भारत-चीन संबंध | 10 Dec 2018
विदेश मामलों की स्थायी समिति (अध्यक्ष: डॉ शशि थरूर) ने 4 सितंबर, 2018 को "डोकलाम, सीमा-स्थिति और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सहयोग सहित चीन-भारत संबंधों" (Sino-India Relations including Doklam, border situation, and cooperation in international organizations) पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- समिति ने विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार को भारत और चीन के बीच संबंधों का गहन मूल्यांकन करना चाहिये ताकि चीन से व्यवहार के तरीके पर राष्ट्रीय सर्वसम्मति बन सके।
समिति द्वारा किये गए प्रमुख अवलोकन और सिफारिशें इस प्रकार हैं:
- वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव (One Belt One Road Initiative) :
♦ वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल चीन की एक बुनियादी ढाँचा परियोजना है, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor- CPEC) शामिल है।
♦ समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया कि CPEC भारत को स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से गुज़रता है, जो कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है।
♦ समिति ने चीन द्वारा प्रस्तावित OBOR पहल को दृढ़ता से खारिज करने के भारत के रवैये की सराहना की है।
♦ इसने सिफारिश की है कि भारत को OBOR पहल के जवाब में विभिन्न पहलों के तहत स्वयं की कनेक्टिविटी परियोजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
♦ इसके अलावा, समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि भारत अपने पड़ोस में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और कनेक्टिविटी में सुधार करने हेतु एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank) और ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक (BRICS Development Bank) से सहायता प्राप्त कर सकता है।
- डोकलाम मामला : समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि डोकलाम (भूटान) में चीन का अतिक्रमण चीन और भूटान के बीच हुए दो समझौतों का उल्लंघन है।
♦ इन समझौतों के माध्यम से यह तय किया गया था कि जब तक सीमा वार्ता प्रगति पर है दोनों देशों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा। इसके अलावा, यह वर्ष 2012 के उस समझौते का भी उल्लंघन है जिसके तहत भारत, चीन तथा किसी तीसरे देश के बीच सीमा बिंदु का निर्धारण करने के लिये तीसरे देश से परामर्श करना आवश्यक है।
♦ समिति ने इस समस्या के समग्र प्रबंधन की सराहना की क्योंकि इसने यह संकेत दिया कि भारत अपनी किसी भी सीमा पर स्थिति को बदलने के लिये मजबूर करने वाले प्रयासों को स्वीकार नहीं करेगा। इसके बावजूद समिति ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि त्रि-जंक्शन के समीप चीन के बुनियादी ढाँचे के विकास पर अभी तक रोक नहीं लगी है।
- रक्षा सहयोग : समिति ने उल्लेख किया कि भारत और चीन के बीच रक्षा सहयोग में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन 2017 में दोनों देशों के बीच इस प्रकार के सहयोग पर रोक लगा दी गई थी।
♦ इस पर रोक लगने के कई कारण थे जिनमें डोकलाम विवाद और वन बेल्ट वन रोड पहल पर मतभेद भी शामिल थे।
♦ समिति के अनुसार, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की बहाली भारत-चीन संबंधों के दीर्घकालिक हित में होगी।
♦ इसलिये इसने सिफारिश की है कि सरकार चीन के साथ रक्षा सहयोग को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव भेज सकती है।
- सीमा विवाद (Boundary dispute) : समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और चीन के बीच सीमावर्ती इलाकों में कोई वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) नहीं है।
♦ सरकार सीमा-अधिकारियों के परामर्श और समन्वय पर कार्य तंत्र (Working Mechanism for Consultation and Coordination- WMCC) और चैनलों के माध्यम से LAC के मुद्दों को उठाती है।
♦ समिति की सिफारिशों के अनुसार, दोनों देशों के बीच एक व्यापक सीमा अनुबंध समझौता (Border Engagement Agreement) होना चाहिये जो इन देशों के बीच स्थापित उपरोक्त तंत्रों में कमी ला सके।
- सीमावर्ती आधारभूत संरचना (Border infrastructure) : समिति ने अपने अवलोकन में पाया कि भारत-चीन सीमा पर आधारभूत संरचनाओं की कमी है और बहुत सी सड़कें तो ऐसी हैं जो सैन्य वाहनों के अनुकूल नहीं हैं।
♦ इसके अलावा दुर्गम भू-भागों, पर्यावरणीय स्वीकृतियों में देरी और सीमावर्ती सड़क संगठनों (Border Roads Organization- BRO) के पास मूलभूत व्यवस्थाओं में कमी आदि के कारण भी इन आधारभूत परियोजनाओं को पूरा करने में देरी हुई।
♦ समिति की सिफारिश के अनुसार, सरकार को भारत-चीन सीमा के पास सीमा सड़क बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये ठोस प्रयास करना चाहिये।
♦ इसके अलावा, आपातकाल के दौरान सेना के लिये बैक-अप के रूप में कार्य करने हेतु प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana) के तहत सीमा पर सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिये।
- भारत-चीन व्यापार मुद्दे: समिति की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच 80 बिलियन डॉलर से अधिक का द्विपक्षीय व्यापार होने की संभावना है।
♦ हालाँकि, भारत की चिंताओं में चीन द्वारा आरोपित गैर-टैरिफ बाधाएँ (non-tariff barriers), माल की डंपिंग और चीन द्वारा निवेश की कमी शामिल है।
♦ समिति की सिफारिशों के अनुसार, सरकार को चाहिये कि वह चीनी कंपनियों को भारत में अधिक निवेश के लिये आकर्षित करे।
♦ इसके अलावा, चीन के साथ उच्चतम स्तर की व्यापार बाधाओं को कम करने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये जिसमें मंत्री स्तर का सामूहिक आर्थिक समूह (Ministerial Level Joint Economic Group) शामिल हो।