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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 27 Oct 2022
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जमरानी बांध से पहले बनेंगे दो कॉफर बांध

चर्चा में क्यों?

24 अक्टूबर, 2022 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बहु-उद्देशीय जमरानी बांध के निर्माण से पहले दो कॉफर बाँध और दो टनल बनाई जाएंगी। 600 मीटर की दो टनलों के ज़रिये गौला नदी का पानी एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • जमरानी बांध के लिये वित्त मंत्रालय से स्वीकृति मिलने का इंतज़ार है। सिंचाई विभाग ने बांध के निर्माण के लिये एडवांस टेंडर आमंत्रित किये हैं। 1828 करोड़ रुपए की लागत से कॉफर बांध, टनल, एप्रोच रोड आदि कार्य किये जाएंगे।
  • विदित है कि उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में गोला नदी पर बहु-उद्देशीय जमरानी बांध परियोजना का निर्माण प्रस्तावित है। परियोजना के प्रथम चरण में गोला बैराज का निर्माण, 244 किमी. नहर का पुनर्निर्माण और दामुवा एवं अमृतपुरी कॉलोनी का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। दूसरे चरण में मुख्य बांध के निर्माण पर विचार किया जा रहा है।
  • जमरानी बांध क्षेत्र में 20 लाख घनमीटर के दायरे में कंक्रीटेशन का कार्य किया जाना है। इसके लिये दो डायवर्जन टनल और दो कॉफर डैम बनाए जाने हैं। 600 मीटर की दो टनलों के ज़रिये नदी का पानी एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाया जाएगा। सिंचाई विभाग ने इस पूरा खाका तैयार कर लिया है। पहाड़ी के बीच से होते हुए ये टनल गुज़रेगी।
  • गौरतलब है कि कॉफर बांध ऐसा स्थायी ढाँचा है, जिसे एक बड़े जलीय क्षेत्र को जलरहित करने के लिये बनाया जाता है, जिससे वहाँ निर्माण कार्य किया जा सके। इसके ज़रिये नदी के प्रवाह को सुरंग के माध्यम से वैकल्पिक मोड़ दिया जाता है। आमतौर पर दो कॉफर डैम बनाए जाते हैं- अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम कॉफर डैम। जब नदी तल में संरचना का निर्माण करना हो, तब ये बांध बनाए जाते हैं। बांध और संबंधित संरचनाओं का निर्माण पूरा होने पर डाउनस्ट्रीम कॉफर को हटा दिया जाता है और अपस्ट्रीम कॉफर बांध में पानी भर दिया जाता है।

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लैंसडौन का नाम बदलकर ‘कालौं का डांडा’ रखने का प्रस्ताव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले में स्थित 132 साल पुराने लैंसडौन छावनी ने लैंसडौन का नाम ‘कालौं का डांडा (काले बादलों से घिरा पहाड़)’ रखने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है।

प्रमुख बिंदु

  • रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिये प्रस्ताव मांगे हैं।
  • रक्षा मंत्रालय ने उनसे ब्रिटिशकाल के समय के नामों के स्थान पर क्या नाम रखे जा सकते हैं, इस बारे में भी सुझाव देने को कहा गया है। इसी के तहत लैंसडौन छावनी ने इसका नाम ‘कालौं का डांडा’ रखने का प्रस्ताव भेजा है। पहले इसे ‘कालौं का डांडा’ पुकारा जाता था। स्थानीय लोग इसका नाम यही रखने की मांग वर्षों से करते आए हैं। रक्षा मंत्रालय को भी इस बाबत कई पत्र भेजे जा चुके हैं।
  • गौरतलब है कि 1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई थी। 5 मई, 1887 को लेखकर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन 4 नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुँची थी। उस समय लैंसडौन को ‘कालौं का डांडा’कहते थे। 21 सितंबर, 1890 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडौन के नाम पर इसका नाम लैंसडौन रखा गया।

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