छत्तीसगढ़ Switch to English
यूरेशियन विम्ब्रेल
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य में ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) ट्रांसमीटर से टैग किये गए एक प्रवासी पक्षी 'यूरेशियन या कॉमन विम्ब्रेल' को पहली बार कैमरे में रिकॉर्ड किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- पक्षी विज्ञानियों और राज्य वन अधिकारियों के अनुसार, प्रवासी पक्षी लंबी दूरी से प्रवास करते हुए छत्तीसगढ़ में देखे गए, क्योंकि रायपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर बेमेतरा ज़िले के बेरला क्षेत्र में आर्द्रभूमि मौजूद है।
- भारत में यह पहली बार है कि इस तरह के जीपीएस-टैग वाले पक्षी को देखा गया।
- वनस्पति के नुकसान और अतिक्रमण का सामना कर रहे ऐसे जलीय जैवविविधता वाले आवास तथा आर्द्रभूमि को बहाल करने की अधिक आवश्यकता है।
यूरेशियन विम्ब्रेल
- यह स्कोलोपेसिडे परिवार का एक दलदली पक्षी है।
- वैज्ञानिक नाम: न्यूमेनियस फेओपस
- क्षेत्र:
- यह पाँच महाद्वीपों में फैले हुए हैं: उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और यूरोप।
- वे गर्मियों के महीनों में साइबेरिया और अलास्का के उप-आर्कटिक क्षेत्रों में प्रजनन करते हैं तथा फिर दक्षिणी अमेरिका, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका एवं नेपाल सहित दक्षिण एशिया के शीतकालीन क्षेत्रों में प्रवास करते हैं।
- आवास: शीतकाल में मुख्यतः समुद्र तट, आर्द्रभूमि, मैंग्रोव, दलदली भूमि और बड़ी नदियों के तट पर निवास करते हैं।
- विशेषताएँ:
- यह काफी बड़ा भूरा-भूरा पक्षी है, जिसकी लंबी घुमावदार चोंच होती है।
- इसके सिर की संरचना अलग है, जिसमें गहरे रंग की धारीदार आँखें हैं।
- यह ऊपर से गहरे भूरे रंग का और नीचे से हल्का पीला होता है तथा गले एवं छाती पर बहुत अधिक भूरे रंग की धारियाँ होती हैं।
- विम्ब्रेल अपनी ऊँची आवाज़ के लिये जाने जाते हैं, जिसमें सात स्वरों की एक दोहरावदार शृंखला होती है।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: बहुत कम संकट ( Least Concern)
मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में रेड अलर्ट
चर्चा में क्यों?
भारतीय मौसम विभाग ने मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भीषण गर्मी (हीट वेव) की स्थिति के लिये रेड अलर्ट जारी किया है।
मुख्य बिंदु:
- IMD भोपाल के मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, राज्य के ग्वालियर, भिंड, दतिया, मुरैना और निवाड़ी ज़िलों में भीषण गर्मी (हीट वेव) पड़ने की संभावना है
- इन इलाकों में रेड अलर्ट जारी किया गया है तथा तापमान 46-47 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहने की संभावना।
- इसी तरह विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, भोपाल, खंडवा, खरगोन, शाजापुर, आगर मालवा, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, श्योपुर, सिंगरौली, सीधी, रीवा, मऊगंज, सतना, मैहर, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, कटनी, पन्ना, दमोह, सागर, छतरपुर और टीकमगढ़ में भीषण गर्मी पड़ेगी।
हीट वेव (Heat Waves)
- परिचय:
- हीट वेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
- भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीट वेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
- भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड:.
- मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र
- यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीट वेव की स्थिति माना जाता है।
- हीट वेव के मानक से विचलन का आधार: विचलन 4.50 डिग्री सेल्सियस से 6.40 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
- चरम हीट वेव: सामान्य से विचलन>6.40°C है।
- वास्तविक अधिकतम तापमान हीट वेव पर आधारित: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥45°C हो।
- चरम हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥47 डिग्री सेल्सियस हो।
- यदि एक मौसम विज्ञान उपखंड के भीतर कम-से-कम दो स्थान न्यूनतम दो दिनों के लिये उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो इसकी घोषणा दूसरे दिन की जाती है।
- तटीय क्षेत्र:
- जब अधिकतम तापमान विचलन सामान्य से 4.50 डिग्री सेल्सियस अथवा अधिक होता है, तो इसे हीट वेव कहा जा सकता है, बशर्ते वास्तविक अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक हो।
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड की फूलों की घाटी
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड में फूलों की घाटी पर्यटकों के लिये 1 जून से खुल रही है। यह उत्तराखंड के नंदा देवी बायोस्फीयर रिज़र्व के भीतर स्थित है, जिसे वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) विश्व धरोहर के रूप में शामिल किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान में हिमालय की 300 से अधिक देशी फूलों की प्रजातियाँ हैं, जो जून से नवंबर तक मानसून के मौसम में देखी जा सकती हैं।
