महमूद गजनवी | 26 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:महमूद गजनवी, गजनवी साम्राज्य का पतन और गोरी साम्राज्य का उदय, सोमनाथ मंदिर की लूट। मेन्स के लिये:महमूद गजनवी और सोमनाथ मंदिर की लूट। |
महमूद गजनवी:
- महमूद गजनवी सुबुक-तगीन का पुत्र था जो गजनी के पहले स्वतंत्र शासक के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- महमूद गजनवी 999 ईस्वी से लगातार हमले जारी रखे।
- ‘महमूद गजनवी’ की उपाधि इसके सिक्कों पर नहीं मिलती, जहाँ उसे केवल ‘अमीर महमूद’ के रूप में दर्ज किया गया था।
- जयपाल से युद्ध:
- उसने 1001 ई. में जयपाल (पाल राजवंश) के विरुद्ध भीषण युद्ध किया।
- यह घुड़सवार सेना और कुशल सैन्य रणनीति का युद्ध था।
- जयपाल को महमूद की सेनाओं ने बुरी तरह से परास्त किया और उसकी राजधानी वैहिंद/पेशावर को तबाह कर दिया।
- जयपाल का उत्तराधिकरी उसका पुत्र आनंदपाल/अनंतपाल हुआ जिसने अपने क्षेत्र में तुर्की आक्रमणों को चुनौती देना जारी रखा।
- उसने 1001 ई. में जयपाल (पाल राजवंश) के विरुद्ध भीषण युद्ध किया।
- आनंदपाल के साथ युद्ध:
- पंजाब में प्रवेश करने से पहले महमूद को अभी भी सिंधु के पास आनंदपाल की सेना के साथ संघर्ष करना था।
- कठिन संघर्ष के बाद उनकी सेना ने 1006 ई. में ऊपरी सिंधु पर विजय प्राप्त कर ली।
- आनंदपाल युद्ध में पराजित हुआ और उसे भारी वित्तीय एवं क्षेत्रीय हानि उठानी पड़ी।
- यह उसके द्वारा महमूद का अंतिम प्रतिरोध था।
- लाहौर और मुल्तान का विलय:
- 1015 ई. महमूद ने लाहौर पर कब्ज़ा करते हुए झेलम नदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया।
- मुल्तान, जिस पर एक मुस्लिम सुल्तान का शासन था और जिसका आनंदपाल के साथ गठबंधन था, भी महमूद द्वारा जीत लिया गया।
- इस तरह महमूद ने पूर्वी अफगानिस्तान और फिर पंजाब एवं मुल्तान को जीतते हुए भारत में प्रवेश किया।
- पंजाब के बाद उसने धन प्राप्ति के लिये गंगा के मैदानों में तीन अभियान किये।
- गंगा के मैदान में अभियान:
- उसके 1019 और 1021 ई. में गंगा घाटी में दो और हमले किये।
- आगे उसका लक्ष्य गंगा के मैदानों में अपने हमलों के माध्यम से धन अर्जित करना था।
- सर्वप्रथम गंगा की घाटी में एक राजपूत गठबंधन को तोड़ना था।
- 1015 ई. के अंत में वह हिमालय की तलहटी से होते हुए आगे बढ़ा और कुछ सामंती शासकों की मदद से बरन या बुलंदशहर के स्थानीय राजपूत शासक को पराजित किया।
- महमूद ने हिंदू शाही और चंदेल शासकों को हराया।
- ग्वालियर के राजपूत राजा ने महमूद के विरुद्ध हिंदू शाही सम्राट की सहायता की थी।
- उत्तर भारत में इस तरह के अभियानों का उद्देश्य पंजाब से आगे महमूद के साम्राज्य का विस्तार करना नहीं था।
- वे केवल एक ओर राज्यों की संपत्ति को लूटना चाहते थे तो दूसरी ओर ऊपरी गंगा दोआब को बिना किसी शक्तिशाली स्थानीय गढ़ के एक तटस्थ क्षेत्र बनाना चाहते थे।
- भारत में लूट से अर्जित धन ने मध्य एशिया में अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में उसकी मदद की।
- अन्य:
- महमूद का अंतिम बड़ा आक्रमण 1025 ई. में गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर पर हुआ था।
- कश्मीर को जीतने की महमूद की इच्छा अधूरी रही जहाँ 1015 ई. में प्रतिकूल मौसम के कारण उसकी सेना को हार का सामना करना पड़ा। यह भारत में उसकी पहली हार थी।
- उसने ईरान में भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया और बगदाद के खलीफा से मान्यता प्राप्त की।
- वह एक साहसी योद्धा था जिसकी वृहत सैन्य क्षमताएँ और राजनीतिक उपलब्धियाँ रहीं।
