सेप्टेज प्रबंधन | 14 Dec 2018

पृष्ठभूमि

  • अधिकांश शहरी भारत मल के निपटान के लिये सेप्टिक टैंक और गड्ढों जैसी ऑनसाइट व्यवस्थाओं पर आश्रित है। ऐसी व्यवस्थाओं की संख्या में केवल वृद्धि ही हो रही है चूँकि भारत खुले में शौच को खत्म करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन कई ऑनसाइट व्यवस्थाओं के उचित निर्माण, संचालन और रखरखाव तथा सेप्टेज प्रबंधन पर काफी कम ध्यान दिया गया है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी भारत के 81.4 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा है लेकिन केवल 40 प्रतिशत घरों के शौचालय सीवर नेटवर्क से जुड़े हैं। अतः सीवेज का शोधन एक बड़ी चुनौती है।
  • हमारे देश में हर रोज़ 62,000 मिलियन लीटर मल-जल उत्पन्न होता है। दूसरी तरफ हमारे 816 सीवेज शोधन संयत्रों की कुल शोधन क्षमता 23,277 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इसमें से भी केवल 18,883 मिली मल-जल ही साफ हो पाता है।
  • इसके अलावा, केंद्र सरकार की पहल, स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2019 तक कंटेनमेंट व्यवस्था युक्त कुल 18 करोड़ शौचालय तैयार होंगे। स्वच्छ भारत मिशन और संबद्ध स्वच्छता सुधारों का फोकस केवल शौचालय बनाने पर ही है जबकि, इनसे उत्पन्न अपशिष्ट जल के शोधन पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। कई और नए ऑनसाइट व्यवस्था युक्त शौचालयों का निर्माण करके हम केवल समस्या को रोक रहे हैं, इसे हल नहीं कर रहे हैं।
  • यही समय है कि हम इन शौचालयों से उत्पन्न अपशिष्ट के प्रबंधन के बारे में चर्चा करें। इससे न केवल खुले में शौच-मुक्त (ODF) भारत की अवधारणा को सुनिश्चित किया जा सकेगा, बल्कि प्रदूषण मुक्त जल निकाय, शहर और कस्बों की भी व्यवस्था सुनिश्चित होगी।
  • शहरों में सेप्टेज प्रबंधन से SDG-6 के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी, जिसमें प्रदूषण को कम करना, कूडा खुले में फेंकने की आदत को समाप्त करना, खतरनाक रसायनों और सामग्रियों को निर्मुक्त कर न्यूनतम करना, अशोधित अपशिष्ट जल के अनुपात को आधा करके और वैश्विक पुनर्चक्रण एवं सुरक्षित अंतिम उपयोग द्वारा 2030 तक पानी की गुणवत्ता में सुधार करना शामिल है।

भारत की सातवीं अवस्था की पर्यावरण रिपोर्ट के प्रमुख संदेश

  • किसी शहर के प्रदूषण से प्रवाह की दिशा में स्थित शहरों की जल आपूर्ति योजनाएँ विकृत हो जाती हैं।
  • जिन शहरों की झीलों पर अतिक्रमण कर लिया गया हो या वे प्रदूषित हो गई हो वहाँ पानी की आपूर्त्ति दूर-दूर से की जाती है। अतः प्रदूषण की छिपी लागत काफी अधिक है।
  • केंद्रीयकृत मलजल शोधन प्रणाली यानी सीवर सिस्टम के निर्माण की लागत काफी अधिक होती है।
  • शहर में कुछ भागों के लिये मल-जल की व्यवस्था की जा सकती है, सबके लिये नहीं।
  • शहर अपशिष्ट जल की केवल कुछ ही मात्रा शोधित कर पाते हैं जो आखिरकार, अधिकांशत: अशोधित पानी के साथ मिल जाता है।
  • इसका परिणाम प्रदूषण है और शहर अपने स्वयं के मल-मूत्र में डूब रहे हैं।
  • 2010 में संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठन (USAID) द्वारा एशिया में कराए गए सेप्टेज प्रबंधन के मूल्यांकन से पता चला है कि भारत में 2017 तक शहरी क्षेत्रों में लगभग 148 मिलियन लोग सेप्टिक टैंकों पर आश्रित होंगे।