- इसमें 300 से ज़्यादा तरह की पुष्प प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे- एनीमोन, गेरेनियम, ब्लू पॉपी और ब्लूबेल। यह ग्रे लंगूर, उड़ने वाली गिलहरी, हिमालयन वीज़ल, काला भालू, लाल लोमड़ी, लाइम तितली, हिम तेंदुआ तथा हिमालयन मोनाल जैसी दुर्लभ पशु प्रजातियों का निवास स्थल है।
बायोस्फीयर रिज़र्व
- बायोस्फीयर रिज़र्व (BR) प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के प्रतिनिधि भागों के लिये संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय पदनाम है जो स्थलीय या तटीय/ समुद्री पारिस्थितिक तंत्र या इसके संयोजन के बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है
- बायोस्फीयर रिज़र्व प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक विकास एवं संबंधित सांस्कृतिक मूल्यों के रखरखाव को संतुलित करने का प्रयास करता है
- इस प्रकार बायोस्फीयर रिज़र्व लोगों और प्रकृति दोनों के लिये विशेष वातावरण हैं तथा यह इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि कैसे मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे की ज़रूरतों का सम्मान करते हुए सह-अस्तित्त्व में रह सकते हैं।
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में बागवानी की पैदावार में गिरावट
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड में वर्ष 2023 में, 44,882 हेक्टेयर कृषि भूमि चरम मौसम की घटनाओं के कारण नष्ट हो गई है। घटती कृषि संभावनाओं के कारण पहाड़ी इलाकों से मैदानी इलाकों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है, जिससे बागवानी उत्पादन के लिये समर्पित क्षेत्र में कमी आने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्तराखंड में बागवानी उत्पादन के क्षेत्र में कमी के कारण भी प्रमुख फलों की पैदावार में भी वर्ष 2016-17 और 2022-23 के दौरान उल्लेखनीय बदलाव देखे गए हैं
- अमरूद और करौंदे की खेती में वृद्धि से पता चलता है कि अब बाज़ार की मांग या स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप फलों की किस्मों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। उत्तराखंड की बागवानी फसल पर ग्लोबल वार्मिंग के महत्त्वपूर्ण प्रभाव के कारण पिछले 7 वर्षों में प्रमुख फलों जैसे उच्च गुणवत्ता वाले सेबों, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा और खूबानी के उत्पादन में ज़बरदस्त गिरावट आई है
- उत्तराखंड में भारी वर्षा, बाढ़, ओलावृष्टि और भूस्खलन जैसी आपदाएँ लगातार आती रही हैं, जिससे कृषि भूमि तथा फसलों को भारी नुकसान पहुँचा है।
- बढ़ते तापमान के कारण शीतकालीन फलों की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिससे किसान उष्णकटिबंधीय विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। जो बदलती जलवायु परिस्थितियों के लिये बेहतर रूप से अनुकूल हैं ।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के अनुसार, तापमान में अल्पकालिक परिवर्तनशीलता और रुझान चिंताजनक हैं तथा मौसम के बदलावों में दीर्घकालिक रुझान एवं उपज के साथ इसके संबंध का अध्ययन करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से, फसल/फसल प्रारूप में किसी भी प्रकार के बदलाव या फसल/फसल प्रारूप में बदलाव के साथ इसके संबंध का अध्ययन करने की आवश्यकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
- इसकी स्थापना 16 जुलाई 1929 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी।
- यह भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा विभाग (DARE) के तहत एक स्वायत्त संगठन है
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। देश भर में फैले 102 ICAR संस्थानों और 71 कृषि विश्वविद्यालयों के साथ यह दुनिया की सबसे बड़ी राष्ट्रीय कृषि प्रणालियों में से एक है
- यह पूरे देश में बागवानी, मत्स्य पालन और पशु विज्ञान सहित कृषि में अनुसंधान तथा शिक्षा के समन्वय, मार्गदर्शन एवं प्रबंधन के लिये सर्वोच्च निकाय है।
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उत्तराखंड में छात्रों के लिये द्विभाषीय पुस्तकें
चर्चा में क्यों?
देश में अपनी तरह की पहली पहल के तहत उत्तराखंड सरकार वर्तमान शैक्षणिक सत्र से विद्यार्थियों को द्वि-भाषा विज्ञान पुस्तकें उपलब्ध कराएगी।
प्रमुख बिंदु:
- छठी से आठवीं कक्षा के लिये विज्ञान की, जबकि उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिये भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान की तीन अलग-अलग द्विभाषीय पुस्तकें होंगी।
- राज्य शिक्षा विभाग के अनुसार, दोहरी भाषाओं में तैयार और मुद्रित पुस्तकें शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले सभी राज्य संचालित स्कूलों में पहुँचा दी गई हैं। ये पुस्तकें हिंदी या अंग्रेज़ी भाषा में अलग-अलग प्रकाशित नहीं की गई हैं बल्कि प्रत्येक भाग एक ही पाठ्यक्रम का पालन करता है और दोनों भाषाओं में आसन्न पृष्ठों पर दिये गए हैं।
- उत्तराखंड के चुनिंदा 800 सरकारी स्कूलों में जल्द ही दो-दो स्मार्ट क्लास होंगी। सभी 1,600 स्मार्ट क्लास को तारों के ज़रिए आपस में जोड़ा जाएगा।
- स्कूलों को उच्च तकनीक वाले डिजिटल उपकरणों से सुसज्जित किया जाएगा, जिनमें बड़ी स्क्रीन, ऑनलाइन 3D शिक्षा मॉड्यूल, इंटरनेट सेवाएँ और अन्य तकनीकें एवं राजपत्र शामिल होंगे।
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