पाल वंश | 29 Nov 2022

पाल कौन थे?

  • पाल साम्राज्य की स्थापना गोपाल ने संभवत: 750 ई. में की थी।
  • पाल वंश का शासन 8वीं से 12वीं शताब्दी तक रहा।
  • भाषा: संस्कृत, प्राकृत और पाली।
  • "पाल" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "रक्षक"। इसे सम्राटों के नाम के साथ जोड़ा गया, जिससे साम्राज्य का नाम "पाल" हो गया।
  • पाल महायान बौद्ध धर्म के कट्टर समर्थक थे।
  • उनके शासन काल में विभिन्न महाविहार, स्तूप, चैत्य, मंदिर और किले बनाए गए।

पाल वंश के प्रमुख शासक कौन थे ?

  • गोपाल (750-770 ईस्वी):
    • पाल वंश की स्थापना गोपाल ने की थी, जो राज्य के पहले सम्राट भी थे।
    • उन्होंने बंगाल को अपने नियंत्रण में एकीकृत किया और यहां तक ​​कि मगध (बिहार) को भी अपने नियंत्रण में ले लिया।
    • बिहार के ओदंतपुरी में मठ की स्थापना गोपाल ने की थी।
    • धर्म परिवर्तन के बाद उन्हें बंगाल का पहला बौद्ध सम्राट माना गया।
    • उनके शासनकाल में कन्नौज और उत्तर भारत पर नियंत्रण के लिये पालों, प्रतिहारों और राष्ट्रकूटों के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष द्वारा चिह्नित किया गया था।
  • धर्मपाल (770-810 ई.):
    • लगभग 770 ई. में धर्मपाल गोपाल के बाद शासक बना।
    • धर्मपाल पाल साम्राज्य का दूसरा शासक था। वे गोपाल के पुत्र थे।
    • उसने प्रतिहारों और राष्ट्रकूटों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं।
    • धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया और एक भव्य दरबार आयोजित किया।
    • उन्होंने परमभट्टारक, परमेश्वर और महाराजाधिराज सहित इस अवधि की सबसे बड़ी शाही उपाधियाँ लीं।
  • देवपाल (810-850 ई.):
    • देवपाल राष्ट्रकूट वंश की राजकुमारी धर्मपाल और रन्नादेवी के पुत्र थे।
    • देवपाल ने असम, ओडिशा और कामरूप के राज्यों सहित पूर्वी भारत में साम्राज्य का विस्तार किया था।
    • उसने मगध में मंदिरों सहित कई मठों का निर्माण करवाया था।
    • देवपाल ने उत्तर, दक्कन और प्रायद्वीप में छापे मारे।
  • महिपाल प्रथम:
    • 988 ई. में महिपाल-प्रथम गद्दी पर बैठा।
    • जब महिपाल प्रथम सत्ता में आया तो पाल साम्राज्य एक बार फिर फलने-फूलने लगा और उसने बंगाल और बिहार के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लिया।
    • माना जाता है कि महिपाल प्रथम ने अपने भाइयों स्थिरपाल और वसंतपाल के साथ मिलकर वाराणसी पर विजय प्राप्त की थी।

पाल शासन में किस प्रकार की राजनीति अस्तित्व में थी?

  • पाल राजाओं (परमभट्टारक, परमेश्वर और महाराजाधिराज के रूप में संदर्भित) ने ब्राह्मणों, पुजारियों और मंदिरों को भूमि अनुदान दिया। ये अनुदान स्थायी थे।
  • उन्होंने बौद्ध मठों को भूमि अनुदान भी दिया।
  • पाल अनुदान विशेष रूप से कानून और व्यवस्था के रखरखाव और न्याय प्रशासन से संबंधित हैं।
  • भूमि अनुदान कैवर्तों को भी दिया जाता था जो किसान थे।
  • पाल अभिलेखों (भूमि चार्टर्स) में राजाओं, राजपुत्रों, राणाकों, राजराजनाकों, महासामंतों, महासामंतधिपतियों आदि का उल्लेख है। वे संभवतः सामंत थे जिन्हें सैन्य सेवाओं के बदले भूमि दी गई थी।
    • पाल के अधीन अधीनता का कोई प्रमाण नहीं है।
  • शाही अधिकारियों का उल्लेख शिलालेखों में मिलता है, जो बंगाल और बिहार के साम्राज्य पर शासन करते प्रतीत होते हैं।
  • पाल अधिकारियों के लिये उपयोग की जाने वाली कुछ उपाधियाँ महा-दौस्सद्धसाधनिका, महाकर्तकिका, महासंधिविग्राहिका आदि हैं।
  • पाल सत्ता कई स्थानों से संचालित होते थे। पाटलिपुत्र, मुद्गगिरि आदि सभी गंगा तट पर स्थित हैं।
  • पाल के अधीन गाँवों को क्रमशः ग्रामपति और दसग्रामिका के प्रभार के तहत एक और दस की इकाइयों में बांटा गया था।
  • वे इन इकाइयों के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार शाही अधिकारी थे। पालों के अधीन सेवा अनुदानों से संबंधित अभिलेखीय साक्ष्य हमारे पास बहुत कम हैं।

पाल के शासनकाल में किस प्रकार की कला और वास्तुकला का विकास हुआ?