राष्ट्रीय मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन नीति, 2017


MoHUA ने 2017 की शुरुआत में मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (FSSM) संबंधी राष्ट्रीय नीति जारी की। इस नीति का उद्देश्य सभी ULB में FSSM सेवाओं के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन को आसान करना और प्रत्येक घर में सुरक्षित एवं टिकाऊ स्वच्छता के लिये, संदर्भ, दिशा और प्राथमिकताएँ निर्धारित करना है। इस नीति की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • सेप्टेज प्रबंधन के लिये राज्य स्तरीय दिशा-निर्देश, ढाँचा, उद्देश्य, समयसीमा और कार्यान्वयन योजना।
  • FSSM पर प्रशिक्षण देकर क्षमता निर्माण शुरू करने के लिये केंद्र स्तरीय कार्यनीति तैयार करना।
  • एक स्वच्छता बेंचमार्क रूपरेखा बनाना जिसका ULB द्वारा डाटाबेस तैयार करने और प्रमाणित ऑनसाइट स्वच्छता व्यवस्था की रजिस्ट्री और एक मज़बूत रिपोर्टिंग प्रारूप विकसित करने के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • FSSM परियोजनाओं की सुविधा हेतु निधियन और सरकारी-निजी साझेदारी (PPP) को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन।
  • सुरक्षित निपटान के साथ-साथ एकीकृत शहर-व्यापी स्वच्छता हासिल करना।
  • स्वच्छता के लिये संशोधित सेवा-स्तर की बेंचमार्किंग।

सेप्टेज

  • सेप्टेज या सेप्टिक टैंक अपशिष्ट से आशय सेप्टिक टैंक में भंडारित और इससे बाहर निकाली जाने वाली आंशिक शोधित सामग्री है। दूसरे शब्दों में, सेप्टिक टैंकों के मल-जल कीचड़ को सेप्टेज कहा जाता है, लेकिन भारत में मल-जल कीचड़, सेप्टेज को इनकी आपस में अदला-बदली में उपयोग किया जाता है।
  • सेप्टेज, किसी सेप्टिक टैंक में घरों के अपशिष्ट जल का उप-उत्पाद है, जहाँ यह समय बीतने के साथ-साथ जमा हो जाता है। यह आमतौर पर एक वैक्यूम टैंकर का उपयोग करके सेप्टिक टैंक या ऑनसाइट स्वच्छता प्रणाली से पंप द्वारा बाहर निकाला जाता है।
  • सेप्टेज एक तरल और ठोस सामग्री है जिसे समय बीतने के साथ-साथ जमा होने के बाद किसी सेप्टिक टैंक, सेसपूल (cesspool) या अन्य ऐसी ऑनसाइट शोधन सुविधाओं से पंप द्वारा बाहर निकाला जाता है। इसमें कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा करने वाले जीवाणु होते हैं जिसमें काफी अधिक ग्रीस, ग्रिट, बाल और मलबा होता है।


सेप्टेज के तीन मुख्य घटक हैं:

  • स्कम: अपशिष्ट जल के संघटकों द्वारा बनी ठोस पदार्थों की परत, जो एक टैंक या रिएक्टर की सतह पर तैरती है (जैसे- तेल, बाल या कोई अन्य हल्की सामग्री)।
  • उत्प्रवाही: किसी सेप्टिक टैंक में स्कम और कीचड़ के बीच एकत्र द्रव्य अंश को उत्प्रवाही कहा जाता है, कभी-कभी इसे अधिप्लावी भी कहा जाता है।
  • कीचड़: टैंक के तल पर एकत्र होने वाला ठोस पदार्थ।

सीवेज बनाम सेप्टेज

  • सीवेज अशोधित अपशिष्ट जल होता है जिसमें मल-मूत्र होता है और यह सीवरेज प्रणाली के माध्यम से बह जाता है। आमतौर पर, रसोई और बाथरूम का मटमैला पानी भी सीवरेज प्रणाली में चला जाता है।

सेप्टेज प्रबंधन क्या है?