- उसने गजनी के छोटे से राज्य को एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य में बदल दिया था, जिसमें वर्तमान अफगानिस्तान का अधिकांश भूभाग, पूर्वी ईरान और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्र शामिल थे।
मध्य एशिया और भारत में गजनवी साम्राज्य का पतन गोरी साम्राज्य का उत्थान
- भारत से लूटे गए भारी धन के बावजूद महमूद एक सुयोग्य शासक नहीं बन सका।
- उसने अपने राज्य में किसी स्थायी संस्था का निर्माण नहीं किया और गजनी के बाहर उसका शासन क्रूर एवं अत्याचारी रहा।
- गजनवी साम्राज्य और सल्जूक साम्राज्य के बीच स्थित गोर के एक छोटे और अलग-थलग प्रांत में गोरियों का अप्रत्याशित उदय 12वीं शताब्दी की एक असाधारण घटना थी।
- गोर वर्तमान अफगानिस्तान भूभाग के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में से एक था।
- यह पश्चिमी अफगानिस्तान में हेरात नदी की उर्वर घाटी में गजनी के पश्चिम और हेरात प्रांत के पूर्व में स्थित था। चूँकि यह एक पर्वतीय भूभाग था, यहाँ का मुख्य व्यवसाय पशुपालन या कृषि था।
- 10वीं सदी के अंत और 11वीं सदी के आरंभ में गजनवियों द्वारा इस इलाके का ‘इस्लामीकरण’ हुआ था।
- गोरी शासक या शंसबनी सामान्य स्थानिक सरदार थे। उन्होंने 12वीं शताब्दी के मध्य में हेरात में हस्तक्षेप करके स्वयं को सर्वोच्च बनाने की कोशिश की, जब इसके गवर्नर ने संजर नामक सल्जूक शासक के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था।
- गोरियों के इस कृत्य से गजनवियों को ख़तरा महसूस हुआ; उन्होंने गोरी शासक अलाउद्दीन हुसैन शाह के भाई को पकड़ लिया और उसे विष देकर मार दिया।
- इसके बदले में उसने गजनवी शासक बहराम शाह को हराकर गजनी शहर पर कब्जा कर लिया।
- गजनवी शहर को लूट लिया गया और पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया।
- इसी विजय के बाद अलाउद्दीन को जहाँ सोज़ की उपाधि दी गई थी।
- इस घटना ने गजनवियों के पतन और गोरियों के उदय को चिह्नित किया।
सोमनाथ की लूट
- 1025-26 ई. में महमूद ने गुजरात पर अपना अंतिम आक्रमण किया और अत्यंत समृद्ध सोमनाथ मंदिर की लूट के साथ अपनी सफलताओं को सुदृढ़ किया।
- दावा किया जाता है सोमनाथ मंदिर में किसी भी समय 100,000 तीर्थयात्री एकत्र रहते थे और 1,000 ब्राह्मण मंदिर की सेवा तथा इसके खजाने की देखभाल में संलग्न थे। सैकड़ों नर्तक और गायक मंदिर द्वार के समक्ष अपना कला-प्रदर्शन करते रहते थे।
- मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित था जो शानदार रत्नों और सुसज्जित कैंडेलबरा में चमकता रहता था। इसके प्रतिबिंब भव्य लटकनों में दिखाई देते थे और इसमें सितारों के आकार में कीमती पत्थरों के साथ कढ़ाई की गई थी।
- महमूद मुल्तान से अन्हिलवाड़ तक और फिर तटीय क्षेत्र में अपने श्रमसाध्य अभियान पर आगे बढ़ता गया जहाँ रास्ते में युद्ध और कत्ल-ए-आम जारी रखा। अंततः वह मंदिर के किले तक पहुँचा जो अरब सागर के किनारे स्थित था।
- धर्मस्थल के प्रहरी और सेवकों के रूप में नियुक्त लोगों की भारी संख्या की परवाह न करते हुए उसने और उसके सैनिकों ने किले पर धावा बोल दिया और लगभग 50,000 हिंदुओं की हत्या कर दी।
- महमूद लूट का भारी माल लिये गजनी लौटा तो भारत और अन्य क्षेत्रों में उसके अभियानों के साथी रहे आक्रमणकारी-सैनिक लुटेरों को लाखों का इनाम मिला। वह अपने साथ मंदिर का द्वार भी ले गया था जिसे गजनी में खड़ा किया गया।
- सोमनाथ पर आक्रमण के कारण नवीं सदी के प्रत्येक मुसलमान के लिये महमूद गजनवी इस्लाम के नायक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ जिसने हिंदू विश्वास-प्रणाली पर हमला किया था। दूसरी ओर भारत में उसे देश और धर्म पर हमला करने वाले एक कट्टर इस्लामी हमलावर के रूप में देखा जाता है।