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मध्य प्रदेश सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन सशक्तीकरण मंत्री ने वितरित किये महर्षि दधीचि पुरस्कार
चर्चा में क्यों?
18 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन सशक्तीकरण मंत्री प्रेमसिंह पटेल ने दिव्यांगजन के उत्थान और उन्नति के लिये उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को दधीचि पुरस्कार से सम्मानित किया।
प्रमुख बिंदु
- इस अवसर पर मंत्री ने सामाजिक न्याय विभाग में 16 नव-नियुक्त सहायक संचालक को नियुक्ति-पत्र भी प्रदान किये।
- मंत्री प्रेमसिंह पटेल ने श्रवण-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2012-13 का प्रथम पुरस्कार पीथमपुर ज़िला धार के मनोज द्विवेदी को दिया। फ्लेक्सीटफ इंटरनेशनल नामक अपनी संस्था में मनोज द्विवेदी ने 150 से अधिक दिव्यांगजनों को रोज़गार देकर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा है।
- श्रवण-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2013-14 का पुरस्कार जबलपुर की डॉ. शिरीष जामदार को दिया गया। वे पिछले 20 साल से दिव्यांगजनों के व्यवसायिक पुनर्वास और समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम नि:स्वार्थ भाव से कर रही हैं। जामदार हॉस्पिटल में दिव्यांगजनों को नि:शुल्क सर्जरी और उपचार की सुविधा भी दे रही हैं। वे शिविरों के माध्यम से दिव्यांगजनों को सहायक कृत्रिम अंग और उपकरण भी वितरित करवाने में योगदान देती हैं।
- सांकेतिक भाषा में राष्ट्रगान की रचना करने वाले इंदौर के ज्ञानेंद्र पुरोहित को श्रवण-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2014-15 का प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया। इनके सांकेतिक राष्ट्रगान को राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है। ज्ञानेंद्र पुरोहित ने विशेष रूप से जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्र में श्रवण-बाधित बच्चों को सामान्य विद्यालयों में प्रवेश दिलाने और विभिन्न शासकीय सेवा में रोज़गार दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- श्रवण-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2015-16 का दधीचि पुरस्कार जबलपुर के विवेक चतुर्वेदी को दिया गया। विवेक चतुर्वेदी ने श्रवण-बाधित युवाओं को डेस्कटॉप पब्लिशिंग का प्रशिक्षण, रोज़गार एवं आजीविका की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये केंद्र शासन के कार्यक्रम में रोज़गारोन्मुखी कौशल प्रशिक्षण भी दिलाया। उन्होंने श्रवण-बाधितों द्वारा संचालित ‘डेफग्राफिक्स’की स्थापना और व्यवसाय के लिये भी भरपूर सहायता की।
- विश्व का 5वाँ और भारत का पहला ब्रेल स्क्रिप्ट अरबी केंद्र स्थापित करने वाली इंदौर की कु. राबिया खान को दृष्टि-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2015-16 का द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्होंने वर्ष 2011 में इंदौर में अरबी केंद्र स्थापित किया था। दृष्टिहीनों के लिये मदरसा नूर रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना करने वाली कु. राबिया खान दृष्टिहीन छात्र-छात्राओं को शैक्षणिक और व्यावसायिक मुख्य धारा में लाने के लिये लगातार प्रयासरत हैं।
- मानसिक मंदता दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2015-16 का द्वितीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले उज्जैन के जगदीश प्रसाद शर्मा ने 25 हज़ार से अधिक मानसिक अविकसित दिव्यांगों को बौद्धिक परीक्षण के बाद प्रमाण-पत्र दिलवाया। मानसिक रूप से अविकसित 3572 छात्र को विद्यालय में प्रवेश, छात्रवृत्ति और स्पेशल एजुकेशन सुविधा दिलवाई। उन्होंने 495 दिव्यांग को व्यवसाय से जोड़कर आत्म-निर्भर बनाया और 2875 लोगों को दिव्यांगों के लीगल गार्जियनशिप दिलाई।
- स्वयं दिव्यांग होने के बावजूद दिव्यांगजनों के लिये उद्दीप सोशल वेलफेयर सोसायटी की स्थापना करने वाली पूनम श्रोती को अस्थि-बाधित दिव्यांगता श्रेणी वर्ष 2019-20 का प्रथम पुरस्कार दिया गया। वह दिव्यांगजनों की शिक्षा, कौशल विकास और रोज़गार के लिये कार्य कर रही हैं।
- स्वयं नेत्रहीन होने के बावजूद दिव्यांगजनों के लिये रोज़गार प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने वाले भोपाल के उदय हतवलने को दृष्टि-बाधित दिव्यांगता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2019-20 प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया। उदय हतवलने, दृष्टि-बाधितों की शिक्षा एवं सामाजिक समायोजन के लिये विशेष रूप से प्रयासरत हैं।
- नर्मदापुरम की आरती दत्ता को मानसिक मंदता व्यक्तिगत श्रेणी वर्ष 2019-20 के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आरती दत्ता ऑटिज्म, सेरेबल पॉल्सी, मानसिक मंदता का गहन अध्ययन कर इससे ग्रसित दिव्यांगजनों को आत्म-निर्भर बनाते हुए उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और पुनर्वास का महत्त्वपूर्ण काम कर रही हैं।
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छिंदवाड़ा का गोदड़देव मंदिर राज्य संरक्षित स्मारक घोषित
चर्चा में क्यों?
18 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा छिंदवाड़ा के गोदड़देव मंदिर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- गोदड़देव मंदिर छिंदवाड़ा ज़िले की तहसील चांद के नीलकंठी कला क्षेत्र में स्थित है।
- संस्कृति विभाग द्वारा मध्य प्रदेश प्राचीन स्मारक पुरातत्त्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम-1964 के तहत इसे राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
- गौरतलब है कि कलचुरियों के समकालीन एवं राज्य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्तुशिल्प लगभग कलचुरि स्थापत्य से मिलता है। इसका निर्माण लगभग 13वीं सदी में हुआ।
- भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भूमित्र शैली का है। भूविन्यास में गर्भ गृह, अंतराल एवं मंडप हैं। मंदिर का जंघा तक का पृष्ठ भाग अपने मूल स्वरूप में है। गर्भ गृह भूतलीय है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। वहाँ तक जाने के लिये सोपान है। अंतराल की रथिकाओं में गौरी व भैरव की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। द्वार शाखा में सप्त मात्राएँ उत्कीर्ण हैं।
- गर्भ गृह एवं मंडप के ध्वस्त होने पर स्थानीय लोगों के द्वारा जीर्णोदार कराया गया है। मंदिर परिसर में मंडप के स्तंभ दृष्टव्य है। एक स्तंभ पर देवनागरी में संस्कृत भाषा के अस्पष्ट लेख हैं। इस मंदिर से कुछ दूरी पर दो और मंदिरों के भग्नावशेष हैं।
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