भूमध्यसागरीय जलवायु | 16 Jun 2020
भूमिका:
- किसी विस्तृत क्षेत्र पर विभिन्न मौसमों के दीर्घकालीन औसत को जलवायु कहते हैं।
- विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है। जलवायु में यह भिन्नता तापमान, आर्द्रता, वर्षा एवं जलवायु के अन्य घटकों में भिन्नता के कारण होती है।
- विश्व को जलवायु घटकों के सम्मिलित प्रभाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न जलवायविक दशाओं में समरूपता (एकरूपता) के आधार पर विभिन्न जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है।
- भूमध्यसागरीय जलवायु भी इसी प्रकार विश्व के विभिन्न भागों में पाई जाती है।
भूमध्यसागरीय जलवायु:
- भूमध्य सागर या रुमसागर के आस-पास विकसित होने के कारण ही इसका नाम भूमध्य सागरीय जलवायु रखा गया है।
- इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्म ऋतु शुष्क रहती है। तापमान अपेक्षाकृत अधिक तथा आसमान साफ होता है, वहीं शीत ऋतु में वर्षा होती है।
भूमध्यसागरीय जलवायु का विस्तार:
- इस जलवायु प्रदेश का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर लगभग 30º से 45º अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में पाया जाता है।
- इस जलवायु के अंतर्गत फ्राँस, दक्षिण इटली, यूनान, पश्चिमी तुर्की, सीरिया, पश्चिमी इज़राईल, अल्जीरिया तथा उत्तरी अमेरिका का कैलिफ़ोर्निया, दक्षिण अमेरिका का चिली एवं दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के राज्य शामिल हैं।
- इस प्रकार की जलवायु के विस्तार का प्रमुख कारण वायु दाब पेटियों में होने वाला स्थानांतरण (Shifting) है।
- ग्रीष्म काल से उत्तरायण की स्थिति के कारण वायुदाब की सभी पेटियाँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं, जिसके कारण इन जलवायु प्रदेशों में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब का विस्तार हो जाता है।
- इसकी वजह से प्रतिचक्रवाती दशाएँ एवं व्यापारिक पवनों की उपस्थिति होती है।
- इसी प्रकार शीतकाल में जब दक्षिणायन की स्थिति होती है तो वायुदाब की पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों में पछुवा पवनों का प्रभाव होता है।
- इसके कारण मध्य अक्षांशों में उत्पन्न चक्रवातों का भी आगमन होता है जिससे वर्षा भी होती है।
मुख्य विशेषताएँ:
- यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 35 – 90 सेंटीमीटर तक होती है।
- सबसे गर्म माह में तापमान 10ºC या इससे अधिक रहता है, जबकि सबसे ठंडे माह का तापमान 18ºC से कम परंतु -3ºC से अधिक रहता है।
- जल निकायों की उपस्थिति से शीतलन प्रभाव के कारण इस जलवायु में चरम विशेषताओं का अभाव रहता है।
भूमध्यसागरीय वनस्पति:
- यहाँ के वृक्षों की पत्तियाँ छोटी, चौड़ी एवं मोटी होती हैं तथा वृक्षों की ऊँचाई व सघनता कम होती है। सामान्यत: घनी छाया का अभाव पाया जाता है।
- क्योंकि ग्रीष्मकालीन मौसम शुष्क होता है इसलिये इन प्रदेशों में कड़ी पत्तियों वाली तथा सूखे को सहन करने वाली प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है।
- इसके अलावा पत्तियों में नमी को संरक्षित करने की क्षमता भी पाई जाती है।
- यहाँ चीड़, ओक, सीडर, मैड्रोन, वालनट, चेस्टनट, कॉर्कवुड (CorkWood) आदि प्रमुख वृक्ष पाए जाते हैं।
- कॉर्कवुड का उपयोग शराब उद्योग में किया जाता है।
- इसके अलावा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में यूकेलिप्टस के वन बहुतायत में पाए जाते हैं।
- कुल मिलाकर जीरोफाइट (Xerophyte) प्रकार के पौधे अधिक पाये जाते हैं।
- झाड़ियों का पाया जाना यहाँ की प्राकृतिक वनस्पतियों की सबसे प्रमुख विशेषता है।
- शीत ऋतु में वर्षा होने के कारण यहाँ की परिस्थितियाँ घास के अनुकूल नहीं होती है, क्योंकि वृद्धि कम होती है।
भूमध्यसागरीय जलवायु में कृषि:
- बागान कृषि-
- भूमध्यसागरीय क्षेत्र को ‘विश्व के बागानों’ की भूमि के नाम से जाना जाता है।
- यह रसीले फलों के लिये विख्यात है जिनमें संतरा, नींबू, सीट्रोंन, अंगूर, जैतून, अंजीर आदि प्रमुखता से पाए जाने वाले फल हैं।
- सिट्रस फलों के कुल वैश्विक निर्यात का लगभग 70 प्रतिशत निर्यात इन्हीं क्षेत्रों से होता है।
- फसलों की खेती एवं भेड़ पालन-
- गेहूँ प्रमुख रूप से खाद्यान्न फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके अतिरिक्त जौ की खेती भी होती है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले चारागाह एवं ठंडी जलवायु, बकरी एवं भेड़ पालन के लिये उपयुक्त होती है।
- मौसम के अनुसार चारागाह की खोज में लोग पहाड़ियों पर उपर व नीचे की ओर प्रवास करते हैं।
- शराब उत्पादन (Wine Production)-
- अंगूर की खेती विस्तृत रूप से होने के कारण इस क्षेत्र में मदिरा उत्पादन प्रचुरता में होता है।
- वैश्विक शराब उत्पादन का लगभग तीन चौथाई भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में होता है।
- अंगूर के कुल उत्पादन का लगभग 85% हिस्सा शराब के उत्पादन में उपयोग में लाया जाता है।
- वस्तुतः शराब उद्योग, बागान कृषि, सिट्रस फलों का निर्यात, पयर्टन-उद्योग यहाँ की प्रमुख आर्थिकी गतिविधियाँ हैं। यहाँ की जलवायु एवं भूदृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।