वाताग्र | 01 Jul 2020
भूमिका:
विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग प्रकार की वायुराशियाँ पाई जाती हैं। ये वायुराशियाँ अपनी उत्पत्ति के स्थानों से अन्य स्थानों तक विचरण करती हैं। वाताग्रों के कारण मौसम में विभिन्न परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
क्या है वाताग्र?
- दो भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियोें (ताप, गति, घनत्त्व, आर्द्रता, दिशा आदि विशेषताओं के संदर्भ में) के मिलने से ढलुआ सतह का निर्माण होता है जिसे वाताग्र कहते हैं।
- दो भिन्न स्वभाव की वायुराशियाँ आपस में मिलकर एक संक्रमणीय क्षेत्र का निर्माण करती हैं जहाँ दोनों वायुराशियों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। ऐसे संक्रमणीय क्षेत्र को वाताग्र प्रदेश कहते हैं।
- वताग्र मुख्यतः मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं।
- ध्यातव्य है कि वताग्र कुछ कोण पर झुका होता है, जो विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर बढ़ता जाता है। ऐसा इसलिये क्योंकि वताग्र का ढाल पृथ्वी की अक्षीय गति पर आधारित होता है।
- भूमध्य रेखा पर वताग्र का ढाल लगभग शून्य होता है।
- वताग्र हमेशा वहाँ बनते हैं, जहाँ वायुराशियों के तापमान में सबसे अधिक अंतर पाया जाता है।
- वताग्र हमेशा अल्प वायुदाब द्रोणियों में स्थित होते हैं।
वाताग्र जनन (Frontogenesis):
- वाताग्र निर्माण की प्रक्रिया को ‘वाताग्र जनन’ (Frontogenesis) तथा वाताग्र के नष्ट होने की प्रक्रिया को ‘वाताग्र क्षय’ (Frontolysis) कहते हैं।
- ‘वाताग्र जनन’ एवं ‘वाताग्र क्षय’ की प्रक्रिया से चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात का निर्माण होता है। अतः वाताग्र मौसम संबंधी विशिष्ट परिस्थितियों को उत्पन्न करते हैं।
- वताग्र जनन एवं क्षय से ही चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति होती है।
वताग्र को प्रभावित करने वाले कारक:
- ताप एवं आर्द्रता जैसे भौगोलिक कारक वाताग्र जनन को प्रभावित करते हैं यथा ताप एवं आर्द्रता संबंधी दो अलग-अलग गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से वाताग्र की उत्पत्ति होती है।
- इसके अलावा गतिक कारक भी वाताग्र जनन हेतु आवश्यक हैं वस्तुतः विभिन्न वायुराशियों का अपने मूल स्थान से अन्य क्षेत्रों की ओर गतिशील होना आवश्यक है।
- अर्थात् दो अलग-अलग स्वभाव की वायुराशियों का अभिसरण होना आवश्यक होता है।
- ध्यातव्य है कि विषुवत रेखा पर भी व्यापारिक पवनों का अभिसरण होता है, परंतु स्वभाव में समानता होने के कारण वताग्रों की उत्पत्ति नहीं होती।
- वायुराशियों का अभिसरण वताग्रजनन में सहायक तथा वायुराशियों का अपसरण वताग्र जनन में बाधक होता है।
वाताग्रों के प्रकार एवं उनसे संबंधित मौसम:
वाताग्र मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-
1. शीत वताग्र (Cold Front)-
- जब शीतल व भारी वायु तेज़ी से उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती हैं तो शीत वाताग्र का निर्माण होता है।
- मध्य अक्षांशों में शीत वाताग्र की ढ़ाल प्रवणता 1:25 से 1:100 तक होती है।
- मौसम-
- क्योंकि शीत वताग्र का ढाल अधिक होता है इसलिये थोड़े समय में तीव्र वर्षा होती है।
- इसके अधिक समय तक रूकने पर तड़ित झंझा बन जाते हैं।
- ध्यातव्य है कि इसके तेज़ी से आगे बढ़ जाने पर मौसम काफी जल्दी साफ हो जाता है।
2. उष्ण वाताग्र (Warm Front)-
- जब गर्म वायु राशियाँ तेज़ी से ठंडी वायुराशियों के ऊपर स्थापित होती हैं तो उष्ण वाताग्र का निर्माण होता है।
- मध्य अक्षांशों में उष्ण वताग्र की ढ़ाल प्रवणता 1:100 से 1:400 तक होती है।
- मौसम-
- वताग्र का ढाल हल्का होने के कारण वर्षा धीमी, लेकिन लंबे समय तक होती है।
- उष्ण वताग्र में बादलों का प्रकार कई बार बदलता है।
- पक्षाभ मेघ, पक्षाभ स्तरीय मेघ तथा उच्च स्तरीय मेघों का निर्माण होता है।
3. अधिविष्ट वाताग्र (Occluded front)-
- जब शीत वाताग्र उष्ण वाताग्र से मिल जाता है तथा गर्म वायु का सतह से संपर्क समाप्त हो जाता है तो अधिविस्ट वाताग्र का निर्माण होता है।
- इसमें शीत तथा उष्ण दोनों वताग्र के लक्षण पाए जाते हैं।
स्थाई वाताग्र (Stationary Front)-
- स्थाई वाताग्र में दो विपरीत स्वभाव की वायुराशियाँ एक-दूसरे के समानान्तर चलती हैं जिसमें कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती। इस प्रकार स्थाई वाताग्र का निर्माण होता है।
- इससे चक्रवातों का निर्माण नहीं होता है।
क्या है वाताग्र प्रदेश?
दो भिन्न स्वभाव की वायुराशियों के मिलने पर जो संक्रमण क्षेत्र बनता है उसे वाताग्र प्रदेश (Frontal Zone) कहते हैं। विश्व में तीन वाताग्र प्रदेश पाए जाते हैं।
- आर्कटिक वाताग्र प्रदेश (Arctic Frontal Zone)-
- आर्कटिक वाताग्र महाद्वीपीय हवाओं तथा ध्रुवीय सागरीय हवाओं के मिलने से बनते हैं।
- ये वाताग्र अधिक सक्रिय नहीं होते, ऐसा इसलिये, क्योंकि यहाँ मिलने वाली वायुराशियों के तापमान में बहुत कम अंतर पाया जाता है।
- इनका विस्तार मुख्यतः यूरोशिया तथा उत्तरी अमेरिका के भागों में होता है।
- ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश (Polar Frontal Zone)-
- इन वाताग्र प्रदेशों का निर्माण दोनों गोलार्द्धों में मध्य अक्षांशों (30°से 46°) पर होता है।
- वस्तुतः इनका निर्माण ध्रुवीय ठंडी वायुराशि तथा उष्ण कटिबंधीय गर्म वायुराशियों के मिलने पर होता है।
- ये ग्रीष्म ऋतू की अपेक्षा शीत ऋतु में अधिक सक्रिय रहते हैं।
- उत्तरी प्रशांत महासागर तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर में इनका अधिक विस्तार पाया जाता है।
- अतः उष्ण कटिबधीय वाताग्र प्रदेश (Inter-tropical Frontal Zone)-
- इन प्रदेशों का विस्तार विषुवत रेखीय निम्न वायुदाब की पेटी में होता है।
- इनका निर्माण निम्न दाब पर उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व व्यापारिक पवनों के मिलने से होता है।
- व्यापारिक पवनों के अभिसरण से वायु के ऊपर उठने से पर्याप्त वर्षा होती है।
- ध्यातव्य है कि यह प्रदेश ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर तथा शीत ऋतु में दक्षिण की ओर गतिशील होते हैं।