भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2019 (Vol-I) | 20 May 2020
भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अधीन कार्यरत भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) का 16वाँ द्विवार्षिक आकलन है। भारतीय वन सर्वेक्षण वन क्षेत्रों एवं वन क्षेत्रों के बाहर के वृक्ष क्षेत्रों (Tree Outside Forest- TOF), बाँस के संसाधनों, कार्बन स्टॉक के आकलन, ईंधन, चारे, लघु इमारती लकड़ी (Small Timber) आदि पर वन सीमांत ग्रामों (Forest Fringe Villages) के निवासियों की निर्भरता का आकलन करने के लिये राष्ट्रीय वन सूची (National Forest Inventory) कार्यान्वित करता है। वर्तमान ISFR में ‘वनों के प्रकार एवं जैव-विविधता’ (Forest Types and Biodiversity) नामक एक नए अध्याय को जोड़ा गया है जिसके अंतर्गत वृक्षों की प्रजातियों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित कर उनका ‘चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण’ (Champion & Seth Classification), 1968 के आधार पर आकलन किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल 8,07,276 वर्ग किमी. है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56% है।
- कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वनावरण क्षेत्र 7,12,249 वर्ग किमी. है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.67% है।
- कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वृक्षावरण क्षेत्र 95,027 वर्ग किमी. है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.89% है।
- ISFR 2017 की तुलना में वर्तमान आकलन के अंतर्गत वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।
- वनावरण और वृक्षावरण क्षेत्रफल में कुल 5,188 वर्ग किमी. (0.65%) की वृद्धि हुई है।
- वनाच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि - 3,976 वर्ग किमी. (0.56%)
- वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि - 1,212 वर्ग किमी. (1.29%)
- वर्ष 2017 के पिछले आकलन की तुलना में रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया/ग्रीन वॉश (RFA/GW) में परिवर्तन आया है।
- RFA/GW के भीतर वनावरण में 330 वर्ग किमी. (0.05%) की मामूली कमी आई है।
- RFA/GW के बाहर वनावरण में 4306 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
- वनावरण में वृद्धि के मामले में शीर्ष पाँच राज्य: कर्नाटक> आंध्र प्रदेश> केरल> जम्मू-कश्मीर> हिमाचल प्रदेश।
- पर्वतीय ज़िलों में वनावरण इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 40.30% है। देश के 140 पर्वतीय ज़िलों में 544 वर्ग किमी. (0.19%) की वृद्धि हुई है।
- जनजातीय ज़िलों में कुल वन क्षेत्र इन ज़िलों के भौगोलिक क्षेत्र का 37.54% है।
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र में कुल वन क्षेत्र इनके भौगोलिक क्षेत्र का 65.05% है। वर्तमान आकलन में इस क्षेत्र के वनावरण में 765 वर्ग किमी. (0.45%) की कमी देखी गई है। असम और त्रिपुरा को छोड़कर, देश के सभी राज्यों के वनावरण में कमी आई है।
- देश के मैंग्रोव (Mangrove) आवरण में पिछले आकलन की तुलना में 1.10% की वृद्धि हुई है।
- भारत में 62,466 आर्द्रभूमियाँ देश के RFA/GW क्षेत्र के लगभग 3.83% क्षेत्र को कवर करती हैं। भारतीय राज्यों में गुजरात का सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA के अंतर्गत आता है जबकि पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है।
