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कालिंजर दुर्ग में मिली दसवीं शताब्दी की मूर्तियाँ
चर्चा में क्यों?
23 जनवरी, 2023 को उत्तर प्रदेश सामाजिक संस्था कालिंजर शोध संस्थान के निदेशक अरविंद छिरौलिया ने बताया कि राज्य के बांदा ज़िले में ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग के कोटि तीर्थ सरोवर की दीवार से शिवलिंग, गणेश, भगवान विष्णु, माँ लक्ष्मी समेत अनेक देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ मलबे से निकली हैं।
प्रमुख बिंदु
- अरविंद छिरौलिया ने बताया कि कालिंजर दुर्ग में कई छोटे-बड़े सरोवर और तालाब हैं। उन्हीं में से एक कोटि तीर्थ सरोवर है, जहाँ मूर्तियाँ व पत्थरों पर बनीं कलाकृतियाँ मिली हैं, जो नवीं और दसवीं शताब्दी की हैं।
- उन्होंने बताया कि कुछ पत्थरों पर देवी-देवताओं की नक्काशी है। इसमें भगवान विष्णु, गणेश, लक्ष्मी जी, पार्वती जी की प्रसन्न मुद्रा वाली भी मूर्तियाँ हैं। शिवलिंग को छोड़कर अधिकतर मूर्तियाँ खंडित हैं।
- कालिंजर दुर्ग के इतिहास के जानकार समाजसेवी विवेक शुक्ला ने बताया कि 1986 में दुर्ग तक जाने के लिये रोड बनाई जा रही थी। तब भी खोदाई के दौरान इसी तरह से मूर्तियाँ निकली थीं। उन्हें पुरातत्त्व विभाग ने संरक्षित कर राजा अमान सिंह महल में रखवा दिया था।
- दुर्ग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि तब 282 केएफ नंबर से 305 तक की मूर्तियाँ और तोप के गोले निकले थे। उनको पुरातत्त्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया था। इसके अलावा 1960 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने कालिंजर दुर्ग को अपने संरक्षण में लिया था।
- ज्ञातव्य है कि कालिंजर काफी प्राचीन दुर्ग है, जहाँ गुप्त काल से लेकर बुंदेलों तक का शासन रहा है। यहाँ पर पूर्व में भी निर्माण कार्य के दौरान इस तरह की मूर्तियाँ मिलती रही हैं।
- विदित है कि तीर्थ सरोवर कालिंजर दुर्ग का सबसे सुंदर और पौराणिक स्थल है। पूरा दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अधीन है। सरोवर की दीवार से मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ सहेजकर इसका निर्माण दोबारा कराया जा रहा है। सरोवर के चारों तरफ की प्राचीन दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ व कलाकृतियाँ हैं।
- कालिंजर इतिहास से जुड़े अरविंद छिरौलिहा ने बताया कि भारत पर राज करने वाला छठवाँ शासक औरंगजेब आलमगीर के नाम से जाना जाता था। 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य उसका शासन रहा, इसे मूर्ति भंजक कहा जाता था। वह हिन्दू धर्म की मूर्तियों को खंडित करवा देते थे।
- वर्ष 1812 से 1947 के बीच ब्रिटिश शासन के समय पर हिन्दू धर्म से जुड़ी स्मृतियों को भी नष्ट करने का काम किया जाता था। कोर्ट तीर्थ सरोवर काफी प्राचीन है, लेकिन इसके चारों तरफ की दीवारें अंग्रेजों द्वारा बनाई गईं थीं। तब दीवार के पीछे यह मूर्तियाँ भी दबा दी गईं थीं, जिससे कि सनातन धर्म और हिन्दू धर्म जागृत न हो सके।
- कालिंजर दुर्ग नीलकंठ मंदिर के राजपुरोहित पंडित शंकर प्रताप मिश्रा ने बताया कि कोटि तीर्थ सरोवर में सभी तीर्थों का जल मिला है। ऐसे में इस सरोवर के जल से यहीं पर विराजमान भगवान नीलकंठ का जलाभिषेक करने से एक हज़ार गायों के दान का पुण्य मिलता है। खास तौर से कार्तिक पूर्णिमा पर जलाभिषेक अधिक फलदायी माना जाता है।
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उत्तर प्रदेश के चार परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर अंडमान निकोबार के द्वीप
चर्चा में क्यों?
