भारतीय विरासत और संस्कृति
प्रमुख लिपियाँ
- 17 Jun 2019
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- लिपि प्रतीक-चिह्नों की एक व्यवस्था है जिसके तहत भाषाओं को लिखा जाता है।
- भारत में भीमबेटका के गुफा-चित्रों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि लेखन कला की शुरुआत चित्र-लिपि से हुई।
- भारत में लिपि की उत्पत्ति हड़प्पा सभ्यता से मानी जाती है, किंतु आज तक मनुष्य उस लिपि को पढ़ने में कामयाब नहीं हो सका है।
- इसके अलावा कुछ अन्य लिपियाँ हैं-
ब्राह्मी लिपि
- ब्राह्मी भारत की अधिकांश लिपियों की जननी है तथा इसका प्रयोग सम्राट अशोक के लेखों में हुआ है।
- 5वीं सदी ईसा पूर्व से 350 ईसा पूर्व तक इसका एक ही रूप मिलता है, लेकिन बाद में इसके दो विभाजन मिलते हैं- उत्तरी धारा व दक्षिणी धारा।
- ब्राह्मी की उत्तरी धारा में गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा और देवनागरी को रखा गया है।
- दक्षिणी धारा में तेलुगु, कन्नड़, तमिल, कलिंग, ग्रंथ, मध्य देशी और पश्चिमी लिपि शामिल हैं।
- ब्राह्मी लिपि बायें से दायें लिखी जाती थी।
खरोष्ठी लिपि
- भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में प्रचलित यह लिपि दायें से बायें लिखी जाती थी।
- इसे विदेशी उद्गम लिपि यानी अरामाइक और सीरियाई लिपि से विकसित माना जाता है।
- कुल 37 वर्णों वाली इस लिपि में स्वरों का अभाव था, यहाँ तक कि मात्राएँ और संयुक्ताक्षर भी नहीं मिलते हैं।
- सम्राट अशोक के शहबाज़गढ़ी और मानसेहरा (पाकिस्तान) स्थित अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रमाण मिलता है।
जेम्स प्रिंसेप (1799-1840): ‘एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल’ के संस्थापक जेम्स प्रिंसेप आधुनिक युग में पहली बार ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने के लिये जाने जाते हैं। |
कुटिल लिपि
- गुप्त लिपि का परिवर्तित रूप मानी जाने वाली इस लिपि को ‘न्यूनकोणीय लिपि’ तथा ‘सिद्ध मातृका’ लिपि भी कहा जाता है।
- इस लिपि में अक्षरों के सिर ठोस त्रिकोण जैसे हैं, लेकिन कहीं-कहीं ये आड़े-तिरछे, टेढ़े-मेढ़े या कुटिल ढंग से भी हैं।
- यह लिपि छठी शताब्दी से 9वीं शताब्दी तक प्रचलन में रही।
देवनागरी लिपि
- बायें से दायें की ओर लिखी जाने वाली देवनागरी लिपि अत्यंत व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक लिपि है।
- इसमें ध्वनि एवं अक्षरों का उत्कृष्ट समन्वय होता है।
- भारत के संविधान में देवनागरी लिपि को मान्यता प्रदान की गई है (अनु. (1)।
- उत्तर भारत में 8वीं शताब्दी से आज तक अनेक भाषाओं में देवनागरी का प्रयोग होता आया है, यथा- संस्कृत, मराठी, हिन्दी, भोजपुरी, नेपाली, कोंकणी, मैथिली, गढ़वाली आदि।
शारदा लिपि
- आठवीं शताब्दी में कश्मीर में ‘सिद्ध मातृका लिपि’ से विकसित इस लिपि के अनेक अभिलेख कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि में मिले हैं।
गुरुमुखी लिपि
- सिखों के दूसरे गुरु अंगद द्वारा विकसित इस लिपि में पंजाबी भाषा में ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संकलन हुआ है।
ग्रंथ लिपि
- दक्षिण भारत (तमिलनाडु) के पल्लव, पांड्य एवं चोल शासकों ने इसका विकास किया।
- महाबलीपुरम् में धर्मराज रथ पर ग्रंथ लिपि में विवरण अंकित हैं।
- राजसिंह द्वारा बनवाए गए कैलाश मंदिर पर उत्कीर्ण शिलालेख, ग्रंथ लिपि में ही हैं।
तेलुगू एवं कन्नड़ लिपि
- इन दोनों लिपियों का उद्गम स्रोत एक ही है और चालुक्यकालीन हलेबिड शिलालेख (कर्नाटक) इसका प्राचीनतम साक्ष्य है।
- बाद में यह लिपि स्वतंत्र रूप से विभाजित हो गई- तेलुगू एवं कन्नड़ लिपि में।
तमिल-मलयालम लिपि
- दोनों का विकास ग्रंथ लिपि से हुआ है।
शाहमुखी लिपि
- यह सूफियों द्वारा चलाई गई ईरानी लिपि का पंजाबी संस्करण है।
मोडी लिपि
- यदुवंशी महामंत्री हेमात्रि ने इसे शुरू किया।
- अक्षरों में तोड़-मोड़ के कारण इसे मोडी लिपि कहा गया।
- 1950 से पहले मराठी को इसी लिपि में लिखा जाता था।
राज्यों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाएँ
क्रम |
राज्य |
मुख्य भाषा |
बोली जाने वाली अन्य भाषाएँ |
A | केरल पंजाब गुजरात हरियाणा उत्तर प्रदेश राजस्थान हिमाचल प्रदेश तमिलनाडु पश्चिम बंगाल आंध्र प्रदेश |
मलयालम (96.6%) पंजाबी (92.2%) गुजराती (91.5%) हिन्दी (91.0%) हिन्दी (90.1%) हिन्दी (89.6%) हिन्दी (88.9%) तमिल (86.7%) बांग्ला (86.0%) तेलुगू (84.8%) |
तमिल, कन्नड़ हिन्दी, उर्दू हिन्दी, सिंधी पंजाबी, उर्दू उर्दू, पंजाबी भीली, उर्दू पंजाबी, किन्नौरी तेलुगू, कन्नड़ हिन्दी, उर्दू उर्दू, हिन्दी |
B | मध्य प्रदेश बिहार ओडिशा मिज़ोरम महाराष्ट्र |
हिन्दी (85.6%) हिन्दी (80.9%) उड़िया (82.08%) लुसाई (75.1%) मराठी (73.3%) |
भीली, गोंडी उर्दू, संथाली हिन्दी, तेलुगू बांग्ला, लाखेर हिन्दी, उर्दू |
C | गोवा मेघालय त्रिपुरा कर्नाटक |
मराठी, कन्नड़ गारो, बांग्ला त्रिपुरी, हिन्दी उर्दू, तेलुगू |
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D | सिक्किम मणिपुर असम |
भोटिया, लेप्चा थाडूउ, थांगखुल बांग्ला, बारो |
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E | अरुणाचल प्रदेश नागालैंड |
नेपाली, बांग्ला सेमा, कोनयाक |