मध्य प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन | मध्य प्रदेश | 08 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व के आसपास वन अधिकारों की गैर-मान्यता और बलपूर्वक स्थानांतरण के प्रयासों के संबंध में 52 गाँवों की याचिकाओं और शिकायतों का संज्ञान लिया।
प्रमुख बिंदु
- प्रतिबंध और MoTA के निर्देश:
- ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सितंबर 2023 में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व की अधिसूचना के बाद वन अधिकार दावों को अस्वीकार कर दिया गया और जबरन स्थानांतरण किया गया, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) 1972 का उल्लंघन है।
- ग्रामीणों ने वन संसाधनों, उपज और खेतों तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया।
- जनजातीय कार्य मंत्रालय के पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित करना उल्लंघन है तथा सलाह दी गई कि राज्य वन विभागों और ज़िला कलेक्टरों के परामर्श से मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिये।
- पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, ज़िला कलेक्टरों और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भी उचित कार्यवाही और सामुदायिक हितों की सुरक्षा के लिये निर्देशित किया गया।
- स्थानांतरण के लिये कानूनी ढाँचा:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम बाघ संरक्षण के लिये 'अछूते' क्षेत्रों के निर्माण की अनुमति देता है, लेकिन ऐसा केवल जनजातीय और वन-निवास समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने और उनका समाधान करने के बाद ही किया जा सकता है।
- ग्रामीणों का पुनर्वास स्वैच्छिक रूप से तभी हो सकता है जब FRA और WLPA दोनों के अनुसार उनके अधिकारों को मान्यता दे दी जाए।
- जनजातीय कार्य मंत्रालय ने महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवासों के स्थानांतरण संबंधी निर्णयों में ग्राम सभा की सहमति और सामुदायिक भागीदारी के महत्त्व पर बल दिया।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- इसे वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक जनजातियों को वन भूमि पर औपचारिक रूप से वन अधिकारों और कब्जे को मान्यता देने और प्रदान करने के लिये पेश किया गया था, जो पीढ़ियों से इन वनों में रह रहे हैं, भले ही उनके अधिकारों को आधिकारिक तौर पर अभिलिखित नहीं किया गया हो।
- इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत की वन प्रबंधन नीतियों के कारण वन-निवासी समुदायों द्वारा सामना किये गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना था, जो वनों के साथ उनके दीर्घकालिक सहजीवी संबंधों को स्वीकार करने में विफल रहे।
- इसके अतिरिक्त, अधिनियम का उद्देश्य जनजातिययों को वन संसाधनों तक पहुँच और उनका स्थायी उपयोग करने, जैवविविधता और पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देने तथा उन्हें गैरकानूनी स्थानांतरण और विस्थापन से बचाने के लिये उन्हें सशक्त बनाना था।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- यह वन्यजीवों और पादपों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, वन्यजीवों, पादपों और उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन और नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- अधिनियम में उन पादपों और वन्यजीवों की अनुसूचियाँ भी सूचीबद्ध की गई हैं जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर पर संरक्षण और निगरानी प्रदान की जाती है।
- वन्यजीव अधिनियम द्वारा CITES (वन्य जीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय) में भारत का प्रवेश आसान बना दिया गया।