23 जनवरी, 2022 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती (पराक्रम दिवस) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में सबसे बड़े सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र के 21 विजेताओं के नाम पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 बड़े अज्ञात द्वीपों का नामकरण किया। इस सूची में उत्तर प्रदेश के चार परमवीम चक्र विजेता शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
- उत्तर प्रदेश के चार परमवीर चक्र विजेताओं में से तीन- कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार वीर अब्दुल हमीद, नायक जदुनाथ सिंह, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को मरणोपरांत और मानद कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को जीवित रहते ही परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है।
- उत्तर प्रदेश के गाजीपुर ज़िले के धरमपुर गाँव में जन्में वीर अब्दुल हमीद 27 दिसंबर, 1954 को 21 वर्ष की आयु में ग्रेनेडियर्स इंफैंट्री रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। पाकिस्तान के साथ लड़ाई में उन्होंने अपनी तोपयुक्त जीप से पाकिस्तान के तीन पैंटन टैंक ध्वस्त किये थे। प्रतिक्रियास्वरूप पाकिस्तानी सेना ने उन पर एक साथ हमला बोला था। इसी हमले में वह शहीद हो गए थे। भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनके असाधारण योगदान को देखते हुए उन्हें 10 सितंबर, 1965 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
- लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का जन्म सीतापुर ज़िले के रूधा गाँव में 25 जून, 1975 को हुआ था। वह एनडीए से भारतीय सेना में चुने गए। उन्हें 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट की पहली बटालियन में बतौर कमीशंड ऑफिसर शामिल किया गया था। 1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने दुश्मन के बंकरों को ध्वस्त किया था। इसी दौरान सिर में गोली लगने के कारण मात्र 24 वर्ष की आयु में वह शहीद हो गए थे। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान उनके साहस और नेतृत्व के लिये मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
- उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर ज़िले की कलान तहसील के गाँव खजुरी के निवासी जदुनाथ सिंह को 1941 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया था। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा में जापान के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया। भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में रहते हुए उन्होंने 1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। 6 फरवरी 1948 को जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में जदुनाथ सिंह ने अकेले ही कबाइली भेष में आए पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। इसी लड़ाई के बीच एक गोली उनके सिर में आकर लगी थी, जिससे वह वीरगति को प्राप्त हुए थे। नायक जदुनाथ सिंह को भी मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
- मानद कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई, 1980 को बुलंदशहर के औरंगाबाद गाँव में हुआ था। 1996 में 16 साल की आयु में वह 18 ग्रेनेडिएर्स में भर्ती हुए थे। 1999 में कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर कब्जा करने में उन्होंने अदम्य साहस और पराक्रम का प्रदर्शन किया था। कैप्टन योगेंद्र यादव ने कई गोलियाँ लगने के बावजूद घायल हालत में टाइगर हिल की तीन चौकियों पर कब्जा किया था और वहां तिरंगा लहराया था। इस संघर्षपूर्ण मिशन को पूरा करने वाले योगेंद्र यादव को मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र सम्मान दिया गया था।
- उल्लेखनीय है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ऐतिहासिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति को सम्मान प्रदान करने के लिये वर्ष 2018 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने रॉस द्वीप समूह का नाम बदलकर ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप’रख दिया था। नील द्वीप और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर ‘शहीद द्वीप’और ‘स्वराज द्वीप’कर दिया गया था।
- देश के वास्तविक जीवन के नायकों को उचित सम्मान देने के उद्देश्य से इस द्वीप समूह के 21 बड़े अज्ञात द्वीपों का नामकरण 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर करने का निर्णय लिया गया है।
- इन द्वीपों का नाम जिन 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा वे हैं - मेजर सोमनाथ शर्मा; सूबेदार और मानद कैप्टन (तत्कालीन लांस नायक) करम सिंह, एम.एम; सेकेंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे; नायक जदुनाथ सिंह; कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह; कैप्टन जीएस सलारिया; लेफ्टिनेंट कर्नल (तत्कालीन मेजर) धन सिंह थापा; सूबेदार जोगिंदर सिंह; मेजर शैतान सिंह; सीक्यूएमएच अब्दुल हमीद; लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर; लांस नायक अल्बर्ट एक्का; मेजर होशियार सिंह; सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल; फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों; मेजर रामास्वामी परमेश्वरन; नायब सूबेदार बाना सिंह; कैप्टन विक्रम बत्रा; लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे; सूबेदार मेजर (तत्कालीन राइफलमैन) संजय कुमार; और सूबेदार मेजर सेवानिवृत्त (मानद कैप्टन) ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव।
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