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गोरखपुर के ‘पनियाला’ को मिला जीआई टैग
चर्चा में क्यों?
29 जनवरी, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार की हाईपावर कमेटी ने जिन 21 कृषि उत्पादों को जीआई टैग के लिये अनुमति दी है, उनमें पनियाला भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- जीआई टैग की अनुमति मिलने से गोरखपुर के लच्छीपुर और आस-पास के गाँवों में पैदा होने वाले पनियाला का स्वाद अब देश-दुनिया तक पहुँचेगा। नष्ट होते जा रहे पनियाला के पेड़ संरक्षित किये जाएंगे, पनियाला के बगीचे तैयार होंगे और उसके फल के खट्टे-मीठे स्वाद का लोग आनंद उठाएंगे।
- ज्ञातव्य है कि पनियाला आकार और रंग में जामुन से मिलता-जुलता है तथा इसका स्वाद खट्टा-मीठा है।
- उत्तर प्रदेश स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड की ई-पत्रिका के मुताबिक स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह कहाँ का पेड़ हैं। संभावना इस बात की ज़रूर है कि यह मूलत: उत्तर प्रदेश में ही पाया जाने वाला फल है। पनियाला की वास्तविक उपज भले ही कहीं हो, लेकिन गोरखपुर महानगर के उत्तरी इलाके में स्थित लच्छीपुर से लेकर नकहा रेलवे स्टेशन के बीच इसके कई बागीचे थे। पहले लच्छीपुर की पहचान ही पनियाला थी। लंबे समय तक इस गाँव के लोगों की आय का ज़रिया पनियाला और अमरूद के फल थे।
- उल्लेखनीय है कि पनियाला 60 से 90 रुपए किलो तक बिक जाता है। कभी-कभी 100-150 रुपए किलो तक भी बिकता है। एक पेड़ से 4000 रुपए की आय हो जाती है।
- वर्ष 2011 से 2018 के बीच पं. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग में हुए कई शोध में यह बात सामने आई कि पनियाला गुणों की खान है। शोध के अनुसार इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है। पेट से जुड़े रोगों में पनियाला काफी लाभकारी होता है। दाँतों और मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खराश आदि के इलाज़ में भी इसका प्रयोग होता रहा है। इसे संरक्षित कर लंबे समय तक रखा भी जाता है।
- विदित है कि पं. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के शिक्षक प्रो. वी.एन. पांडेय के निर्देशन में उनकी शोध छात्रा निहारिका पांडेय द्विवेदी ने भी पनियाला पर अपना शोध पूरा किया था। वर्ष 2015 में निहारिका का शोध सामने आया, जिसे विशेषज्ञों ने खूब सराहा। पनियाला में सेहत के लिहाज से कई फायदेमंद तत्त्व पाए गए।
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