नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 24 Apr 2024
  • 0 min read
  • Switch Date:  
उत्तराखंड Switch to English

उत्तराखंड में वनाग्नि की घटना

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार वर्ष 2024 में अब तक राज्य में वनाग्नि की 477 घटनाएँ सामने आई हैं, जिसमें 379.4 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को नुकसान पहुँचा है।

मुख्य बिंदु:

  • क्षतिग्रस्त हुई 379.4 हेक्टेयर भूमि में से 136.4 हेक्टेयर गढ़वाल क्षेत्र में, 202.82 हेक्टेयर कुमाऊँ क्षेत्र में और 40.2 हेक्टेयर प्रशासनिक वन्यजीव क्षेत्रों में क्षतिग्रस्त हुई।
  • वन अधिकारियों के अनुसार वनाग्नि एक वार्षिक समस्या बन गई है और मौसम की स्थिति में बदलाव के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। उत्तराखंड में फरवरी के मध्य में वनाग्नि का अनुभव शुरू होता है जब पेड़ों के सूखे पत्ते गिर जाते हैं और तापमान में वृद्धि के कारण मृदा में नमी कम हो जाती है तथा यह जून के मध्य तक जारी रहता है।
  • वर्ष 2000 से, जब राज्य उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना, अब तक वनाग्नि से 54,800 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि क्षतिग्रस्त हो चुकी है।

वनाग्नि

  • इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर या वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- हवा तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
  • वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं गर्मी अथवा ताप का स्रोत।


 Switch to English
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow