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भारतीय मूर्तिकला (भाग -3)

  • 17 Feb 2019
  • 5 min read

पालकालीन मूर्तिकला

  • बंगाल के पाल शासक बौद्ध मतावलंबी थे, इसलिये उनके शासनकाल में बौद्ध कला को प्रश्रय मिला।
  • पाल युग में बुद्ध, अवलोकितेश्वर, मैत्रेय, हरिति, बोधिसत्व, मंजूश्री, तारा आदि की मूर्तियाँ बनीं।
  • पाल शैली में बनी मूर्तियों में भाव-भंगिमाओं की अधिकता, अलंकरण और लक्षणों की प्रधानता के तत्त्व प्रभावी रूप में दिखाई देते हैं।
  • पालकालीन मूर्तिकला पर सारनाथ कला का प्रभाव माना गया है, जिसके अंतर्गत हल्के, इकहरे बदन और पारदर्शी वस्त्र पहनी मूर्तियाँ प्रमुख हैं।
  • पालकालीन मूर्तियों का निर्माण गया और राजमहल (बिहार) से मिलने वाले भूरे और काले रंग के मुलायम बेसाल्ट पत्थरों से हुआ है।
  • पत्थरों के मुलायम होने के कारण मूर्तिकला के लक्षणों और वस्त्राभूषण को सूक्ष्मता से उकेरा जाना संभव हो सका।
  • पाल मूर्तियाँ लेखयुक्त हैं और उनमें तिथियाँ भी दी गई हैं।
  • पाल प्रतिमाओं में मुख्यत: दैव-मूर्तियों के ही उदाहरण मिलते हैं, इनमें लौकिक विषयों का अभाव रहा है।
  • पाल शैली में बनी बौद्ध, जैन और ब्राह्मण मूर्तियों में शैली के स्तर पर समानता है, किंतु आयुध, वाहन और लाक्षणिकता के स्तर पर भिन्नता है।
  • पाल मूर्तियों में तंत्र से प्रभावित बौद्ध देवी-देवताओं का सर्वाधिक लाक्षणिक अंकन मिलता है।
  • नालंदा, गया, काशीपुर, शंकरबंध, कुर्किहार आदि पाल मूर्तिकला के प्रमुख स्थल हैं।

बुंदेलखंड (खजुराहो) की मूर्तिकला

  • खजुराहो में शिल्प का उत्कर्ष काल 9वीं से 12वीं सदी के मध्य तक का माना जाता है।
  • खजुराहो में भी मंदिर की दीवारों, गर्भगृह, शिखर, प्रदक्षिणालय आदि जगहों पर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
  • खजुराहो की मूर्तियों में कलागत विकास के साथ-साथ काम-भावना के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
  • खजुराहो को विश्व-प्रसिद्धि दिलाने में मूर्तियों का बहुत योगदान है। इन्हें वस्त्राभूषणों से अलंकृत, अलौकिक और नृत्य-मुद्राओं में बनाया गया है।
  • खजुराहो में देवी-देवताओं, तीर्थंकरों और देव परिवार की मूर्तियों के साथ-साथ शृंगार-प्रधान मूर्तियाँ, लोक-जीवन की मूर्तियाँ एवं कल्पित पशु ‘व्याल’ (Vyal) की मूर्ति प्रमुख हैं।
  • खजुराहो के मंदिरों में काम-क्रीड़ा के दृश्यों की सर्वाधिक मूर्तियाँ बनी हैं।
  • रतिक्रिया में संलग्न ऐसी मूर्तियों में सामान्य और असामान्य दोनों प्रकार के संभोग के दृश्य हैं।

राजस्थान-गुजरात की मूर्तिकला

  • गुजरात के सोलंकी या चालुक्य राजाओं ने राजस्थान के सिरोही ज़िले में आबू पर्वत पर बने दिलवाड़ा जैन मंदिरों में बहुत शानदार कार्य करवाया।
  • इस काल की मूर्तियों की कला-शैली में समन्वयात्मक प्रवृत्ति देखने को मिलती है, जैसे दिलवाड़ा जैन मंदिर में कृष्ण लीलाओं का अंकन, मोढ़ेरा (गुजरात) के सूर्य मंदिर में अर्द्धनारीश्वर, हरिहर स्वरूपों के अलावा सूर्य, शिव, ब्रह्मा, विष्णु आदि का अंकन।
गोमतेश्वर मूर्ति- गंग-वंश से संबंधित मंत्री चामुण्ड राय ने पूर्वमध्यकाल में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में प्रथम तीर्थंकर के पुत्र बाहुबली की मान्यता पर आधारित सबसे भव्य और शानदार मूर्ति बनवाई जिसे गोमतेश्वर मूर्ति कहते हैं।धातु की नटराज मूर्ति चोल कला का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व करती है।
  • चालुक्य मूर्तियां समय के साथ-साथ संख्यात्मक रूप से बढ़ती चली गईं, इसलिये कुंभारिया के जैन मंदिर (राजस्थान), मोढेरा का सूर्य मंदिर (गुजरात) और उसका सभा मंडप मूर्तियों से आच्छादित हैं।
  • चालुक्य जैन मूर्तियों में अलंकरण व तकनीकी दक्षता तो बहुत है, परंतु मूर्तियों के मुख पर भावशून्यता दिखाई देती है।
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