  • ‘शौचालयों की कवरेज’ को बढाने और स्वच्छता के अंतर्गत खुले में शौच मुक्त प्रणाली पर विचार करने के लिये अक्सर केवल भौतिक अवसंरचना जैसे- शौचालय या शौचालयों की व्यवस्था पर ही फोकस किया जाता हैं। लेकिन मूर्त और टिकाऊ स्वच्छता व्यवस्था मुहैया कराने के लिये, पूरी ‘स्वच्छता श्रृंखला’ पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • सरल शब्दों में, एक स्वच्छता श्रृंखला में निपटान अथवा अंतिम उपयोग के सृजन से सेप्टेज और उत्प्रवाही का प्रबंधन करने जैसे महत्त्वपूर्ण उपाय अंतर्संबंधित हैं जिससे शहर स्तरीय परिणाम और उनकी वर्तमान स्थिति के बारे में सूक्ष्मता से पता चलता है।

सेप्टेज का प्रबंधन क्यों करें?


अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे
  • स्वच्छता अवसंरचना के संबंध में चुनौती भारत के लिये अनजानी नहीं है। जैसा कि पहले ही वर्णित किया गया है, केवल 40 प्रतिशत शौचालय सीवरेज नेटवर्क से जुडे हुए हैं, जबकि 48 प्रतिशत OSS से जुड़े हैं। इसलिये अवसंरचना से केवल सीवरेज नेटवर्क लाइनों की कमी के रूप में ही चुनौती पेश नहीं होती, बल्कि OSS खाली होने और उनके द्वारा उत्प्रवाही के शोधन के रूप में भी चुनौती पेश होती है।
  • SBM के उद्देश्यों में से एक शौचालयों का निर्माण करना और इन शौचालयों को 30 मीटर के भीतर उपलब्ध सीवरेज लाइनों से जोड़ना है। सीवरेज लाइन के अभाव में, शौचालय को दो गड्ढों या अन्य OSS से जोडना होता है। यह उद्देश्य खुले में शौच मुक्त भारत का निर्माण करेगा।

विनियम

  • भारत में विधायी रूपरेखा में पानी और पर्यावरण की सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय, राज्य और शहर स्तर पर पर्याप्त प्रावधान हैं। जन स्वास्थ्य और स्वच्छता संविधान की 12वीं अनुसूची (74वाँ संशोधन, 1992) के तहत नगर पालिकाओं की ‘संवैधानिक जिम्मेदारी’ का हिस्सा है।
  • विभिन्न कानूनों और विनियमों में से कुछ मुख्य प्रावधान, जिनका सेप्टेज प्रबंधन से संबंध है, नगर निगम के कार्यों और विनियमों में सामान्य रूप से कूड़े और अपशिष्ट जल के प्रबंधन का उल्लेख है, लेकिन सेप्टेज प्रबंधन के लिये विस्तृत नियम नहीं दिये हैं।
  • अपर्याप्त कार्यान्वयन और प्रवर्तन से समस्या और अधिक बिगड़ जाती है। हमें सेप्टेज प्रबंधन के साथ-साथ अधिक मज़बूत कार्यान्वयन पर केंद्रित एक बेहतर नियामक ढाँचे की आवश्यकता है।
  • फरवरी 2017 में MoHUA ने राष्ट्रीय FSSM नीति जारी की। इस नीति का उद्देश्य सभी ULB में FSSM सेवाओं के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन की दिशा में इसे और आसान बनाने के लिये संदर्भ प्राथमिकताएँ और दिशा निर्धारित करना है कि भारत में प्रत्येक घर, सड़क, शहर और नगर में सभी हेतु सुरक्षित और स्थायी स्वच्छता एक वास्तविकता बन जाए।

