भारतीय मूर्तिकला (भाग-4) | 23 Feb 2019
सल्तनतकालीन मूर्तिकला
- मुसलमान शासकों के दौर में मूर्तिकला को राजकीय प्रश्रय न मिल पाने के कारण इसमें ह्रास आया, किंतु इसने अपना अस्तित्व नहीं खोया।
- स्थानीय व क्षेत्रीय स्तरों पर कोणार्क, जगन्नाथपुरी, विजयनगर एवं तंजौर की मूर्तियों का निर्माण सल्तनतकाल में ही हुआ।
मुगलकालीन मूर्तिकला
- यद्यपि मूर्तिकला मुगलकाल में भी राजकीय संरक्षण से दूर थी, तथापि संगतरासी का काम जारी था।
- अकबर की सहिष्णुता के कारण जयमल और फत्ता की मूर्तियाँ आगरा के किले में झरोखा दर्शन के तले बनाई गईं।
- मुगलकाल में हाथी दाँत से कलात्मक मूर्तियाँ बनाने की नई कला विकसित हुई।
आधुनिक काल/ ब्रिटिश काल की मूर्तिकला
- लखनऊ में इस दौरान मूर्तिकला से संबंधित महत्त्वपूर्ण आर्ट स्कूल खोला गया।
- बंगाल, मुम्बई, जयपुर, मद्रास, ग्वालियर, उत्तर प्रदेश एवं पंजाब मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्रों के रूप में ब्रिटिश काल में सामने आए।
- आज़ादी के बाद देवी प्रसाद राय चौधरी यूरोपीय शैली से विलग पहले ऐसे मूर्तिकार थे जिन्होंने भारतीय स्पर्श देने के साथ कांस्य माध्यम में काम किया।
- बिहार में पटना सचिवालय के सामने जो शहीद स्मारक है, उसे देवी प्रसाद राय चौधरी ने ही बनाया है।
- इनके बाद रामकिंकर बैज ने मूर्तिकला में नए आयाम जोड़े व भारतीय मूर्तिकला को सुदृढ़ आधार प्रदान किया।
- रामकिंकर बैज द्वारा 1938 में बनाई गई ‘संथाली परिवार’ की मूर्ति को बहुत प्रशंसा मिली।
- आज की मूर्तिकला में नए प्रयोग हो रहे हैं तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस से सुन्दर मूर्तियाँ निर्मित की जा रही हैं।
- जयपुर (राजस्थान) देश में मूर्तिकला का प्रमुख केन्द्र है।
- आधुनिक भारत में धातु कला के प्रमुख केन्द्र हैं- मद्रास, तिरुचिरापल्ली, तंजौर, मुम्बई, भुज तथा वाराणसी।
- तांबे एवं कांसे के धातु कार्य के लिये उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जनपद प्रमुख है।