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छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 19 Jan 2023
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कस्टम मिलिंग चावल उपार्जन में मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर ज़िला प्रदेश में अव्वल

चर्चा में क्यों?

18 जनवरी, 2023 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर ज़िला कस्टम मिलिंग के चावल उपार्जन के मामले में प्रदेश में प्रथम स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु 

  • ज़िले में इस साल 4,60,300 क्विंटल चावल उपार्जन के लक्ष्य के विरूद्ध अब तक 2,96,870 क्विंटल चावल का उपार्जन किया जा चुका है, जो कि कुल लक्ष्य का 49 प्रतिशत है।
  • ज़िले में धान खरीदी के साथ-साथ उपार्जित धान के उठाव एवं कस्टम मिलिंग का कार्य तेजी से कराया जा रहा है। सीमावर्ती ज़िला होने की वजह से सभी चेक पोस्ट पर मालवाहकों की सघन जाँच अनवरत रूप से जारी है।
  • गौरतलब है कि मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर ज़िले में 23 उपार्जन केंद्रो में कुल पंजीकृत 16,022 किसानों में से 18 जनवरी तक 13,066 किसानों से 6,56,681 क्विंटल धान की खरीदी की जा चुकी है।
  • उपार्जित धान में से 5,27,263 क्विंटल धान का परिवहन राईस मिलरों के द्वारा किया जा चुका है, जो कि कुल खरीदी का 80 प्रतिशत है। ज़िले में धान खरीदी का कुल अनुमान 7,95,200 क्विंटल है।

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गौठानों के प्रबंधन चुस्त-दुरूस्त बनाने के लिये एक फरवरी से पशुपालन विभाग चलाएगा विशेष अभियान

चर्चा में क्यों?

18 जनवरी, 2023 को छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने मंत्रालय महानदी भवन में आयोजित पशुपालन विभाग की समीक्षा बैठक में विभागीय अधिकारियों को गाँवों में बनाए गए गौठानों से गौ-मूत्र की खरीदी और मल्टीयुटीलिटी सेंटर सहित अन्य सुविधाओं को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से एक फरवरी से विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिये।

प्रमुख बिंदु 

  • कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने कहा कि सभी गाँवों में पशुपालन विभाग के अधिकारी भ्रमण कर गौठानों में पशुओं के लिये डे-केयर की व्यवस्था, पशुओं के लिये चारे का प्रबंध सहित गौठानों के संचालन व्यवस्था का अवलोकन करेंगे।
  • उन्होंने कहा कि मैदानी अमले द्वारा यह देखा जाए कि गौठानों में आने वाले पशुओं के लिये चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो। वे किसानों को पैरादान करने के लिये प्रेरित करें साथ ही दान किये गए पैरा को गौठान प्रबंधन समिति के माध्यम से गौंठानों तक पहुँचाना सुनिश्चित करें।
  • डॉ. कमलप्रीत ने अधिकारियों से कहा कि देशी गायों के नस्ल सुधार से ही पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि संभव हैं, अत: पशु नस्ल सुधार कार्य में आशातीत प्रगति लाई जाए। उन्होंने कहा कि राज्य डेयरी उद्यमिता विकास योजना अंतर्गत कलस्टर में मिल्क रूट पर डेयरी इकाईयाँ स्वीकृत करें।
  • डॉ. सिंह ने पशु चिकित्सक विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे विभाग के अंतर्गत योजनाओं के भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्य फरवरी तक पूर्ण करें। योजनाओं का क्रियान्यवयन कलस्टर बनाकर करें एवं भविष्य में तिमाही लक्ष्य तय कर पूर्ण उपलब्धि सुनिश्चित की जाए।
  • बैठक में पशुओं में लंपी डिसीज के संक्रमण की रोकथाम के लिये विभागीय अमले के कार्यों और गलघोटू, एकटंगिया, खुरा पका की रोकथाम हेतु संपादित टीकाकरण कार्य की भी सराहना की गई।