संसाधनों की पुन: प्राप्ति

  • मल कीचड़ को हमेशा से एक सामाजिक वर्जना माना गया है। इसलिये परंपरागत सोच यह है कि इसका जितनी जल्दी हो सके यथासंभव गुप्त रूप से निपटान कर दिया जाए। लेकिन सेप्टेज को एक अन्य नज़र से भी देखा जा सकता है।
  • यह नाइट्रोजन और फास्फोरस तथा कुछ मामलों में बोरान, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम और जस्ता जैसे पोषक तत्त्वों से युक्त संसाधन है। मूत्र में 90 प्रतिशत नाइट्रोजन, 50- 60 प्रतिशत फॉस्फोरस और 50-80 प्रतिशत पोटेशियम होता है जो कृषि अनुप्रयोगों में बहुत उपयोगी होते हैं।
  • सेप्टेज से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है और इनके संयोजन से फसल उत्पादन के लिये पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं पूरी हो सकती है।
  • कुछ प्रयोगों में सेप्टेज का उपयोग बायोगैस सिस्टम और जैव-मीथेनीकरण (Bio-methanection) प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है। इस प्रकार उत्पादित मिथेन का इस्तेमाल खाना पकाने के लिये ईंधन के रूप में या बिजली उत्पादन के लिये किया जा सकता है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी प्रभाव

  • सेप्टेज में ऐसे तत्त्व होते हैं जिनसे दुर्गंध आती है और जो जन स्वास्थ्य के लिये जोखिमपूर्ण होते हैं तथा गंभीर पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न करते हैं। चूँकि सेप्टेज काफी अधिक सांद्रित होता है, इसे जल निकाय में बहाने से पानी में आॅक्सीजन की कमी और पोषक तत्त्वों के स्तर में तत्काल वृद्धि हो सकती है, जिससे यूट्रोफिकेशन होता है और रोगजनकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है और इसप्रकार स्वास्थ्य संबंधी खतरों का जोखिम उत्पन्न होता है।
  • स्वीकार्य निपटान विधियों का निर्धारण करने में सेप्टेज की अभिलक्षण और परिवर्तनीयता की जानकारी होना महत्त्वपूर्ण है। भारत में सेप्टेज के अभिलक्षणों की पर्याप्त जानकारी न होने पर अर्जेंटीना, घाना (अकरा), फिलिपींस (मनीला) और थाईलैंड (बैंकाक) जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में सेप्टेज की विशिष्ट अभिलक्षणों का उपयोग किया जा सकता है।
  • घरों और सार्वजनिक शौचालयों के सेप्टिक टैंक से निकाला सेप्टेज काफी अधिक सांद्रित होता है और जल निकायों के लिये खतरनाक होता है।

climateसेप्टेज प्रबंधन के लिये विधान और विनियामक प्रावधान

नीति मौजूदा मुख्य केंद्र बिंदु सेप्टेज प्रबंधन के लिये प्रावधान
राष्ट्रीय शहरी स्वच्छता नीति (NUSP), 2008 सर्विस स्तर की बेंचमार्किंग पर फोकस करते हुए पूरे राज्य में स्वच्छता कार्यनीति (SSS) और CSP को प्राथमिकता देना। नीति में शहरी स्वच्छता कर्मी दल की परिकल्पना की गई है। सेप्टेज प्रबंधन के लिये प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन सर्विस स्तर के बेंचमार्किंग का हिस्सा नहीं है।
सेप्टेज प्रबंधन पर सलाहकार नोट (Advisory notes on septage management), 2013 एक सेप्टेज प्रबंधन की उप योजना का विकास। पूरे शहर में स्वच्छता के लिये एक आवश्यक घटक के रूप मे सेप्टेज प्रबंधन की सिफारिश की।
राष्ट्रीय शहरी मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन नीति (NFSSM Policy), 2017 स्वच्छता समाधान के रूप में मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन की मान्यता। बिना सीवर वाले क्षेत्रों पर फोकस करना, ऑनसाइट और ऑफसाइट स्वच्छता प्रणालियों पर बारी-बारी से ज़ोर देना आवश्यक है।

