छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ गणतंत्र दिवस की झाँकी
चर्चा में क्यों?
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड से पहले 22 जनवरी को नई दिल्ली के नेशनल थिएटर में छत्तीसगढ़ की 'बस्तर की आदिम जन संसद: मुरिया दरबार' की झाँकी प्रदर्शित की गई।
मुख्य बिंदु:
- आदिम काल से आदिवासी समाज की लोकतांत्रिक चेतना को प्रदर्शित करने के लिये झाँकी की सराहना की गई।
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने झाँकी बनाने वाली टीम की सराहना करते हुए कहा कि यह विषय आदिवासी समाज के लिये महत्त्वपूर्ण है और यह विश्व को उनकी लोकतांत्रिक परंपराओं से परिचित कराएगा।
- 'बस्तर की आदिम जन संसद: मुरिया दरबार' की झाँकी जो नई दिल्ली के कर्त्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा होगी, उसमें मुरिया-दरबार और लिमाऊ-राजा शामिल हैं, जो जगदलपुर की बस्तर-दशहरा परंपरा का हिस्सा हैं।
- इसमें टेराकोटा शिल्प, लोगों की शक्ति का प्रतीक और बस्तर में सांस्कृतिक विकास को प्रदर्शित करता है।
- यह छत्तीसगढ़ के एक ज़िले बस्तर में सामुदायिक निर्णय लेने की 600 वर्ष पुरानी आदिवासी परंपरा को भी प्रदर्शित करता है।
- बस्तर में मुरिया दरबार की शुरुआत 8 मार्च 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जॉर्ज ने मांझी-चालकियों को संबोधित किया था।
- बाद में लोगों की सुविधा के अनुसार इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बना दिया गया, जो परंपरा के अनुसार 145 वर्षों तक जारी रहा।
लिमऊ राजा
- यह प्राकृतिक पत्थर का सिंहासन है जो बस्तर की लोकतांत्रिक जड़ों का प्रतीक है और बड़े डोंगर, गादीराव डोंगरी के भीतर स्थित है।
- प्राचीन समय में, जब इस क्षेत्र में शासक का अभाव था, तो समुदाय महत्त्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श करने के लिये इस पत्थर के "सिंहासन" के आसपास इकट्ठा होते थे।
- एक अनुष्ठान शुरू हुआ जहाँ प्रतीकात्मक सिंहासन के ऊपर रखा गया एक नींबू निर्णय लेने का केंद्र बिंदु बन गया।
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