बिहार के भूमि सर्वेक्षण पर मिलीजुली प्रतिक्रिया | बिहार | 25 Oct 2024
चर्चा में क्यों?
बिहार के सबसे हालिया भूमि सर्वेक्षण का उद्देश्य सदियों पुराने अभिलेखों को अद्यतन करना है, जो विशेष रूप से कमज़ोर समुदायों के बीच स्वामित्व के दावों को प्रभावित करता है।
प्रमुख बिंदु
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- बिहार का अंतिम व्यापक भूमि सर्वेक्षण ब्रिटिश काल में 1910-1911 में हुआ था, जबकि आंशिक प्रयास वर्ष 1967 और वर्ष 1980 में किये गये थे।
- वर्ष 2013 में शुरू किये गये वर्तमान सर्वेक्षण का लक्ष्य वर्ष 2025 तक सभी 45,000 राजस्व गाँवों को कवर करना है।
- दायरा और प्रक्रिया
- 150 मिलियन से अधिक भू-अभिलेखों को डिजिटल बनाने के लिये भूमि सर्वेक्षणकर्त्ताओं सहित 10,000 से अधिक कर्मियों को तैनात किया गया है ।
- इसमें वंशावली चार्ट की पुष्टि करना शामिल है, जो भूमि पर पारिवारिक दावों को साबित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक भूमि के लिये सीमा माप 2025 की शुरुआत में निर्धारित है।
- प्रमुख चुनौतियाँ
- स्वामित्व का सत्यापन: स्पष्ट विभाजन दस्तावेज़ों के अभाव के कारण विवाद उत्पन्न हो रहे हैं, तथा निवासियों को परिवार के स्वामित्व वाली भूमि की पुष्टि करने में कठिनाई हो रही है, क्योंकि अनौपचारिक, मौखिक समझौतों के माध्यम से प्रायः स्वामित्व निर्धारित होता है।
- दस्तावेज़ का अनुवाद : कैथी लिपि (Kaithi Script) में लिखे गए कई ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को अनुवाद और समझने की आवश्यकता होती है, जिससे देरी होती है। सरकार ने लिपि अनुवाद की सुविधा के लिये प्रशिक्षण शुरू किया है।
- प्रौद्योगिकी बाधाएँ : ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण रिकॉर्डों को वास्तविक समय पर अद्यतन करने और पुनः प्राप्त करने में बाधा आती है, जिससे अपलोड किये गए डेटा में विसंगतता उत्पन्न होती हैं।
- सामाजिक निहितार्थ
- लिंग आधारित विवाद : एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों का समावेश है, जिससे परिवारों के भीतर संघर्ष होता है। विवाहित महिलाओं को अपने दावों को त्यागने के लिये दबाव का सामना करना पड़ा है, जिससे पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती मिली है।
- सामुदायिक तनाव : भूमि संबंधी दावों के कारण कुछ मामलों में हिंसा हुई है, हाल ही में उच्च जाति समुदायों के साथ सीमा विवाद के कारण दलितों के घरों को आग लगा दी गई।