- वनों पर ईंधन के लिये निर्भरता महाराष्ट्र राज्य में सबसे अधिक है, जबकि चारे, लघु इमारती लकड़ी और बाँस के लिये निर्भरता मध्य प्रदेश में सबसे अधिक है।
इस रिपोर्ट के अंतर्गत यह आकलन किया गया है कि वन सीमांत ग्रामों के निवासियों द्वारा वनों से लघु इमारती लकड़ी का वार्षिक निष्कासन देश में वनों की औसत वार्षिक उपज का लगभग 7% है।
अध्याय 1- विषय प्रवेश
- वनावरण (Forest Cover): यह भूमि पर आच्छादित वन वितान क्षेत्र है (भूमि की वैधानिक स्थिति पर विचार नहीं करते हुए)। इसमें वे सभी वृक्ष आच्छादित क्षेत्र शामिल हैं जिनका वितान घनत्व (Canopy Density) 10% से अधिक है और क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर या उससे अधिक है।
- वितान घनत्व (Canopy Density): इसे मैदान/भूमि में ऐसे क्षेत्र के अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है जो वृक्ष शिखर (Crown of Trees) से आच्छादित हों।
- रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (RFA): रिकार्डेड फॉरेस्ट एरिया (Recorded Forest Area-RFA/GW) सरकारी अभिलेखों में वन के रूप में दर्ज सभी भौगोलिक क्षेत्रों को संदर्भित करता है।
- रिकार्डेड फॉरेस्ट एरिया में वे आरक्षित वन (Reserved Forests- RFs) और संरक्षित वन (Protected Forests- PFs) शामिल हैं, जिनका गठन भारतीय वन अधिनियम, 1927 के प्रावधानों के तहत किया गया है।
- RFs और PFs के अतिरिक्त रिकार्डेड फॉरेस्ट एरिया में वे सभी क्षेत्र शामिल हो सकते हैं जिन्हें राज्य के किसी अधिनियम, स्थानीय कानूनों या किसी राजस्व रिकॉर्ड के अंतर्गत वनों के रूप में दर्ज किया गया है।
- TOF (Trees Outside Forest): ये रिकार्डेड फॉरेस्ट एरिया के बाहर के सभी वृक्ष क्षेत्रों को (आकार पर विचार नहीं करते हुए) संदर्भित करते हैं और इनका आकार 1 हेक्टेयर से अधिक भी हो सकता है।
- वृक्षावरण (Tree cover): RFA के बाहर के सभी वृक्ष क्षेत्र जो 1 हेक्टेयर से कम आकार के हैं और इनमें बिखरे हुए वृक्ष क्षेत्र भी शामिल हैं। ‘ट्री कवर’ TOF के एक बड़े भाग का निर्माण करते हैं। इसलिये ट्री कवर को TOF की उपश्रेणी (Subset) भी माना जा सकता है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष पर कराए जाने वाले वैश्विक वन संसाधन आकलन (Forest Resource Assessment- FRA) के अनुसार भारत में वैश्विक वन क्षेत्रफल का 2% मौजूद है और यह वन क्षेत्र के संबंध में विश्व के शीर्ष दस देशों में 10वें स्थान पर है। 20% वैश्विक वनावरण के साथ रूस इस सूची में शीर्ष पर है।
अध्याय 2- वनावरण
(Forest Cover)
भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में देश के 33% भौगोलिक क्षेत्र को वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र के अंतर्गत रखने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
मुख्य उद्देश्य:
- राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तरों पर वनावरण और उनमें होने वाले परिवर्तनों की निगरानी करना।
- विभिन्न घनत्व वर्गों में वनावरण और उनमें होने वाले परिवर्तनों पर सूचनाओं का सृजन करना।
- पूरे देश के लिये वनावरण और उससे प्राप्त अन्य विषयगत मानचित्र तैयार करना।
- स्टॉक वृद्धि, वन कार्बन आदि सहित विभिन्न मानदंडों के आकलन के लिये एक प्राथमिक आधार स्तर प्रदान करना।
- अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग के लिये सूचना प्रदान करना।
