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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये कॉन्टिनजेंसीय प्लान (आकस्मिक योजना) की विफलता
चर्चा में क्यों?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2017 में मसौदा समिति द्वारा तैयार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम-1995 के तहत कॉन्टिनजेंसीय प्लान (आकस्मिक योजना) को लागू करने में राज्य सरकार की विफलता को गंभीरता से लिया है।
- बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा सहित 15 राज्यों ने व्यापक आकस्मिक योजनाएँ तैयार कर उन्हें लागू किया है।
मुख्य बिंदु:
- एक गैर-सरकारी संगठन दलित मानवाधिकार केंद्र समिति (DMKS) ने भी 2017 में जाति-आधारित हिंसा के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास, अतिरिक्त वित्तीय सहायता, गवाहों की सुरक्षा के प्रावधानों के साथ कॉन्टिनजेंसीय प्लान का एक ड्रॉफ्ट सौंपा था। वहीं पीड़ित की मदद के लिये निगरानी तंत्र विकसित करने की मांग की थी।
- DMKS द्वारा दायर एक जनहित रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए, उच्च न्यायालय ने पाया कि इन समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिये एक कॉन्टिनजेंसीय प्लान बनाने का उद्देश्य अंतिम रूप देने और कार्यान्वयन प्रक्रिया में देरी के कारण बाधित हो रहा है।
- वर्तमान में राज्य सरकार वर्ष 1995 के नियमों के नियम 12 (4) के तहत अत्याचार के पीड़ितों को राहत प्रदान करती है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों और आश्रितों को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज होने के सात दिनों के भीतर आर्थिक सहायता दी जाती है।
- वर्ष 1995 की नियमावली के नियम 15 के तहत लागू की जाने वाली आकस्मिक योजना में विभिन्न विभागों की भूमिका और जिम्मेदारी निर्दिष्ट होनी चाहिये।
- पैकेज में पीड़ितों को अनिवार्य रूप से मुआवजा, पुनर्वास, सरकारी रोज़गार और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को मज़बूत करना शामिल होना चाहिये।
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