हरियाणा Switch to English
हरियाणा में संरक्षित पुरातत्त्व स्थल
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार ने भिवानी ज़िले में 4,400 साल से भी ज़्यादा पुराने दो हड़प्पा सभ्यता स्थलों को संरक्षित स्मारक और पुरातात्विक स्थल घोषित किया है। ये स्थल तिघराना और मिताथल गाँव में स्थित हैं।
मुख्य बिंदु
- अधिसूचना के बारे में:
- हरियाणा के धरोहर एवं पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव ने एक अधिसूचना जारी कर 10 एकड़ क्षेत्र में फैले मिताथल स्थल को हरियाणा प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1964 के तहत संरक्षित घोषित किया है।
- हरियाणा विरासत एवं पर्यटन विभाग इस स्थल की सुरक्षा के लिये कदम उठाएगा, जिसमें बाड़ लगाना और गार्ड तैनात करना शामिल है।
- मिताथल का ऐतिहासिक महत्त्व:
- मिताथल में वर्ष 1968 से किये जा रहे उत्खनन से तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की ताम्र-कांस्य युगीन संस्कृति के साक्ष्य सामने आए हैं।
- इस जगह की पहचान सबसे पहले वर्ष 1913 में हुई थी जब समुद्रगुप्त के सिक्कों का एक भंडार मिला था। वर्ष 1965 और 1968 के बीच की अन्य खोजों में मोती, ताँबे के औज़ार और प्रोटो-ऐतिहासिक सामग्री शामिल थी।
- मिताथल में खुदाई से शहरी नियोजन, वास्तुकला और शिल्पकला में हड़प्पा परंपराओं का पता चलता है। इस स्थल से अच्छी तरह से जले हुए मिट्टी के बर्तन, ज्यामितीय डिज़ाइन और मोतियों, चूड़ियों और टेराकोटा वस्तुओं सहित विभिन्न पुरावशेष मिले हैं।
- चिंताएँ:
- अधिकारियों के अनुसार, ग्रामीणों ने इस क्षेत्र को पहले कृषि भूमि समझते हुए वहाँ व्यवधान उत्पन्न किया था। आगे और नुकसान को रोकने के लिये आधिकारिक सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक टीम द्वारा इस स्थल की चार बार खुदाई की गई है (2016, 2020, 2021 और 2024), जिसमें प्राचीन सभ्यता से संबंधित महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं।
- तिघराना का पुरातात्विक महत्त्व:
- तिघराना स्थल हड़प्पा काल के बाद मानव बस्ती के विकास के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
- साक्ष्य बताते हैं कि इस क्षेत्र में सर्वप्रथम ताम्रपाषाणकालीन कृषि समुदाय लगभग 2,400 ई.पू. में बसा था।
- सोथियन, जैसा कि शुरुआती बसने वालों को जाना जाता था, छोटे मिट्टी-ईंट के घरों में रहते थे जिनकी छतें फूस की थीं। वे कृषि में लगे हुए थे और काले और सफेद डिज़ाइनों के साथ चाक से बने मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे।
- तिघराना से प्राप्त अवशेषों में मनके बनाने और आभूषण उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं, जिनमें मोतियों और हरी कार्नेलियन चूड़ियों की खोज भी शामिल है।
- अधिकारियों ने पुष्टि की है कि चल रही खोजें क्षेत्र में सिसवाल-पूर्व, हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पा-पश्चात की बस्तियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती हैं।
- तिघराना स्थल हड़प्पा काल के बाद मानव बस्ती के विकास के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
हड़प्पा सभ्यता
- हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के रूप में भी जाना जाता है, सिंधु नदी के किनारे लगभग 2500 ईसा पूर्व में विकसित हुई थी।
- यह मिस्र, मेसोपोटामिया और चीन के साथ चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में सबसे बड़ी थी।
- ताँबा आधारित मिश्रधातुओं से बनी अनेक कलाकृतियों की खोज के कारण सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- दया राम साहनी ने सबसे पहले वर्ष 1921-22 में हड़प्पा की खुदाई की और राखल दास बनर्जी ने 1922 में मोहनजो-दारो की खुदाई शुरू की।
- ASI के महानिदेशक सर जॉन मार्शल उस उत्खनन के लिये ज़िम्मेदार थे जिसके परिणामस्वरूप सिंधु घाटी सभ्यता के हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों की खोज हुई।

