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उत्तराखंड में पाँच साल में आठ लाख से अधिक लोग हुए गरीबी रेखा से बाहर
चर्चा में क्यों?
17 जुलाई, 2023 को नई दिल्ली में जारी नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि वर्ष 2015-16 और 2019-21 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के पाँच साल के दौरान उत्तराखंड की बहुआयामी गरीबी में आठ फीसदी कमी आई है।
प्रमुख बिंदु
- इस तरह 2011 की जनगणना की आबादी के हिसाब से उत्तराखंड में 815,247 लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं।
- विदित है कि नीति आयोग ने दो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के तुलनात्मक विश्लेषण के जरिये ये रिपोर्ट तैयार की है।
- रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 और 2019-21 के बीच उत्तराखंड में बहुआयामी गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 17.67 प्रतिशत से गिरकर 9.67 प्रतिशत हो गई है। इस तरह कुल आठ प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की बहुआयामी गरीबी में 11.03 प्रतिशत की कमी आई। 2015-16 में 21.87 प्रतिशत गरीब थे, जो घटकर 2019-21 में 10.84 रह गए।
- गांवों की तुलना में राज्य के शहरी क्षेत्रों में कम गरीबी है। 2015-16 और 2019 के बीच शहरों में बहुआयामी गरीबी में 9.89 प्रतिशत गिरकर सात फीसदी रह गई।
- गरीबी को कम करने में पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता, खान पकाने के ईंधन की सुलभता, बिजली, आवास, परिसंपत्ति, बैंक खाते, बाल एवं मातृ मृत्यु दर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- अल्मोड़ा ज़िले में सबसे अधिक 16.18 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से बाहर हुए। दूसरे स्थान पर उत्तरकाशी में 14.74 प्रतिशत लोग गरीबी से उबरे। तीसरे स्थान पर 12.82 प्रतिशत की गिरावट के साथ चंपावत, 12.49 गिरावट के साथ चौथे पर बागेश्वर ज़िला रहा।
- इनके अलावा ऊधमसिंह नगर ज़िले में 11.72 प्रतिशत, टिहरी गढ़वाल में 11.60 प्रतिशत, चमोली में 9.96 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 8.77 प्रतिशत, हरिद्वार में 8.41 प्रतिशत, पिथौरागढ़ में 7.48 प्रतिशत, देहरादून में 3.86 प्रतिशत, नैनीताल में 3.31 प्रतिशत और पौड़ी गढ़वाल ज़िले में 3.01 प्रतिशत गरीब कम हुए।
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