बिहार को 'विशेष राज्य' का दर्जा देने से इनकार | बिहार | 23 Jul 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र ने सर्वदलीय बैठक के दौरान बिहार के लिये ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा देने के अनुरोध को खारिज कर दिया।
प्रमुख बिंदु:
- वर्तमान में किसी भी नए राज्य को ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि भारतीय संविधान में इस तरह के वर्गीकरण की व्यवस्था नहीं है।
- बिहार विशेष राज्य का दर्जा और अलग वित्तीय पैकेज दोनों की मांग कर रहा है। बिहार के लिये विशेष दर्जे की मांग तब से जारी है जब राज्य का विभाजन बिहार तथा झारखंड में हुआ था।
- गाडगिल फार्मूला:
- विशेष श्रेणी के दर्जे के मुद्दे पर पहली बार वर्ष 1969 में राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council- NDC) की बैठक में चर्चा की गई थी। इस सत्र के दौरान, D.R. गाडगिल समिति ने भारत में राज्य योजनाओं के लिये केंद्रीय सहायता वितरित करने का एक सूत्र प्रस्तावित किया था
- इससे पहले, निधि आवंटन के लिये कोई विशिष्ट फार्मूला नहीं था और अनुदान व्यक्तिगत योजनाओं के आधार पर आवंटित किया जाता था।
- गाडगिल फार्मूले, जिसे NDC की मंज़ूरी मिली थी, ने केंद्रीय सहायता के आवंटन में असम, जम्मू-कश्मीर और नगालैंड जैसे विशेष श्रेणी के राज्यों की ज़रूरतों को प्राथमिकता दी।
- वर्ष 1969 में पाँचवें वित्त आयोग ने कुछ क्षेत्रों के समक्ष मौजूद ऐतिहासिक चुनौतियों को स्वीकार किया और विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान किया
- इस सुझाव से विशिष्ट वंचित राज्यों को केंद्रीय सहायता और कर राहत सहित विशेष लाभ प्राप्त हुए
- इसके बाद राष्ट्रीय विकास परिषद ने इस स्थिति के आधार पर इन राज्यों को केंद्रीय योजना सहायता आवंटित की।
- वित्तीय वर्ष 2014-2015 तक विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त 11 राज्यों को विभिन्न लाभ और प्रोत्साहन प्राप्त थे।
- हालाँकि वर्ष 2015 में योजना आयोग के विघटन और नीति आयोग की स्थापना के साथ 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप गाडगिल फार्मूले पर आधारित अनुदान बंद हो गए।
- परिणामस्वरूप, सभी राज्यों को आवंटित विभाज्य पूल का हिस्सा 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया गया।