चोलकालीन स्थापत्य | 20 Oct 2018
- चोल शासकों ने द्रविड़ शैली के अंतर्गत ईंटों की जगह पत्थरों और शिलाओं का प्रयोग कर ऐसे-ऐसे मंदिर बनाए, जिनका अनुकरण पड़ोसी राज्यों एवं देशों तक ने किया।
- चोल इतिहास के प्रथम चरण (विजयालय से लेकर उत्तम चोल) में तिरुकट्टलाई का सुंदेश्वर मंदिर, कन्नूर का बालसुब्रह्मण्यम मंदिर, नरतमालै का विजयालय मंदिर, कुंभकोणम का नागेश्वर मंदिर तथा कदम्बर- मलाई मंदिर आदि का निर्माण हुआ।
- महान चोलों (राजराज-से कुलोतुंग-III तक) के दौर में तंजावुर में वृहदेश्वर मंदिर तथा गंगईकोंड चोलपुरम का शिव मंदिर (राजेन्द्र प्रथम का) ख्याति प्राप्त हैं।
- इन दोनों मंदिरों को देखकर कहा गया कि ‘‘उन्होंने दैत्यों के समान कल्पना की और जौहरियों के समान उसे पूरा किया।’’ (They concept like Giants and they Finished Like Jewellers).
- इन दोनों के अलावा दारासुरम का ऐरावतेश्वर और त्रिभुवनम का कम्पहरेश्वर मंदिर भी सुंदर एवं भव्य हैं।
- चोल स्थापत्य की सबसे बड़ी खासियत है कि उन्होंने वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का भी बेजोड़ संगम किया।
- चोलयुगीन मूर्तियों में नटराज की कांस्य प्रतिमा सर्वोत्कृष्ट है। इसे चोल कला का सांस्कृतिक निकष (कसौटी) कहा गया है।