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बुंदेलखंड का स्थापत्य

  • 15 Jan 2019
  • 2 min read
  • इसे खजुराहो उपशैली भी कहा जाता है।
  • यह उपशैली 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच रही जिसे चंदेल शासकों ने पर्याप्त संरक्षण प्रदान किया।
  • यहाँ मंदिर निर्माण में पन्ना खदान के स्थानीय गुलाबी व मटमैले ग्रेनाइट एवं लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ है।
  • खजुराहो उपशैली के मंदिरों में परकोटे का पूर्ण अभाव है यानी मंदिर चहारदीवारी में नहीं हैं।
  • ‘उरूश्रृंग’ व ‘अंतराल’ बुंदेलखंड स्थापत्य की अपनी विशेष पहचान है।
  • शिखर के ऊपर निकली हुई मीनारनुमा आकृति को ‘उरू शृंग’ कहते हैं तथा गर्भगृह और बरामदे के बीच के लंबे गलियारे को ‘अंतराल’ कहते हैं।
  • मंदिर की प्रतिमाओं में देवता एवं देवी, अप्सरा के अलावा संभोगरत प्रतिमाएँ तथा पशुओं की आकृतियाँ हैं।
  • खजुराहो के पश्चिमी समूह में लक्ष्मण, कंदरिया महादेव, मतंगेश्वर, लक्ष्मी, जगदम्बा, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश मंदिर और वराह व नंदी के मंडप शामिल हैं।
  • खजुराहो के पूर्वी समूहों के मंदिरों में ब्रह्मा, वामन, जवारी व हनुमान मंदिर और जैन मंदिरों में आदिनाथ, पार्श्वनाथ, आदिनाथ घंटाई मंदिर शामिल हैं।
  • खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में स्थान प्राप्त है।
  • खजुराहो के समस्त मंदिरों में कला-तकनीक, निर्माण प्रक्रिया, भव्यता आदि की दृष्टि से कंदरिया महादेव मंदिर को सर्वोत्तम आँका गया है।
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