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नज़ूल भूमि
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के हलद्वानी शहर में कथित तौर पर नज़ूल भूमि पर एक मस्जिद और मदरसे की जगह पर अतिक्रमण हटाने के लिये शहर प्रशासन द्वारा चलाए गए विध्वंस अभियान के कारण हिंसा भड़क उठी।
- प्रशासन के अनुसार, जिस संपत्ति पर दोनों संरचनाएँ स्थित हैं, वह नगर परिषद की नज़ूल भूमि के रूप में पंजीकृत है।
मुख्य बिंदु:
- नज़ूल भूमि का स्वामित्व सरकार के पास है लेकिन अक्सर इसे सीधे राज्य संपत्ति के रूप में प्रशासित नहीं किया जाता है।
- राज्य आम तौर पर ऐसी भूमि को किसी भी इकाई को एक निश्चित अवधि के लिये पट्टे पर आवंटित करता है, आमतौर पर 15 से 99 वर्ष के बीच।
- यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो रही है, तो कोई व्यक्ति स्थानीय विकास प्राधिकरण के राजस्व विभाग को एक लिखित आवेदन जमा करके पट्टे को नवीनीकृत करने हेतु प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है।
- सरकार नज़ूल भूमि को वापस लेने या पट्टे को नवीनीकृत करने या इसे रद्द करने के लिये स्वतंत्र है।
- सरकार आम तौर पर नज़ूल भूमि का उपयोग सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत भवन आदि के निर्माण के लिये करती है।
अतिक्रमण
- यह किसी और की संपत्ति का अनधिकृत उपयोग या कब्ज़ा है।
- यह परित्यक्त या अप्रयुक्त स्थानों पर हो सकता है यदि कानूनी मालिक इसके रखरखाव में सक्रिय रूप से शामिल नहीं है।
- संपत्ति मालिकों के लिये ऐसे मामलों में उठाए जाने वाले कानूनी कदमों और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना महत्त्वपूर्ण है।
- इसमें उचित अनुमति या कानूनी अधिकारों के बिना अवैध निर्माण, कब्ज़ा या किसी अन्य प्रकार का कब्ज़ा शामिल हो सकता है।
- भूमि अतिक्रमण, जैसा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की धारा 441 द्वारा परिभाषित किया गया है, किसी अपराध को करने, संपत्ति पर कब्ज़ा करने की धमकी देने या बिन बुलाए भूमि पर रहने की अनुमति के बिना किसी और की संपत्ति में अवैध रूप से प्रवेश करने का कार्य है।
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