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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 18 Jul 2023
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हरेला पर्व-2023

चर्चा में क्यों?

17 जुलाई, 2023 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन विभाग की ओर से देहरादून के रायपुर में स्थित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में आयोजित हरेला पर्व का शुभारंभ किया। 

प्रमुख बिंदु  

  • इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सराहनीय प्रयास करने वाले स्कूलों और वनपंचायतों को सम्मानित भी किया।  
  • वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि हरेला पर्व के उपलक्ष्य में इस वर्ष प्रदेश में आठ लाख पौधे रोपने का लक्ष्य रखा गया है। यह अभियान 15 अगस्त तक चलेगा।  
  • उन्होंने पौध रोपण के साथ ही उनके संरक्षण की दिशा में भी विशेष ध्यान दिये जाने की बात कही। जिस सेक्टर में वृक्षों का सक्सेस रेट सबसे अधिक होगा, उस सेक्टर के वन दरोगा को सम्मानित किया जाएगा। 
  • प्रमुख वन संरक्षक अनूप मलिक ने कहा कि 15 अगस्त को 1750 गाँवों में 75-75 पौधे लगाए जाएंगे। उन्होंने सभी प्रदेशवासियों से अपील की कि पर्यावरण के संरक्षण में सभी एकजुट होकर कार्य करें और पौधे लगाकर सेल्फी विद प्लांट पोस्ट करें, जिससे हम अपनी भावी पीढ़ी को बता सकें कि हमने पर्यावरण संरक्षण के लिये क्या योगदान दिया।
  • कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। यहाँ का हरेला पर्व सुख, समृद्धि, शांति, पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है। यह पर्व सामाजिक सद्भाव का पर्व और ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है। हरेला एक ऐसा ही पर्व है, जो हमारी प्रकृति से निकटता को और अधिक प्रगाढ़ बनाता है। 
  • मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने सर्कुलर इकोनॉमी पर काफी जोर दिया है क्योंकि जल संरक्षण के क्षेत्र में भी सर्कुलर इकोनॉमी की बड़ी भूमिका है। जब ट्रीटेड जल को फिर से उपयोग किया जाता है, ताजा जल को संरक्षित किया जाता है तो उससे पूरे ईको सिस्टम को बहुत लाभ होता है।

 


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उत्तराखंड में हिमालय की गर्मी से बनेगी बिजली

चर्चा में क्यों?

17 जुलाई, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में हिमालय की गर्मी से जल्द ही बिजली उत्पादन होगा। इसके लिये पहली बार भू-तापीय ऊर्जा (जियोथर्मल एनर्जी) से बिजली उत्पादन पर काम शुरू किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु  

  • हिमालय की गर्मी से बिजली बनाने के लिये राज्य सरकार व ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) जल्द ही एमओयू साइन करेंगे। जल्द ही ओएनजीसी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और आइसलैंड जियो सर्वे के विशेषज्ञों की टीम प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर जियोथर्मल एनर्जी की संभावनाएँ तलाश करने आएगी। 
  • ज्ञातव्य है कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भू-तापीय ऊर्जा होने की संभावना है। पूर्व के अध्ययनों में भी ये बात सामने आ चुकी है।  
  • गौरतलब है कि पिछले महीने ओएनजीसी ने लद्दाख में भू-तापीय ऊर्जा प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिये आइसलैंड जियो सर्वे नामक वैज्ञानिक व शोध संस्था के साथ एमओयू साइन किया है।  
  • इस दौरान ओएनजीसी की निदेशक (विस्तार) सुषमा रावत ने इसे ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने का एक अच्छा उपाय मानते हुए कहा कि हेतु देश के अन्य राज्यों में इसकी संभावनाएँ देखी जाएंगी। इसी क्रम में, उत्तराखंड सरकार अब ओएनजीसी के साथ मिलकर राज्य में जियो थर्मल एनर्जी पर काम शुरू करने जा रही है। 
  • विदित है कि वर्ष 2008 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रो. कैलाश भारद्वाज और प्रो. एससी तिवारी का एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था। इसमें उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जियो थर्मल ऊर्जा की अपार संभावनाएँ जताई गईं थीं।  
  • उन्होंने अपने शोध में बताया था कि हिमालय के गर्भ में 121 से 371 डिग्री सेल्सियस तक ऊर्जा छुपी हुई है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन में किया जा सकता है।  
  • उन्होंने शोध में तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग के निकट धौलीगंगा के तीन किलोमीटर अपस्ट्रीम एरिया तीन ड्रिल का जिक्र किया है, जहाँ से 65-90 डिग्री सेल्सियस तापमान के गर्म पानी के चश्मे निकल रहे थे। यमुनोत्री के निकट भी एक जियोथर्मल स्प्रिंग से 88-90 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी निकलता पाया गया था।  
  • वैज्ञानिकों का कहना था कि बदरीनाथ, गौरीकुंड और तपोवन के जियोथर्मल क्षेत्रों को विकसित किया जा सकता है। 
  • वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने वर्ष 2020 में हिमाचल और उत्तराखंड में जियोथर्मल स्प्रिंग पर बड़ा अध्ययन किया था वाडिया के निदेशक कालाचंद साईं ने बताया था कि किस तरह से उत्तराखंड में 40 और हिमाचल प्रदेश में 35 गर्म पानी के चश्मे चिह्नित किये गए हैं, जो कि भविष्य में ऊर्जा उत्पादन की दृष्टि से काफी कारगर साबित हो सकते हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाएँ लंबे समय से लटकी हैं। अब राज्य सरकार इसके विकल्पों पर काम कर रही है ताकि भविष्य में राज्य में बिजली ज़रूरतों के हिसाब से उत्पादन किया जा सके।  
  • राज्य सरकार ओडिशा में कोयले से बिजली उत्पादन करेगी। इसके लिये यूजेवीएनएल-टीएचडीसी का संयुक्त उपक्रम बनाया जा रहा है। दूसरी ओर, बारिश के पानी से बिजली के लिये राज्य में पंप स्टोरेज पॉलिसी बनाई जा रही है। जिंदल समूह ने प्रदेश में चार ज़िलों देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा और चंपावत में इसके लिये सर्वेक्षण पूरा कर लिया है। 
  • भू-तापीय ऊर्जा से देश में 10,600 मेगावाट बिजली उत्पादन की संभावनाएँ 15 साल पहले आँकी गई थीं। केन्या में 129 मेगावाट, इथोपिया में सात मेगावाट, पापुआ न्यू गिनी में 56 मेगावाट के प्रोजेक्ट को इसके उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। अमेरिका (3676 मेगावाट) सहित दुनिया के 20 देश आज जियोथर्मल एनर्जी से बिजली उत्पादन कर रहे हैं। 
  • ऐसे बनती है भू-तापीय ऊर्जा से बिजली: जियोथर्मल एरिया में ड्रिल किया जाता है। यहाँ गर्म पानी के चश्मे की भाप से टरबाइन चलाकर बिजली उत्पादन होता है। इस भाप से बनने वाला पानी दोबारा ज़मीन के भीतर ही ड्रिल करके भेज दिया जाता है। 
  • वर्तमान में उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएन) के तहत 1396.1 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाएँ चल रही हैं। 440.5 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्माण कार्य चल रहा है। इसके अलावा, सौर ऊर्जा के करीब 60 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इसके सापेक्ष बिजली की मांग कई गुना अधिक है।


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