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विधानमंडल में पेश CAG रिपोर्ट : अर्थव्यवस्था को उबारने में बिहार शीर्ष 3 में
चर्चा में क्यों?
13 जुलाई, 2023 को बिहार विधानमंडल में वित्त मंत्री विजय चौधरी ने सीएजी की रिपोर्ट पेश की, जिसमें कोविड महामारी के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने वाले देश के 10 शीर्ष राज्यों में बिहार तीसरे पायदान पर रहा।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार, बिहार ने पाँच वर्षों के दौरान उच्च स्तर पर जीएसडीपी दर्ज की है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान केंद्रीय करों के हिस्से और स्वकर राजस्व में वृद्धि के कारण राजस्व प्राप्ति में 30630 करोड़ रुपए यानी 23.90 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। सामाजिक सेवाओं में वृद्धि के कारण राजस्व व्यय में 19727 करोड़ की वृद्धि हुई।
- राज्य सरकार ने 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के दौरान कुल बजट प्रावधान 265396.87 करोड़ रुपए के विरुद्ध 194202.20 करोड़ रुपए यानी 73.17 फीसदी ही खर्च किया।
- अनुपूरक प्रावधान 47094.17 करोड़ रुपए पूरी तरह से बेकार हो गया, क्योंकि वह मूल प्रावधान के स्तर तक भी नहीं था।
- सदन में वित्तीय वर्ष 31 मार्च, 2021 की स्थानीय निकायों और 31 मार्च, 2022 तक वित्तीय प्रबंधन की रिपोर्ट पेश की गई। इसमें पंचायती राज संस्थान और नगर निकायों की कार्यप्रणाली और राज्य की वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठाया गया है।
- सीएजी रिपोर्ट के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं ने करीब 25 हज़ार करोड़ रुपए का उपयोगिता प्रमाण-पत्र नहीं दिये हैं। साथ ही, बजट आकार में लगातार हो रही बढ़ोतरी और उस अनुपात में राशि खर्च नहीं होने पर भी सवाल उठाया गया है।
- सीएजी रिपोर्ट के अनुसार 25551 करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा दर्ज किया गया है, हालाँकि यह घाटा विगत वर्ष की तुलना में 4276 करोड़ रुपए कम है। वर्ष 2021-22 के दौरान राज्य को 2004-05 के बाद तीसरी बार राजस्व घाटे का सामना करना पड़ा, जो 422 करोड़ था।
- सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, नगर विकास एवं आवास विभाग ने वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच मिली 10952 करोड़ रुपए के अनुदान की स्वीकृति दी थी, लेकिन मार्च 2022 तक के लिये समायोजन 4984 करोड़ रुपए यानी 46% तक उपयोगिता प्रमाण-पत्र लंबित थे।
- पटना नगर निगम द्वारा घर-घर कचरा संग्रहण सेवाएँ प्रदान करने के एवज में वसूले जाने वाले उपभोक्ता शुल्क वसूली में विफल होने के कारण निगम को लगभग नौ करोड़ रुपए की हानि हुई है।
- ऑडिट में यह पाया गया कि पंचायती राज विभाग ने वर्ष 2007-08 से 2020-21 के बीच पंचायती राज संस्थाओं को 42940 करोड़ रुपए का अनुदान जारी किया था, लेकिन संस्थाओं ने 17917 करोड़ रुपए का ही उपयोगिता प्रमाण-पत्र दिये। यह कुल राशि का 42% ही था, जबकि करीब 25000 करोड़ रुपए का उपयोगिता प्रमाण-पत्र लंबित है।
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