  • पाल के शासनकाल के दौरान, बंगाल और बिहार के भारतीय राज्यों में कला और वास्तुकला का विकास हुआ।
  • पाल राजवंश में कला और वास्तुकला के क्षेत्र में "पाल मूर्ति कला" नामक विशिष्ट कला विकसित हुई।
  • उस समय की कला और वास्तुकला में बंगाली समाज के कई क्षेत्रीय पहलू पाए जा सकते हैं।
  • पाल राजवंश की कला और स्थापत्य कला में टेराकोटा, मूर्तिकला और चित्रकला को महत्त्व दिया गया था।
  • पहाड़पुर में धर्मपाल, सोमपुरा महाविहार का निर्माण, पाल वंश के बेहतरीन वास्तुशिल्प में से एक है।
  • महान मठ, जिसे सोमपुरा महावीर के नाम से भी जाना जाता है, 12वीं शताब्दी तक एक प्रसिद्ध बौद्धिक केंद्र था।
  • विक्रमशिला विहार, ओदंतपुरी विहार, और जगद्दल विहार सभी में विशाल निर्माण हैं जिन्हें पाल की कला का काम माना जाता है।
  • पाल राजवंश कला और वास्तुकला की अमूल्य कृतियाँ बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं, जो काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • इस अवधि के दौरान उत्तम नक्काशी और कांस्य की मूर्तियां फली-फूलीं।
  • स्थापत्य विस्तार के उन्नत स्तर पर विभिन्न बौद्ध विहारों का उदय हुआ।
  • टेराकोटा से सजीले पट्टिका पाल काल की कलात्मक प्रतिभा का एक और उदाहरण हैं।
  • इन पट्टिकाओं का उपयोग दीवार की सतह की सजावट के रूप में किया जाता है और बंगाल के कलाकारों द्वारा एक विशिष्ट तरह के कार्य के रूप में पहचाना जाता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. भारत के इतिहास की निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020)

  1. राजा भोज के अधीन प्रतिहारों का उदय
  2. महेन्द्रवर्मन-प्रथम के अधीन पल्लव प्रभाव की स्थापना
  3. परांतक-I द्वारा चोल प्रभाव की स्थापना
  4. गोपाल के द्वारा पाल वंश की स्थापना

उपर्युक्त घटनाओं का सबसे प्रारंभिक समय से सही कालानुक्रमिक क्रम क्या है?

 (A) 2 - 1 - 4 - 3
 (B) 3 - 1 - 4 - 2
 (C) 2 - 4 - 1 - 3
 (D) 3 - 4 - 1 - 2

 उत्तर: (C)

  • पल्लव वंश 275 CE से 897 CE तक अस्तित्व में था, जो दक्षिणी भारत के एक हिस्से पर शासन कर रहा था। पल्लव महेंद्रवर्मन प्रथम (571-630 CE) के शासनकाल के दौरान एक प्रमुख शक्ति बन गए, जिन्होंने वर्तमान आंध्र क्षेत्र के दक्षिणी भाग और वर्तमान तमिलनाडु के उत्तरी क्षेत्रों पर शासन किया।
  • पाल वंश ने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक बिहार और बंगाल में शासन किया। इसके संस्थापक, गोपाल (750-770 CE), एक स्थानीय मुखिया थे, जो अराजकता की अवधि के दौरान आठवीं शताब्दी के मध्य में सत्ता में आए।
  • आठवीं शताब्दी के मध्य से मध्यदेश पर प्रभुत्व राजस्थान में आदिवासी लोगों के बीच दो विशेष कुलों की महत्त्वाकांक्षा बन गया, जिन्हें गुर्जर और प्रतिहार के रूप में जाना जाता है। 851 CE के एक समकालीन अरब अकाउंट के अनुसार, राजा मिहिर भोज (840-851 CE), प्रतिहार राजाओं में सबसे महान, भारत के उन राजकुमारों में से थे जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
  • चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की थी। चोलों का शासन 9वीं शताब्दी में शुरू हुआ जब उन्होंने सत्ता में आने के लिये पल्लवों को हराया।  मध्ययुगीन काल चोलों के लिये पूर्ण शक्ति और विकास का युग था।  परान्तक प्रथम (907-953 तक शासन किया) ने राज्य की नींव रखी। उसने उत्तरी सीमा को नेल्लोर (आंध्र प्रदेश) तक ले लिया, जहां राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के हाथों हार से उसकी उन्नति रुक ​​गई।  परान्तक दक्षिण में अधिक सफल रहा जहाँ उसने पांड्यों और गंगों दोनों को हराया।

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।


मुख्य परीक्षा

प्र. भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिये (वर्ष 2020)