उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम
चर्चा में क्यों?
24 जून, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में आपदाओं से बचाव के लिये उत्तराखंड मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम के नाम से इस पायलट प्रोजेक्ट के प्रथम चरण में 250 जगहों पर सायरन सिस्टम लगाया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- उत्तराखंड में स्थापित किये जाने वाले इस प्रोजेक्ट के लिये प्रथम चरण में 118 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिली है।
- विदित है कि बीते दिनों मुख्य सचिव एसएस संधु की अध्यक्षता में हुई उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक में प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की जा चुकी है।
- इस परियोजना को वर्ल्ड बैंक फंडिंग कर रहा है। अब इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किये जाएंगे।
- इस परियोजना के लागू होने के बाद उत्तराखंड, केरल के बाद दूसरा राज्य होगा, जो इस प्रणाली को अपनाने जा रहा है। केरल ने अपने यहाँ इस प्रोजेक्ट पर करीब 80 करोड़ रुपए खर्च किये हैं।
- अर्ली वार्निंग सायरन सिस्टम के तहत राज्य में संवेदनशील स्थानों पर स्थित मोबाइल टावरों पर यह सिस्टम लगाया जाएगा। जहां मोबाइल टावर नहीं होंगे, वहाँ नए टावर लगाए जाएंगे।
- इसके बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और सेंटर वाटर कमीशन जैसी संस्थाओं से प्राप्त होने वाले अलर्ट को सायरन के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया जाएगा। बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, अतिवृष्टि, हिमस्खलन जैसी आपदाओं में लोग वक्त रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुँचकर जान-माल की सुरक्षा कर सकेंगे।
- किसी भी आपदा की स्थिति में तीन स्तरों से सायरन सिस्टम को ऑपरेट किया जा सकेगा। पहला, जहाँ सायरन सिस्टम लगेगा, वहाँ एक मिनी कंट्रोल रूम भी होगा।
- दूसरा, ज़िला स्तर पर बने कंट्रोल रूम से भी इसे ट्रिगर (बटन दबाना) किया जा सकेगा और तीसरा, राज्य स्तर पर बने कंट्रोल रूम से भी सायरन सिस्टम को एक्टिवेट किया जा सकेगा।
- टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) की ओर से ऋषिकेश में गंगातटों पर सायरन सिस्टम लगाया गया है, लेकिन यह तभी काम करता है, जब बांध से पानी छोड़ा जाता है। मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम हर प्रकार की आपदा में चेतावनी सायरन जारी करेगा।
- उत्तराखंड मल्टी हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम की खास बात यह है कि यह अलग-अलग आपदाओं में अलग-अलग प्रकार की ध्वनियां प्रसारित करेगा। इसके लिये आमजन को पहले ही बता दिया जाएगा कि किस आपदा में सायरन कैसी ध्वनि प्रसारित करेगा। इससे लोगों को पता चल सकेगा कि वह किस तरह के खतरे में हैं।
- सायरन सिस्टम लगाने के लिये ज़िलों से मोबाइल टावरों की सूची मांगी गई है। प्रोजेक्ट को एचपीसी और वर्ल्ड बैंक पहले ही मंजूरी दे चुका है। पहले चरण में सायरन की संख्या 250 फिर अगले चरण में 1000 की जाएगी।
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में साल के बीज लाएंगे समृद्धि, वनोपज में जुड़ा नया अध्याय
चर्चा में क्यों?
25 जून, 2023 को उत्तराखंड वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन ने बताया कि प्रदेश में पहली बार पायलट प्रोजेक्ट के रूप में साल के बीजों को इकट्ठा कर बाज़ार में बेचने की योजना पर काम किया जा रहा है। इस तरह से वन बाहुल्य प्रदेश उत्तराखंड में वनोपज का नया अध्याय जुड़ गया है।
प्रमुख बिंदु
- प्रदेश में करीब पाँच हज़ार वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैले साल के जंगल ग्रामीणों और वन विभाग की आय का नया जरिया बनेंगे। प्रदेश में धामी सरकार का जोर वनों से आय बढ़ाने पर है।
- इसके लिये इको टूरिज़्म के अलावा वनों से मिलने वाली विभिन्न प्रकार की उपज से कैसे समृद्धि लाई जा सकती है, इस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से अधिकारियों को निर्देश दिये गए हैं। इसी कड़ी में वन विभाग ने साल के बीजों से आय जुटाने की इस योजना पर पहली बार काम शुरू किया है।
- एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड में करीब 45 लाख कुंतल साल के बीजों का उत्पादन होता है। हालांकि इस योजना में सभी बीजों को इकट्ठा नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके लिये फायर लाइन और सड़कों के किनारे गिरे बीजों को इकट्ठा किया जाएगा। इस हिसाब से लाखों कुंतल बीज इकट्ठा हो जाएंगे।
- आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में हजारों वर्षों से पित्त, ल्यूकोरिया, गोनोरिया, त्वचा रोग, पेट संबंधी विकार, अल्सर, घाव, दस्त और कमज़ोरी के इलाज में साल के बीज का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, चॉकलेट बनाने में भी साल के बीजों का प्रयोग किया जाता है।
- साल के बीजों से बहुमूल्य खाद्य तेल निकाला जाता है। बीज में 19.20 प्रतिशत तेल होता है। तेल का उपयोग मक्खन के विकल्प के रूप में और मिष्ठान्न तथा खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है। तेल निकालने के बाद बची खली में 10.12 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसका उपयोग मुर्गियों के चारे के रूप में किया जाता है।
- देश में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड ऐसे राज्य हैं, जहाँ बड़े पैमाने पर साल के बीजों को प्रमुख वनोपज के तौर पर लघु वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से इकट्ठा करवाया जाता है। इन राज्यों में साल के बीजों का हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी जारी किया जाता है।
Switch to English