बिहार: आकाशीय बिजली/तड़ित गिरने से सबसे ज़्यादा मौतें | बिहार | 30 Apr 2024
चर्चा में क्यों?
बिहार में आकाशीय बिजली/तड़ित गिरने से होने वाली मौतों के एक नए अध्ययन से पता चला है कि राज्य में शिवहर, बाँका, कैमूर और किशनगंज ज़िले इस प्राकृतिक खतरे के प्रति सबसे संवेदनशील थे, जहाँ प्रति मिलियन जनसंख्या पर मृत्यु दर सबसे अधिक दर्ज की गई।
- अध्ययन में वर्ष 2017-2022 की अवधि के आँकड़ों की जाँच की गई और पाया गया कि आकाशीय बिजली गिरने से 1,624 लोगों की मौत हो गई तथा 286 घायल हो गए।
मुख्य बिंदु:
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार, लगभग सभी 1,624 मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं और इनमें से अधिकतर मृत्यु और हताहत की संख्या, लगभग 76.8%, दोपहर 12:30 बजे से शाम 6:30 बजे के बीच आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुईं।
- अध्ययन में 1,577 मौतों के लिये लिंग-पृथक डेटा की पहचान की गई। इन 1,577 मौतों में से 1,131 (71%) पुरुष थे। 11-15 वर्ष और 41-45 वर्ष के आयु वर्ग के ग्रामीण पुरुष विशेष रूप से असुरक्षित थे।
- छह वर्ष की अध्ययन अवधि के दौरान बिहार में प्रत्येक वर्ष आकाशीय बिजली गिरने से औसतन 271 लोगों की मौत हुई और 57.2 लोग घायल हुए।
- राज्य की प्रति मिलियन वार्षिक दुर्घटना दर 2.65, राष्ट्रीय औसत 2.55 से अधिक थी।
- मई से सितंबर के बीच की अवधि आकाशीय बिजली गिरने के मामले में चरम पर थी और जून-जुलाई में आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली 58.8% मौतें हुईं।
- शोधकर्त्ताओं ने बताया कि जून और जुलाई में मानसूनी धारा शुरू होने के साथ ही आकाशीय बिज़ली गिरने की घटनाएँ रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच जाती हैं, जो मुख्य रूप से पूर्वी तथा पश्चिमी पवनों के संपर्क के कारण होती है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, बादल से ज़मीन पर आकाशीय बिजली गिरने से प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोगों की जान चली जाती है और आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों के मामले में बिहार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के साथ शीर्ष तीन सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक है।
- मैदानी क्षेत्र में तूफान और आकाशीय बिज़ली गिरने की संभावना रहती है क्योंकि उत्तर-पश्चिम भारत की गर्म, शुष्क पवन बंगाल की खाड़ी से निकलने वाली नम हवा के साथ मिलती है, जिससे गहरे संवहन बादलों के निर्माण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं।
- उत्तर पश्चिम बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ कम होती हैं लेकिन हताहतों की संख्या अधिक होती है। बिहार के ये हिस्से शहरीकृत नहीं हैं और कृषि क्षेत्रों के आस-पास आश्रय घनत्व कम हो सकता है। ऐसे प्राकृतिक खतरों के प्रभाव को कम करने में सामाजिक-आर्थिक कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आकाशीय बिजली गिरने की खतरे की संभावना एक समान नहीं है। स्थलाकृति, ऊँचाई और स्थानीय मौसम संबंधी कारक आकाशीय बिज़ली गिरने के स्थानिक वितरण को निर्धारित करते हैं।
- अधिक नमी के कारण पूर्वी क्षेत्र में आकाशीय बिज़ली की अधिक आवृत्ति देखी जाती है।
- नीति निर्माताओं के लिये भेद्यता और हॉटस्पॉट का आकलन करना व शमन उपायों को डिज़ाइन करना महत्त्वपूर्ण है।
पछुआ पवन
- वे उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब पेटी से उत्पन्न होती हैं तथा उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी की ओर बढ़ती हैं और 35° से 60° अक्षांशों के बीच प्रबल होती हैं।
- ये स्थायी होती हैं लेकिन सर्दियों के दौरान अधिक तीव्र होते हैं। ये गर्म और नम पवन को ध्रुव की ओर ले जाती हैं।
- पछुआ पवन उप ध्रुवीय निम्न दाब क्षेत्रों के साथ फ्रंट्स के निर्माण का कारण बनती है और चक्रवातों को पश्चिमी सीमा की ओर ले जाती है।