मछली के मामले में आत्मनिर्भर हुआ बिहार | बिहार | 23 Nov 2023
चर्चा में क्यों?
22 नवंबर, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बिहार अब मछली के उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है। राज्य में प्रत्येक वर्ष 8.02 लाख मीट्रिक टन मछली की मांग के मुकाबले वर्तमान में 7.62 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो रहा है।
प्रमुख बिंदु
- राज्य में वर्तमान में प्रत्येक साल प्रति व्यक्ति 6.464 किलोग्राम मछली की खपत है। कतला मछली बिहारियों की पहली पसंद है। वहीं रोहू दूसरे स्थान पर तथा मृगल (नैनी) का तीसरा स्थान है।
- कतला मछली का बिहार में उत्पादन 164.189 हज़ार मीट्रिक टन है। रोहू का उत्पादन 154.794 हज़ार मीट्रिक टन तथा मृगल का उत्पादन 107.586 हज़ार मीट्रिक टन है।
- पंगेशियस, कॉमन, सिल्वर और ग्रास कार्प का भी उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। बिहार का प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 6.464 किलोग्राम मछली खा जाता है।
- राज्यभर से अभी 37.0545 हज़ार मीट्रिक टन मछलियाँ दूसरे राज्यों में भेजी जा रही हैं जबकि 38.462 हज़ार मीट्रिक टन दूसरे राज्यों से बिहार में मछलियाँ आ रही हैं।
- राज्य में सिल्वर कार्प का उत्पादन 80.4113 हज़ार मीट्रिक टन, ग्रास कार्प का 96.49262 हज़ार मीट्रिक टन, कॉमन कार्प का 92.66252 हज़ार मीट्रिक टन, कैट फीस का 45.8596 हज़ार मीट्रिक टन तथा पंगेशियस मछली का उत्पादन 52.8796 हजार मीट्रिक टन प्रतिवर्ष हो रहा है। साथ ही अन्य मछलियों का उत्पादन 48.5901 हज़ार टन प्रतिवर्ष हो रहा है।
- मछली उत्पादन में बिहार अब देश के शीर्ष 04 राज्यों में शामिल हो गया है। बिहार में मछली पालन में सबसे बड़ा योगदान शेखपुरा ज़िले का है। सरकार के आर्थिक सहयोग की वजह से शेखपुरा ज़िला जमुई, नालंदा, नवादा, लखीसराय, पटना, बेगूसराय आदि ज़िलों को ताजी मछली उपलब्ध करा रहा है।