मध्य प्रदेश Switch to English
ASI ने अवशेष खोजने के लिये मध्य प्रदेश में गुप्तकालीन स्थल की खुदाई की
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक के अवशेष खोजने और प्राचीन मंदिरों की स्थिति का अध्ययन करने हेतु मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले के नाचना गाँव में साइट की खुदाई कर रहा है।
मुख्य बिंदु:
- यह स्थल दो प्राचीन मंदिरों- गुप्तकालीन पार्वती मंदिर और कलचुरी राजवंश द्वारा निर्मित चौमुखी मंदिर के करीब है।
- चौमुख नाथ मंदिर परिसर में खुदाई का कार्य चल रहा है, जिसमें 8वीं सदी का चतुर्मुखी शिव लिंग है।
- ASI के अनुसार, शिव लिंग को उल्लेखनीय उत्पादक शक्ति के साथ उकेरा गया है, विशेष रूप से इसके दक्षिण की ओर भगवान का भयंकर खुले मुख वाला चेहरा।
- अब तक, ASI ने दो टीलों की खुदाई की है और सदियों की मिट्टी को साफ़ करने के बाद, ईंटों की परतों को अनदेखा कर दिया गया है।
- नाचना में उत्खनन का उद्देश्य यह देखना है कि भारत में प्राचीन मंदिरों की स्थिति क्या थी और मंदिरों का विकास कैसे हुआ।
- इस स्थल पर आठ पुरातात्त्विक टीले हैं और उत्खनन दल को दो टीले खोदने की अनुमति मिल गई है।
चौमुखी मंदिर
- यह मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले में स्थित है।
- यह 9वीं शताब्दी के कलचुरी राजवंश काल का है।
- ये मंदिर हिंदू मंदिर वास्तुकला की उत्तर भारतीय शैली का चित्रण करते हैं।
पार्वती मंदिर
- नाचना का पार्वती मंदिर गुप्त काल का है। इसका निर्माण 5वीं शताब्दी में हुआ था।
- यह मंदिर 35 फीट चौड़े छत पर बना है, यह मंदिर 15 फीट की तरफ एक छोटे वर्गाकार गर्भगृह से बना है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय के तहत देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसके कार्यों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज एवं उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रखरखाव करना आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को "भारतीय पुरातत्त्व के जनक" के रूप में भी जाना जाता है।
- यह वर्ष 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल तथा अवशेष अधिनियम द्वारा देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देखरेख करता है।
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क्षिप्रा में बढ़ते प्रदूषण पर CAG की रिपोर्ट में चिंता जताई गई
चर्चा में क्यों?
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्य सरकारी एजेंसियों के हस्तक्षेप के बावजूद, क्षिप्रा नदी प्रदूषित बनी हुई है।
मुख्य बिंदु:
- इसमें बताया गया है कि क्षिप्रा उप-बेसिन के कुप्रबंधन और भूजल के दोहन के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह कम हो गया है।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय शहरी निकायों का अपशिष्ट नदी में प्रवाहित हो रहा है।
- औद्योगिक अपशिष्ट के अपर्याप्त उपचार, नदी तल पर प्रदूषण के कारण क्षिप्रा जल और उसकी सहायक नदियों की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
- CAG ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उद्योगों पर उचित और पर्याप्त निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिये।
- लोक निर्माण विभाग की रिपोर्ट में राज्य में निर्माणाधीन पुलों के पूरा होने में देरी का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि अक्तूबर 2020 तथा सितंबर 2021 के बीच पाँच डिवीज़नों में जिन 72 नमूना पुलों की जाँच की गई, उनमें से केवल नौ समय पर पूरे हुए थे।
क्षिप्रा नदी
- यह मध्य प्रदेश राज्य की एक बारहमासी नदी है
- इसका उद्गम विंध्य पर्वतमाला में काकरी-टेकड़ी नामक पहाड़ी से होता है, जो धार के उत्तर में है और उज्जैन से 11 किमी. की दूरी पर स्थित है।
- यह नदी 195 किमी. लंबी है, जिसमें से 93 किमी. उज्जैन से होकर बहती है।
- यह मालवा पठार से होकर बहती हुई चम्बल नदी में मिल जाती है
- धार्मिक महत्त्व:
- पुराणों या प्राचीन हिंदू ग्रंथों में कहा गया है कि क्षिप्रा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के वराह अवतार के हृदय से हुई है।
- इसके अलावा क्षिप्रा के तट पर ऋषि संदीपनि का आश्रम है, जहाँ भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण ने अध्ययन किया था।
- इसका उल्लेख न केवल प्राचीन हिंदू ग्रंथों में बल्कि बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी मिलता है।
- पवित्र शहर उज्जैन क्षिप्रा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। प्रसिद्ध कुंभ मेला इस शहर के घाट पर प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार लगता है, जो देवी क्षिप्रा नदी का वार्षिक उत्सव है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ खान और गंभीर हैं।
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