दक्कन में चित्रकला के प्रारंभिक केन्द्र अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा में थे।
प्रारंभ में यहाँ चित्रकला का विकास मुगल शैली से स्वतंत्र रूप में हुआ, किंतु बाद में 17वीं-18वीं सदी में इस पर मुगल शैली का अधिकाधिक प्रभाव पड़ा।
अहमदनगर
अहमदनगर चित्रकला के प्रारंभिक उदाहरण में ‘तारीप़-ए-हुसैनशाही’ का नाम लिया जाता है जो इंडो-इस्लामिक चित्रकारी का सुंदर उदाहरण है।
अन्य उदाहरणों में ‘हिंडोला राग’, निजाम शाह द्वितीय (1591&96) के प्रतिरूप तथा 1605 ई. का मलिक अंबर का चित्र महत्त्वपूर्ण है जो राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में है।
बीजापुर
बीजापुर में अली आदिल शाह (1558&80 ई.) और इब्राहिम द्वितीय (1580&1627) ने चित्रकला को संरक्षण प्रदान किया।
‘नजूम-अल-उलूम’ (विज्ञान के सितारे) नामक विश्वकोश को अली आदिल शाह प्रथम के शासनकाल में सचित्र किया गया।
इब्राहिम द्वितीय एक संगीतकार थे और इसी विषय पर ‘नवरसनामा’ नामक एक पुस्तक भी लिखी, उनके कुछ प्रतिरूप अनेक संग्रहालयों में मौजूद हैं।
गोलकुंडा
मोहम्मद कुली कुतुब शाह (1580&1611) के समय चित्रांकित पाँच आकर्षक चित्रकलाओं का एक समूह गोलकुंडा के लघु चित्रों में विशिष्ट है।
गोलकुंडा चित्रकला के अन्य उत्कृष्ट उदाहरण हैं- ‘मैना पक्षी के साथ महिला’ (1605), सूफी कवि की सचित्र ‘पांडुलिपि’ और दो प्रतिकृतियाँ (मो.अली की)।
तंजावुर
18वीं सदी के अंत में सुदृढ़ आरेखन, छायाकरण की तकनीकों में अभिवृद्धि तथा चटकीले वर्णों का प्रयोग जैसी चित्रकला की विशेषताओं ने तंजावुर चित्रकला में उन्नति की।
सचित्र काष्ठ फलक, जिस पर राम के राज्याभिषेक को दर्शाया गया है, तंजावुर चित्रकला की सजावटी और आलंकारिक शैली का उदाहरण है।
यहाँ लघु चित्रकला में जो शंकुरूप मुकुट दिखाई देता है, वह तंजौर चित्रकला की प्रतीकात्मक विशेषता है।