भारत की दार्शनिक प्रवृत्तियाँ
भारत में पहली शताब्दी से पूर्व ही 6 आस्तिक व 3 नास्तिक दार्शनिक मतों का प्रतिपादन हो चुका था।
प्राचीन भौतिक दर्शन
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प्रणेता
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उच्छेदवाद |
अजित केश कम्बलिन |
अक्रियावादी |
पूरण कश्यप |
नित्यवादी |
पकुद कच्चायन |
नियतिवादी |
मक्खलि गोशाल |
अनिश्चयवादी |
संजय वेलट्पुत्त |
- आस्तिक मत को षडांग दर्शन सिद्धांत कहते हैं जिसमें सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत शामिल हैं।
- नास्तिक मत में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक प्रमुख हैं, इसे भौतिकतावादी दर्शन भी कहते हैं।
सांख्य
- कपिल मुनि द्वारा प्रवर्तित इस दर्शन को भारत का प्राचीनतम दर्शन माना जाता है।
- इनकी रचना है- तत्त्व समास।
- बाद के आचार्यों में ईश्वरकृष्ण प्रमुख हैं और उनका ग्रंथ ‘सांख्यकारिका’ प्रसिद्ध है।
- इसमें सत्कार्यवाद, विकासवाद तथा भौतिकता के साथ-साथ संख्या आधारित आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता प्रसिद्ध है।
योग दर्शन
- इसके प्रणेता पतंजलि हैं जिन्होंने ‘योगसूत्र’ नामक ग्रंथ की रचना की।
- ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का निग्रह, योगमार्ग का मूलाधार है।
- भारत के इस दर्शन की महत्ता ऐसी रही कि वर्तमान दौर में यू.एन.ओ. द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है।
न्याय
- न्याय-दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम माने जाते हैं, जिनका ग्रंथ ‘न्यायसूत्र’ इस दार्शनिक प्रवृत्ति का पहला ग्रंथ माना जाता है।
- 12वीं सदी में न्याय दर्शन को नया रूप गंगेश उपाध्याय ने अपने ग्रंथ ‘तत्त्व चिंतामणि’ में दिया।
- इस दर्शन में तर्क और प्रमाण के प्रयोग का महत्त्व प्रतिपादित हुआ है।
वैशेषिक
- इस दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं जिन्होंने ‘कणाद-सूत्र’ रचा।
- इन्होंने द्रव्य अर्थात् भौतिक तत्त्वों का विवेचन करते हुए परमाणुवाद की स्थापना की।
मीमांसा
- कर्मकांड, यज्ञ आधारित इस दर्शन के प्रतिपादन में आचार्य जैमिनी का नाम अग्रगण्य है।
- मीमांसा के अनुसार वेदों में कही गई बातें सदा सत्य हैं।
- यह पुरोहितवाद, बाह्य आडंबर को बढ़ावा देने वाला दर्शन है।
वेदांत
- ईसा-पूर्व दूसरी सदी में संकलित बादरायण का ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रंथ है। इसे उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।
- बाद में इस पर दो प्रख्यात भाष्य शंकराचार्य (9वीं सदी) और रामानुज (12वीं सदी) द्वारा लिखे गए।
वेदांत आधारित अन्य दार्शनिक मत
भाष्यकार |
वाद |
भाष्य |
शंकराचार्य (8–9वीं सदी) |
अद्वैतवाद |
शंकरभाष्य |
रामानुजाचार्य (11–12वीं सदी) |
विशिष्टाद्वैतवाद |
श्रीभाष्य |
मध्वाचार्य (13–14वीं सदी) |
द्वैतवाद |
पूर्णप्रज्ञभाष्य |
वल्लभाचार्य (15–16वीं सदी) |
शुद्धाद्वैतवाद |
अणुभाष्य |
निम्बार्काचार्य (13वीं सदी) |
भेदाभेदवाद |
वेदांत परिजात सौरभ |
- ज्ञान आधारित इस दर्शन की पृष्ठभूमि में उपनिषद् था और ब्राह्मण-हिन्दू धर्म का अधिकांश दार्शनिक मतवाद इसी वेदांत दर्शन से प्रभावित-प्रेरित रहा है।