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200 फुट की ऊँचाई पर धरमजयगढ़ क्षेत्र की पहाड़ी में मिला शैलचित्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ में गुफा अन्वेषण और शैलचित्र खोज के लिये विख्यात प्रो. डी.एस.मालिया को रायगढ़ ज़िले के धरमजयगढ़ में 200 फुट की ऊँचाई पर स्थित शैलाश्रय में प्रागैतिहासिककालीन शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • प्रो. डी.एस.मालिया के द्वारा जारी सघन गुफा खोज अभियान में ये शैलचित्र प्राप्त हुए। प्रो. मालिया ने कहा कि गुफा अन्वेषण अभियान अभी जारी है, अभियान पूर्ण होने पर विस्तृत जानकारी साझा किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि रायगढ़ ज़िले में अभी तक कबरा पहाड़, सिंघनपुर, ओंगना व उषाकोठी, बाँसाझार, बोतल्दा सहित कुछ अन्य स्थानों से शैलचित्र प्राप्त हुए हैं जो राज्य संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग द्वारा चिन्हांकित हैं।
  • प्रो. डी.एस. मालिया द्वारा 1994 से गुफा अन्वेषण अभियान चलाया जा रहा है और 16 अन्य स्थलो पर प्रागैतिहासिककालीन शैलचित्र की खोज की गई है जिसमें 2003 में शोखामुड़ा की पंचभया पहाड़ी श्रृंखला से प्राप्त वंदनखोह गुफा के शैलचित्र सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसे राज्य संस्कृति विभाग के तत्त्कालीन उप संचालक डॉ. जी एल बादाम ने नवीन खोज करार दिया था।
  • राज्य सरकार के पुरातत्त्व संचालनालय के अधिकारियों के अनुसार राज्य में मध्याश्मीय काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के शैलाश्रय मौजूद हैं, जो इतिहास और पुरातत्त्व के मानचित्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुके हैं।
  • राज्य में सर्वप्रथम चित्रित शैलाश्रयों की खोज सन् 1910 में अंग्रेज अनुसंधानकर्त्ता एंडरसन के द्वारा की गई थी। इसके बाद वर्ष 1918 में इंडिया पेंटिंग्स में और इनसाईक्लोपीड़िया ब्रिटेनिका के तेरहवें अंक में रायगढ़ ज़िले के सिंघनपुर की पहाड़ियों के शैल चित्रों का प्रकाशन हुआ।
  • भारतीय इतिहासकार अमरनाथ दत्त ने सन् 1923 से 1927 के बीच रायगढ़ ज़िले में व्यापक सर्वेक्षण कर और भी अनेक शैल चित्रों का पता लगाया। उनके बाद डॉ. एन. घोष, डी.एच. गार्डन और पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने भी इस दिशा में अध्ययन और अनुसंधान के महत्त्वपूर्ण कार्य किये।
  • रायगढ़ ज़िले में सिंघनपुर के शैल चित्र ज़िला मुख्यालय रायगढ़ से पश्चिम दिशा में लगभग 20 किमी. ऊँची पहाड़ी पर निर्मित हैं। इनकी गिनती दुनिया के सर्वाधिक पुराने शैल चित्रों में होती है। ये शैल चित्र अब लगभग धुंधले हो चले हैं। इनमें सीढ़ीनुमा पुरूषाकृति, मत्स्य-कन्या और पशु आकृतियों सहित शिकार के दृश्य भी अंकित हैं।
  • सिंघनपुर के अलावा ज़िला मुख्यालय रायगढ़ से केवल आठ किमी. पूर्व में स्थित कबरा पहाड़ पर निर्मित चित्र गैरिक रंग के हैं। इनमें जंगली भैंसा, कछुआ और पुरूष आकृतियों के साथ ज्यामितिक अलंकरण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
  • आदि मानवों के शैल चित्रों की दृष्टि से रायगढ़ ज़िला काफी समृद्ध है। सिंघनपुर के शैलाश्रयों से दक्षिण पश्चिम में लगभग 17 किमी. की दूरी पर ग्राम बसनाझर (तहसील खरसिया) की पहाड़ियों में तो आदि मानवों द्वारा तीन सौ से अधिक चित्र अंकित किये गए हैं। जिनमें हाथी, गेंडा, जंगली भैंसा, सामूहिक नृत्य और शिकार आदि के दृश्य अंकित हैं।
  • तहसील मुख्यालय खरसिया से केवल आठ किमी. ग्राम बोतल्दा के नज़दीक स्थित पहाड़ियों में करीब दो हज़ार फीट की ऊँचाई पर सिंह गुफा स्थित है, जिसकी दीवारों पर पशुओं के शिकार दृश्य और ज्यामितीय अलंकरण हज़ारों वर्ष पहले के मानव जीवन की हलचल का संकेत देते हैं।
  • तहसील मुख्यालय खरसिया से बारह किमी. पर सूती घाट के नज़दीक ग्राम पतरापाली के पास की पहाड़ियों में भंवरखोल नामक प्रसिद्ध शैलाश्रय है, जिसकी दीवारों पर मत्स्य-कन्या, जंगली भैंसा, भालू, मानव हथेली और भारतीय संस्कृति के शुभंकर ‘स्वास्तिक’ चिन्ह भी अंकित हैं। ज़िला मुख्यालय से लगभग 72 किमी. पर उत्तर दिशा में धरमजयगढ़ के नजदीक ओंगना पहाड़ पर इस प्रकार के एक सौ से अधिक शैलचित्र देखे जा सकते हैं। इसमें बैलों के समूह और यहाँ तक कि दस सिरों वाली मानव आकृति भी शामिल हैं।
  • इतना ही नहीं बल्कि ज़िला मुख्यालय से ही तीस किमी. पर कर्मागढ़ की पहाड़ियों में तो सवा तीन सौ से भी ज्यादा चित्रांकन हज़ारों वर्ष पहले किये गए हैं। इनमें ज्यामिती आकृति सहित अन्य कई आकार प्रकार के चित्र उल्लेखनीय हैं।
  • रायगढ़ से ही बारह किमी. पर टीपा खोल जलाशय के नजदीक खैरपुर की पहाड़ी में पशु-पक्षियों की आकृति वाले शैल चित्र भी दर्शकों के लिये कौतुहल का केंद्र हैं। खरसिया से दो किमी. पर ग्राम सोनबरसा की पहाड़ी में अमर गुफा, ज़िला मुख्यालय रायगढ़ से 32 किमी. पर ग्राम भैंसगढ़ी, बिलासपुर-रायगढ़ मार्ग पर सूती घाट तथा ज़िले के ही तहसील मुख्यालय सारंगढ़ के नज़दीक ग्राम गाताडीह और सिरौली डांगरी की पहाड़ियों में बने शैलाश्रय और शैल चित्र भी पुरातत्त्वविदों के लिये अनुसंधान का विषय बने हुए हैं। 

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