योजना

स्वच्छ भारत मिशन (SBM), 2014 ODF को प्राथमिकता देना और उचित आयामों के साथ कन्टेन्मेंट प्रणाली के प्रावधानों पर भी ज़ोर देना। सेप्टेज और अपशिष्ट जल के शोधन पर थोड़ा फोकस करते हुए खुले में शौच की आदत को समाप्त करने पर ध्यान देना।
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), 2015 केवल शौचालय युक्त घरों का प्रावधान, स्वच्छता मूल्य श्रृंखला के किसी भी घटक पर कोई ध्यान नहीं। OSS के लिये मानक डिज़ाइनों के एकीकरण का कोई भी उल्लेख नहीं है।

दिशा-निर्देश

पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), 1994 निर्धारित विकास परियोजनाओं को मंज़ूरी जिनके महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव पड़ते हैं। अपशिष्ट जल और सेप्टेज जैसे प्रदूषण के मुख्य स्रोतों पर विचार नहीं किया जाता है।
शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निरूपण और कार्यान्वयन (URDPFI) दिशा-निर्देश, 2014 विभिन्न शहरी केंद्रों के प्रशाखाओं के लिये प्रस्तावित भूमि का उपयोग। सेप्टेज प्रबंधन और अपशिष्ट जल के बारे में वार्ता द्वारा CSP के तहत एक अपेक्षाकृत व्यापक दायरा प्रदान करना।
मॉडल भवन उप-नियम (Model building BY-rule, 2016 विकास क्षेत्र में भवनों के निर्माण और डिज़ाइन संबंधी पहलुओं के लिये टूल का उपयोग किया गया। BIS कोड से मानक संदर्भ युक्त ULB द्वारा मंज़ूरी।

अधिनियम

जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम (water Act), 1974 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act), 1986 जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण तथा देश में स्वास्थ्यकर पानी की आवश्यकता बनाए रखने अथवा ऐसी प्रक्रिया बहाल करने के प्रावधान करना। सेप्टेज प्रबंधन का कोई समर्पित उल्लेख नहीं।

परिभाषित मानकों के लिये एजेंसी

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) निर्माण सामग्री और उनके घटकों के मानकों को प्रदान करता है। उपयोगकर्त्ता इंटरफेस के वर्णन के साथ-साथ सेप्टिक टैंक के निर्माण के लिये मानक प्रदान करता है।


सेप्टेज प्रबंधन: शुरूआत कैसे करें?

  • सेप्टेज प्रबंधन एक प्रक्रिया है। इसके लिये स्वच्छता श्रृंखला के हर स्तर पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसका व्यापक और क्रमबद्ध होना ज़रूरी है। सेप्टेज के संग्रहण, परिवहन और शोधन के लिये अवसंरचना और मानव संसाधनों को उपलब्ध कराकर इसकी शुरुआत होती है।
  • इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिये, जिससे यह प्रक्रिया टिकाउ बनी रहे। सुरक्षित निपटान या किसी वैज्ञानिक तरीके से अंतिम उपयोग किया जाना, इसका मुख्य लक्ष्य है।

सेप्टेज प्रबंधन की योजना बनाने हेतु उपाय

  • समस्या को परिभाषित करें
  • मुख हितधारकों की पहचान करें
  • तधारकों की भागीदारी
  • आधारभूत जानकारी एकत्र कर
  • एकत्र आँकड़ों का विश्लेषण करें
  • प्रत्येक चरण के लिये रणनीति तैयार करें
  • लागू करें
  • निरीक्षण करें