- वनावरण (Forest cover): स्वामित्व, भूमि की वैधानिक स्थिति और वृक्षों के प्रजातीय संघटन पर विचार नहीं करते हुए एक हेक्टेयर से बड़े सभी वृक्ष आच्छादित भूमि क्षेत्र जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 10 प्रतिशत से अधिक हो।
- अति सघन वन (Very Dense Forest): सभी भूमि क्षेत्र जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 70% और उससे अधिक है। इस श्रेणी के अंतर्गत वनावरण 3.02% है।
- मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest): सभी भूमि क्षेत्र जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 40% और उससे अधिक लेकिन 70% से कम है। इस श्रेणी के अंतर्गत वनावरण 9.39% है।
- खुले वन (Open Forest): सभी भूमि क्षेत्र जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 10% और उससे अधिक लेकिन 40% से कम है। इस श्रेणी के अंतर्गत वनावरण 9.26% है।
- झाड़ी वन (Scrub Forest): सभी भूमि क्षेत्र जहाँ वृक्ष वितान घनत्व 10% से कम है। इस श्रेणी के अंतर्गत 1.41% भौगोलिक क्षेत्र शामिल है।
- गैर-वन (Non-forest): उपरोक्त वर्गों (जल क्षेत्र सहित) में गैर-सम्मिलित भूमि क्षेत्र। गैर-वन श्रेणी के अंतर्गत 76.92% भूमि क्षेत्र शामिल है।
- भारत में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य: मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
- सर्वाधिक वनावरण प्रतिशत वाले राज्य: मिज़ोरम (85.41%)> अरुणाचल प्रदेश (79.63%)> मेघालय (76.33%)> मणिपुर (75.46%)> नगालैंड (75.41%)।
- ISFR 2017 रिपोर्ट की तुलना में देश में वनावरण में 3,976 वर्ग किमी. की समग्र वृद्धि हुई है।
- वनावरण में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाने वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश: कर्नाटक>आंध्र प्रदेश> केरल>जम्मू-कश्मीर।
- वनावरण में कमी दर्शाने वाले राज्य: मणिपुर>अरुणाचल प्रदेश>मिज़ोरम।
- जनजातीय ज़िलों में वनावरण में 1,181 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
- भारत सरकार द्वारा एकीकृत जनजातीय विकास कार्यक्रम (Integrated Tribal Development Programme- ITDP) के अंतर्गत 27 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 218 जनजातीय ज़िलों को चिह्नित किया गया है।
- भारतीय राज्यों में गुजरात का सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA के अंतर्गत आता है जबकि दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है। वन क्षेत्रों के अंदर आर्द्रभूमि महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों का निर्माण करती है।
- छोटे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से पुदुचेरी का सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA/GW के अंतर्गत शामिल है जबकि दूसरे स्थान पर अंडमान-निकोबार है।
- देश में कुल 62,466 आर्द्रभूमियाँ देश के RFA/GW क्षेत्र के लगभग 3.83% क्षेत्र को कवर करती हैं।
अध्याय 3- मैंग्रोव वन क्षेत्र
(Mangrove Cover)
मैंग्रोव विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लवण-सहिष्णु पादप समुदायों का एक विविध समूह है जो ऑक्सीजन की कमी, उच्च लवणता और दैनिक ज्वारीय आप्लावन (Tidal Inundation) जैसे सीमाकारी कारकों के बीच भी अस्तित्व को बनाए रखता है।
चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण (1968) के अनुसार, मैंग्रोव वन प्रकार समूह 4– वेलांचली एवं अनूप वन (Type Group-4 Littoral & Swamp Forests) में शामिल हैं।
चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण (1968)
- वर्ष 1936 में हैरी जॉर्ज चैंपियन (Harry George Champion) ने भारत की वनस्पति का सबसे लोकप्रिय एवं मान्य वर्गीकरण किया था।
- वर्ष 1968 में चैंपियन एवं एस.के. सेठ (S.K Seth) ने मिलकर स्वतंत्र भारत के लिये इसे पुनः प्रकाशित किया।
- यह वर्गीकरण पौधों की संरचना, आकृति विज्ञान और पादपी स्वरुप पर आधारित है।
- इस वर्गीकरण में वनों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित कर उन्हें 221 उपवर्गों में बाँटा गया है।
मैंग्रोव वनस्पति का महत्त्व
- मैंग्रोव में एक जटिल जड़ प्रणाली होती है जो समुद्री लहर ऊर्जा को नष्ट करने में बहुत कुशल होती है और इस प्रकार तटीय क्षेत्रों को सुनामी, तूफान एवं मृदा अपरदन से बचाती है। वर्ष 2004 की विनाशकारी सुनामी के बाद उनकी सुरक्षात्मक भूमिका को व्यापक रूप से मान्यता प्रदान की गई है।
- मैंग्रोव की जड़ें जल प्रवाह को मंद कर देती हैं और तलछट जमाव की वृद्धि करती हैं। इस प्रकार मैंग्रोव क्षेत्र भारी धातु संदूषक सहित बारीक तलछट को जब्त करने के कारण भूमि संवृद्धि के क्षेत्र के रूप में कार्य करते हैं। वे तटीय क्षरण और समुद्री जल प्रदूषण को भी जब्त करते हैं।
- वे विभिन्न मछली प्रजातियों और अन्य समुद्री जीवों के लिये एक उपजाऊ प्रजनन क्षेत्र (Breeding Ground) के रूप में कार्य करते हैं।
- वे शहद, टैनिन, मोम और मछली संग्रहण पर निर्भर तटीय समुदायों के लिये आजीविका के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
- मैंग्रोव क्षेत्र महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में भी कार्य करते हैं।
- विश्व के मैंग्रोव आवरण का लगभग 40% दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में पाया जाता है।
- भारत में मैंग्रोव आवरण 4,975 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में मैंग्रोव आवरण में 54 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
- राज्यों और संघशासित प्रदेशों में पश्चिम बंगाल में मैंग्रोव आवरण का उच्चतम प्रतिशत क्षेत्र मौजूद है जबकि उसके बाद गुजरात और अंडमान निकोबार द्वीप समूह का स्थान है।
- मैंग्रोव आवरण में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य हैं: गुजरात> महाराष्ट्र> ओडिशा।
अध्याय 4: वन प्रकार और जैव-विविधता
(Forest Types & Biodiversity)
वनों की श्रेणी को वर्गीकृत करने के लिये चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण द्वारा कुल 16 प्रकारों की पहचान की गई है:
- आर्द्र उष्णकटिबंधीय वन (Moist Tropical Forest):
- उष्णकटिबंधीय नम सदाबहार वन (Tropical Wet Evergreen Forest)
- उष्णकटिबंधीय अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropical Semi-Evergreen Forest)
- उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical Moist Deciduous Forest)
- वेलांचली एवं अनूप वन (Littoral and Swamp Forest)
- शुष्क उष्णकटिबंधीय वन (Dry Tropical Forest)
- उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical Dry Deciduous Forest)
- उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन (Tropical Thorn Forest)
- उष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropical Dry Evergreen Forest)
- पर्वतीय उपोष्णकटिबंधीय वन (Montane Subtropical Forest)
- उपोष्णकटिबंधीय पृथुपर्णी पहाड़ी वन (Montane Wet Temperate Forest)
- उपोष्णकटिबंधीय पाइन वन (Subtropical Pine Forest)
