान खाद्य सुरक्षा

  • खाद्य सुरक्षा में मुख्यत: तीन बिंदुओं यथा खाद्य की उपलब्धता (Availability), पहुँच (Accessibility) एवं वहनीयता (Affordability) पर ध्यान दिया जाता है।
  • वस्तुत: प्रत्येक व्यक्ति के लिये पर्याप्त मात्रा में पोषणयुक्त भोजन वहनीय कीमत पर उपलब्ध कराना ही खाद्य सुरक्षा कहलाता है।
  • वर्तमान में हालाँकि वैश्विक स्तर पर वृहद् मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन हो रहा है, फिर भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी एवं कुपोषण के शिकार हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAD), कृषि संबंधी विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD), यूनिसेफ (UNICEF), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संयुक्त रूप से जारी रिपोर्ट ‘‘विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति, 2019’’ विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति पर विस्तृत प्रकाश डालती है-
    • रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 821.6 मिलियन लोगों को पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं था।
    • 2015-2018 तक के तीन वर्षों में भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या में लगभग 11% की वृद्धि हुई है।
    • अफ्रीका में अल्पोषण के मामले सर्वाधिक है जो कि 20% है। वहीं एशिया की 11% जनसंख्या अल्पोषण की चपेट में है।
    • रिपोर्ट के अनुसार विश्व में हर नौवाँ व्यक्ति भुखमरी का शिकार है।
    • विश्व में लगभग 2 बिलियन लोग खाद्य सुरक्षा के मध्यम स्तर और गंभीर स्तर से प्रभावित है जो विश्व जनसंख्या का 26.4 % है।
    • 5 वर्ष से कम उम्र के कुल बच्चों की मृत्यु में 45% योगदान मातृत्व एवं बाल कुपोषण का है।
    • रिपोर्ट के अनुसार विगत वर्षों में भारत में भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या में कमी आई है।

खाद्य सुरक्षा एवं स्टेपी तुल्य जलवायु

  • स्टैपी तुल्य जलवायु प्रदेशों में विस्तृत क्षेत्र पर गेहूँ का उत्पादन एवं पशुपालन किया जाता है जिसका खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • गौरतलब है कि इन घास के मैदानों में व्यापक स्तर पर एवं मशीनीकृत गेहूँ के उत्पादन के कारण इसे ‘विश्व का अनाज भंडार’ (Granaries of World-Prairies) कहा जाता है।
  • गेहूँ के साथ-साथ मक्का का उत्पादन भी इन प्रदेशों में वृहत स्तर पर होता है।
  • स्प्रिंग एवं विंटर (Spring and Winter) दोनों प्रकार के गेहूँ का उत्पादन होता है।
  • ये गेहूँ के बड़े निर्यातक क्षेत्र माने जाते हैं। यथा- कनाडा गेहूँ के कुल उत्पादन का 3/4 भाग यूरोप को निर्यात करता है।
  • इसके अतिरिक्त समशीतोष्ण घास के मैदान विश्व के सबसे बड़े पशुपालन क्षेत्रों में शामिल हैं।
  • पशुपालन मांस एवं दुग्ध उत्पादन दोनों उद्देश्यों से किया जाता है जो कि खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • बीफ (Beef), मटन (Mutton), दूध, मक्खन, पनीर आदि प्रमुख पशु उत्पाद है।
  • पुस्ताज़ (Pustaz) में चरनोज़म मृदा की उपस्थिति के कारण चुकंदर वृहद् स्तर पर उगाया जाता है।
  • पम्पास में दुग्ध एवं गेहूँ उत्पादन बड़े स्तर पर होता है।
  • घास के वृहद् मैदानों की उपस्थिति के कारण ही इस प्रदेश में कृषि का मशीनीकरण संभव हुआ है।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किये बिना सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) विशेषत: SDG-1, SDG-2 एवं SDG-3 को प्राप्त नहीं किया जा सकता वहीं स्टैपी तुल्य जलवायु प्रदेश अपनी खाद्यान्न एवं पशु उत्पाद की विशाल उत्पादन क्षमता के कारण खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस तरह इस क्षमता का अधिकतम उपयोग कर विश्व में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।

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