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आधारभूत जानकारी का आंकलन

    • सेप्टेज प्रबंधन के अगले चरण में स्थानिक जानकारी के लिये द्वितीयक स्रोत से आधारभूत डाटा का संग्रह किया जाता है। ये स्रोत जनगणना, राज्य संबंधी सर्वेक्षण, पिछली परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और प्राथमिक सर्वेक्षण हो सकते हैं।
    • यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि कितने परिवार OSS का उपयोग कर रहे हैं। क्षेत्र में घरों के स्थानिक वितरण की गुणात्मक मैपिंग की जानी चाहिये।
    • व्यापक प्रबंधन योजना तैयार करने के लिये ऑनसाइट स्वच्छता प्रणाली पर आश्रित घरों का प्रारंभिक सर्वेक्षण किया जाना चाहिये।
    • सेप्टेज प्रबंधन की योजना के लिये आवश्यक बेसलाइन डाटा में सेप्टेज प्रबंधन की योजना की आधारभूत लेकिन महत्त्वपूर्ण जानकारी सूचीबद्ध की गई है।

sfdसेप्टेज प्रबंधन के लिये चरण

  • सेप्टेज प्रबंधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिये स्वच्छता श्रृंखला के हर चरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सेप्टेज प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य वैज्ञानिक तरीके से सुरक्षित निपटान या अंतिम उपयोग करना है।

कंटेनमेंट प्रणाली


मल के प्रबंधन के लिये शहरी क्षेत्रों में दो मुख्य प्रकार के तंत्र मौजूद हैं:

  1. ऑफसाइट सेनिटेशन सिस्टम, जिसमें प्रयोेक्ता इंटरफेस से एकत्रित किये गए अपशिष्ट जल को एक ही स्थान पर संग्रह और शोधित या आउटलेट से जल निकायों तक ले जाते हैं।
  2. ऑनसाइट सेनिटेशन सिस्टम (OSS), जहाँ मल-जल अपशिष्ट एक कंटेनमेंट प्रणाली में एकत्र किया जाता है और शोधित किया भी जा सकता या नहीं भी किया जा सकता है। चूँकि यह सेप्टेज प्रबंधन संबंधी मार्गदर्शिका है, हमारा फोकस OSS पर है।

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जैव डायजेस्टर (अवायवीय)

  • SBM द्वारा संस्तुत जैव डायजेस्टरों का एक परिवार और क्लस्टर परिवारों, या संस्थागत भवनों से काले पानी का 80 प्रतिशत तक शोधन करने के लिये व्यापक तौर पर उपयोग किया जाता है, जहाँ कोई सीवरेज नेटवर्क नहीं है।
    यह तकनीक DRDO द्वारा विकसित की गई है।
  • जैव-डायजेस्टर प्रौद्योगिकी के दो मुख्य घटक हैं:

(i) एनारोबिक माइक्रोबियल कंसोर्टियम (Anaerobic microbial consortium)
(ii) विशेष रूप से तैयार किण्वन टैंक

  • जैव-शौचालय (एरोबिक)

♦ जैव-शौचालयों में विभिन्न जीवाणु उपभेदों से युक्त एरोबिक डाईजेशन का उपयोग किया जाता है जो अपशिष्ट पदार्थों को ऑक्सीकरण के माध्यम से नष्ट करते हैं।

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  • खाली करना

♦ कंटेनमेंट प्रणाली को यांत्रिक और मैनुअली, दोनों तरह से खाली किया जाता है। एक निश्चित समयावधि के अंत में, आदर्श रूप से दो-तीन वर्ष में, कंटेनमेंट प्रणाली को खाली किया जाना चाहिये। निर्धारित खाली करने के कार्य को, OSS में मल-जल सामग्री के शोधन को आसान बनाने के लिये किया जाना चाहिये।
♦ मैनुअल मैल ढोने पर निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अनुसार, मैनुअल मैला ढोने के लिये नियोजन या उनकी सेवाएँ लेने पर प्रतिबंध है। हालाँकि कई स्थानों पर जहाँ यांत्रिक तौर पर खाली करने की सेवाएँ नहीं ली जा सकतीं, मैनुअली मैला ढोने वालों का काम जारी है।

  • परिवहन

♦ स्वच्छता की महत्ता की श्रृंखला में परिवहन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण चरण है और इसलिये भी कि इसमें सुरक्षा उपाय शामिल हैं। जो वाहन सेप्टेज को लेकर जाते हैं, वे OSS के लिये मोबाइल सीवर नेटवर्क का काम करते हैं।
♦ आदर्श रूप में, एकत्रित सेप्टेज के निपटान का अंतिम स्थल एक STP अथवा सेप्टेज ट्रीटमेंट प्लांट होता है।