- उपोष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Subtropical Dry Evergreen Forest)
- पर्वतीय समशीतोष्ण वन (Montane Temperate Forest)
- पर्वतीय नम समशीतोष्ण वन (Montane Wet Temperate Forest)
- हिमालयी आर्द्र समशीतोष्ण वन (Himalayan Moist Temperate Forest)
- हिमालयी शुष्क समशीतोष्ण वन (Himalayan Dry Temperate Forest)
- उप-अल्पाइन वन (Subalpine Forest)
- उप-अल्पाइन वन (Subalpine Forest)
- अल्पाइन झाड़ियाँ (Alpine Scrub)
- आर्द्र अल्पाइन झाड़ियाँ (Moist Alpine Scrub)
- शुष्क अल्पाइन झाड़ियाँ (Dry Alpine Scrub)
- निम्नलिखित वर्गों में अधिकतम प्रजाति विविधता वाले राज्य:
- वृक्ष (Trees): कर्नाटक
- झाड़ियाँ (Shrubs): अरुणाचल प्रदेश
- शाक/जड़ी बूटी (Herbs): जम्मू-कश्मीर
- इन तीनों प्रकार की पादप प्रजातियों को साथ रखते हुए अधिकतम पादप प्रजाति समृद्धि वाले राज्य: अरुणाचल प्रदेश> तमिलनाडु> कर्नाटक।
अध्याय 5- वनाग्नि निगरानी
(Forest Fire Monitoring)
वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना, 2018
(National Action Plan on Forest Fires, 2018)
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने देश में वन अग्नि प्रबंधन को पुनर्जीवित करने के लिये वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना, 2018 प्रस्तुत की है।
मुख्य उद्देश्य
- सूचित करना;
- सक्षम करना;
- वन सीमांत समुदायों (Forest Fringe Communities) को सशक्त करना; और
- उन्हें राज्य वन विभागों (SFDs) के साथ मिलकर कार्य करने के लिये प्रेरित करना।
- यह योजना भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) में ‘वनाग्नि प्रबंधन पर उत्कृष्टता केंद्र’ की स्थापना सहित समस्या को संबोधित करने के लिये नौ रणनीतियों का प्रस्ताव करती है।
- जून 2018 में जारी MoEF&CC और विश्व बैंक की एक संयुक्त अध्ययन रिपोर्ट- ‘भारत में वनाग्नि प्रबंधन का सशक्तीकरण’ (Strengthening Forest Fire Management in India) से पता चला है कि वर्ष 2000 में 20 ज़िले (जो भारत के 3% भूमि क्षेत्र और 16% वनावरण का प्रतिनिधित्व करते हैं) वनाग्नि के 44% मामलों के लिये उत्तरदायी हैं।
- 16 जनवरी, 2019 को वनाग्नि चेतावनी प्रणाली संस्करण 3.0 (Forest Fire Alert System version 3.0- FAST 3.0) का उन्नत संस्करण जारी किया गया जिसमें वनाग्नि की बड़ी घटनाओं की निगरानी हेतु एक पृथक कार्यकरण बनाया गया है।
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के वनावरण को विभिन्न अग्नि प्रवण वर्गों में रखा गया है:
- अत्यंत अग्नि प्रवण (Extremely Fire Prone): मिज़ोरम> त्रिपुरा
- अति उच्च अग्नि प्रवण (Very Highly Fire Prone): मिज़ोरम> मणिपुर
- उच्च अग्नि प्रवण (Highly Fire Prone): नगालैंड> मणिपुर
- मध्यम अग्नि प्रवण (Moderately Fire Prone): पंजाब> नगालैंड
- अधिकांश अग्नि प्रवण वन क्षेत्र उत्तर-पूर्वी भारत और मध्य भारत में मौजूद हैं।
अध्याय 6- वृक्षावरण
(Tree Cover)
देश का कुल वृक्षावरण या ट्री कवर 95,027 वर्ग किमी. आकलित किया गया है।
- वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में देश में वृक्षावरण में 1,212 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
वृक्षावरण का राज्यवार आकलन:
- अधिकतम वृक्षावरण: महाराष्ट्र> मध्य प्रदेश> राजस्थान> जम्मू और कश्मीर।
- अधिकतम वृक्षावरण (भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में): चंडीगढ़> दिल्ली> केरल> गोवा।
