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उत्तराखंड में सख्त भूमि कानून
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड सरकार द्वारा सख्त भूमि कानूनों को लागू करने की संभावना है, जिससे गैर-मूल निवासियों के लिये राज्य की पहाड़ियों के ग्रामीण इलाकों में जमीन खरीदना और अपना घर बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
मुख्य बिंदु :
- हिमाचल प्रदेश किरायेदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 से प्रभावित प्रस्तावित कानून का उद्देश्य ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण को सीमित करके राज्य के हितों की रक्षा करना है।
- वर्ष 2003 में, बाहरी लोगों को पहाड़ी इलाकों में 500 वर्गमीटर की सीमा के साथ ज़मीन खरीदने की अनुमति दी गई।
- बाद की सरकारों ने बड़े पैमाने पर भूमि लेनदेन को रोकने के लिये इस सीमा को घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया।
- वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने पर्वतीय क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिये इन प्रतिबंधों को हटा दिया था।
- विभिन्न ज़िलों में विरोध प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार ने वर्ष 2022 में पूर्व मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा प्रस्तुत मसौदा रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिये पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया।
- रिपोर्ट में राज्य के संसाधनों का दोहन करने वाले बाहरी निवेशकों की चिंताओं को संबोधित करते हुए शहरी क्षेत्रों में भूमि खरीद की सीमा तय करने की सिफारिश की गई है, जिससे पहाड़ियों में भूमि लेनदेन के लिये 12.5 एकड़ की सीमा को बहाल किया जा सकता है।
- हालाँकि, निवासी इसका समर्थन कर रहे हैं, जिसमें नगरपालिका क्षेत्रों की सीमा 250 वर्गमीटर तक करना और ग्रामीण भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना शामिल है।
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