  • उत्प्रवाही उपचार

♦ दो प्रकार के मल उत्प्रवाही होते हैं:

(i) उत्प्रवाही या सतह पर तैरने वाला जल, जो सेप्टिक टैंक से बाहर निकलता है।
(ii) पानी सुखाने के बाद सेप्टेज से अलग किया हुआ जल।

  • संसाधनों की पुन: प्राप्ति

♦ निरंतर विकास लक्ष्य का लक्ष्य 6.3 विश्व स्तर पर पुर्नचक्रण और सुरक्षित अंत उपयोग को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है। लक्ष्य-6.3 और लक्ष्य-2.3 आपस में जुड़े हैं जो कि बढ़ती हुई कृषि उत्पादकता की व्याख्या करते हैं।
♦ कृषि में सेप्टेज या मलीय कीचड़ और अपशिष्ट जल (अर्थात् 6.3 और 2.3 लक्ष्यों को कार्यान्वित करना) का सुरक्षित उपयोग ‘लक्ष्य 1 को प्राप्त करने में सहायता करेगा: अत्यधिक गरीबी और भूख को समाप्त करने में’ और ‘लक्ष्य 7: पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायता करेगा।
♦ कृषि में मल-मूत्र के उपयोग से समुदायों को अधिक खाद्यान उपजाने और बहुमूल्य पानी और पोषक संसाधनों का उपयोग कम करने में मदद मिल सकती है। तथापि, इसका उपयोग अधिकतम सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और पर्यावरणीय लाभ के लिये सुरक्षित रूप से किया जाना चाहिये।

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आगे की राह


इस रिपोर्ट के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि देश के शहरी केंद्रों में उत्पन्न होने वाले सेप्टेज का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण क्यों है और इसे कैसे किया जाना है? यह प्रत्येक चरण में मुद्दों और चुनौतियों की जांच करता है और आगे बढ़ने के सबसे उचित तरीके बताता है।


इक्स्क्रीटा मैटर्से: भारत की सातवीं अवस्था पर्यावरण रिपोर्ट के प्रमुख संदेश

  • जल-मल-जल सुरक्षित भविष्य के लिये, शहरों को अलग ढंग से सोचना होगा। शहरों को पानी की आपूर्ति के लिये इसे कम खर्च करना चाहिये। पानी का कम उपयोग करें ताकि उपचार और निपटान कम करना पड़े। सीवेज और सेप्टेज परिवहन और उपचार की लागत में कटौती करें। उपयुक्त प्रौद्योगिकी का उपयोग करें ताकि अपशिष्ट जल, कृषि और उद्योग के लिये एक संसाधन साबित हो सके।
  • इस निरंतर समस्या का एक स्थायी समाधान खोजने के लिये संसाधनों की पुन: प्राप्ति करना और अंत उपयोग समय की आवश्यकता है।लूप को बंद करना महत्त्वपूर्ण है और केवल एक श्रृंखला के रूप में विचार करना उपयुक्त नहीं है। विकेंद्रीकृत सेप्टेज प्रबंधन से (उत्प्रवाही उपचार सहित), उपचारित सेप्टेज और उत्प्रवाही दोनों की क्षमता का उपयोग करके लूप को बंद करने में मदद मिलेगी।
  • प्रत्येक राज्य को एक सेप्टेज प्रबंधन नीति और दिशा-निर्देशों का विकास करना चाहिये, जहाँ स्वच्छता लूप के प्रत्येक चरण के वित्तीय प्रावधान और कड़े नियमों का सुझाव दिया जाए और वे लागू हों।
  • SMP में सेप्टेज प्रबंधन के लिये लघु, मध्यम और दीर्घकालिक योजनाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये। समयबद्ध तरीके से SMP लागू करने से शहरी गरीबों सहित शहरों की स्वच्छता स्थिति में सुधार के लिये निश्चित रूप से मदद मिलेगी।