वन क्षेत्रों के बाहर के वृक्ष (Tree Outside Forest- TOF) का राज्यवार आकलन
- अधिकतम TOF: महाराष्ट्र> ओडिशा> कर्नाटक
- अधिकतम TOF (भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में): केरल> गोवा> नगालैंड
अध्याय 7- ग्रोइंग स्टॉक
(Growing Stock)
राष्ट्रीय वन सूची (National Forest Inventory- NFI)
- यह भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा की जाने वाली एक प्रमुख वन संसाधन आकलन गतिविधि है।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य ग्रोइंग स्टॉक (Growing stock: Volume of all living trees in a given area of forest or wooded land that have more than a certain diameter at breast height. It is usually measured in solid cubic metres), वृक्षों की संख्या, बाँस, मृदा कार्बन, NTFP (Non-Timber Forest Products) की उपस्थिति एवं आक्रामक प्रजातियों और अन्य मानकों का आकलन करना है जो वन के विकास स्वास्थ्य का चित्रण करते हैं।
- NFI के तीन घटक हैं: वन सूची (Forest Inventory), TOF (ग्रामीण) सूची [TOF (Rural) Inventory] और TOF (शहरी) सूची [TOF (Urban) Inventory]।
अध्याय 8- देश के बाँस संसाधन
(Bamboo Resources of the Country)
भारत में कश्मीर क्षेत्र के अतिरिक्त पूरे देश में प्राकृतिक रूप से बाँस की वृद्धि हुई है। भारत 23 वंशों (genera) के लगभग 125 स्वदेशी और 11 विदेशी बाँस प्रजातियों का घर है। बाँस किसी भी क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- देश में कुल बाँस क्षेत्र: 16.00 मिलियन हेक्टेयर।
- बाँस क्षेत्र में वृद्धि: ISFR 2017 की तुलना में 0.32 मिलियन हेक्टेयर।
- अधिकतम बाँस क्षेत्र वाले राज्य: मध्य प्रदेश> महाराष्ट्र> अरुणाचल प्रदेश> ओडिशा।
- शुद्ध बाँस की अधिकतम उपस्थिति: महाराष्ट्र> मध्य प्रदेश> छत्तीसगढ़।
अध्याय 9- भारत के वनों में कार्बन स्टॉक
(Carbon Stock in India’s Forest)
देश के वनों में कुल 7,124.6 मिलियन टन कार्बन स्टॉक होने का आकलन किया गया है। वर्ष 2017 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 42.6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।
- राज्यवार अधिकतम कार्बन स्टॉक: अरुणाचल प्रदेश> मध्यप्रदेश> छत्तीसगढ़> महाराष्ट्र।
- राज्यवार अधिकतम प्रति हेक्टेयर कार्बन स्टॉक: सिक्किम> अंडमान-निकोबार> जम्मू-कश्मीर> हिमाचल प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश।
- मृदा जैविक कार्बन (Soil organic carbon) वन कार्बन का सबसे बड़ा पूल है; इसके बाद अपर ग्राउंड बायोमास (AGB), बिलो ग्राउंड बायोमास (BGB), अपशिष्ट (Litter) और मृत लकड़ी (Dead wood) का योगदान है।
अध्याय 10- लोग और वन
(People & Forests)
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 1,70,000 ग्राम वन क्षेत्रों की निकट स्थित हैं और इन्हें वन सीमांत ग्राम या फॉरेस्ट फ्रिंज विलेज (Forest Fringe Villages- FFV) कहा जाता है।
- FSI द्वारा किये गए अध्ययन में वनों के निकट रहने वाले लोगों की निर्भरता का आकलन निम्नलिखित उत्पादों के संदर्भ में किया गया:
- ईंधन लकड़ी की मात्रा
- चारे की मात्रा
- लघु इमारती लकड़ी की मात्रा
- बाँस की मात्रा
- उपरोक्त उत्पादों के संदर्भ में वनों पर निर्भरता वाले शीर्ष 3 राज्य:
- ईंधन लकड़ी: महाराष्ट्र> ओडिशा> राजस्थान
- चारा: मध्य प्रदेश> महाराष्ट्र> गुजरात
- लघु इमारती लकड़ी: मध्य प्रदेश> गुजरात> महाराष्ट्र
- बाँस: मध्य प्रदेश> छत्तीसगढ़> गुजरात