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राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 15 May 2024
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नए शैक्षणिक सत्र में गरीब बच्चों के प्रवेश को प्राथमिकता

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार ने अगले शैक्षणिक सत्र के लिये  शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 के तहत निजी स्कूलों में वंचित वर्ग के बच्चों के प्रवेश को प्राथमिकता पर लिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सूत्रों के अनुसार, राज्य के 31,857 निजी स्कूलों में प्रवेश के लिये 3.08 लाख से अधिक बच्चों ने आवेदन किया था।
    • निजी स्कूलों में 25% सीटें समाज के कमज़ोर वर्ग के छात्रों से भरी जाएंगी।
  • प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय ने स्कूलों में प्री-प्राइमरी कक्षाओं और कक्षा 1 में RTE प्रवेश हेतु दो श्रेणियों के लिये आयु सीमा तय करते हुए एक प्रावधान किया है।
    • तीन से चार वर्ष की आयु के बच्चों को प्री-प्राइमरी कक्षाओं में प्रवेश दिया जाता है और छह से सात वर्ष के बीच के बच्चे कक्षा 1 में प्रवेश पाने के पात्र होते हैं।
  • राज्य में बड़ी संख्या में निजी स्कूलों ने प्री-प्राइमरी कक्षाओं में छात्रों के प्रवेश को लेकर चिंता व्यक्त की है क्योंकि इस श्रेणी को वर्ष 2023-24 में सरकार द्वारा किसी छात्र को कक्षा 1 में पदोन्नत होने तक तीन वर्ष की फीस के भुगतान के लिये किसी स्पष्ट दिशा-निर्देश के बिना जोड़ा गया था।

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 के तहत वर्ष 2009 में बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया तथा इसे अनुच्छेद 21-A के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया गया।
  • RTE अधिनियम का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है।
  • धारा 12 (1) (C) में कहा गया है कि गैर-अल्पसंख्यक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल आर्थिक रूप से कमज़ोर और वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये प्रवेश स्तर ग्रेड में कम- से-कम 25% सीटें आरक्षित करें।
  • यह गैर-प्रवेशित बच्चे को आयु के अनुरूप कक्षा में प्रवेश देने का भी प्रावधान करता है।
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय एवं अन्य ज़िम्मेदारियों को साझा करने के बारे में भी जानकारी देता है।
    • भारतीय संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है और केंद्र व राज्य दोनों इस विषय पर कानून बना सकते हैं।
  • यह छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR), भवन और बुनियादी ढाँचा, स्कूल-कार्य दिवस, शिक्षकों के लिये कार्यावधि से संबंधित मानदंडों तथा मानकों का प्रावधान करता है।
  • इस अधिनियम में गैर-शैक्षणिक कार्यों जैसे- स्थानीय जनगणना, स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनावों तथा आपदा राहत के अलावा अन्य कार्यों में शिक्षकों की तैनाती का प्रावधान करता है।
  • यह अपेक्षित प्रविष्टि और शैक्षणिक योग्यता के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • यह निम्नलिखित का निषेध करता है:
    • शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न।
    • बच्चों के प्रवेश के लिये स्क्रीनिंग प्रक्रिया।
    • प्रति व्यक्ति शुल्क।
    • शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन।
    • बिना मान्यता प्राप्त विद्यालय।
  • यह बच्चे को उसके अनुकूल और बाल केंद्रित शिक्षा अधिगम के माध्यम से भय, आघात एवं दुश्चिंता से मुक्त बनाने पर केंद्रित है।

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सेमल वृक्ष

चर्चा में क्यों?

दक्षिण राजस्थान में सेमल वृक्षों की संख्या में कमी आ रही है जिससे क्षेत्र के वनों और लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • दक्षिणी राजस्थान में भील और गरासिया आदि स्थानों पर सेमल बड़ी मात्रा में काटा जाता है तथा उदयपुर में बेचा जाता है।
  • यह कटाई राजस्थान वन अधिनियम, 1953 से लेकर वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 तक कई कानूनों का उल्लंघन करती है।
  • सेमल एक अभिन्न प्रजाति है जो वन पारिस्थितिकी तंत्र को एक साथ रखती है। शैल-मधुमक्खियाँ इसकी शाखाओं पर घोंसला बनाती हैं क्योंकि वृक्ष के प्ररोह में उगे नोंक (Spike) इसके शिकारी स्लॉथ बियर से बचाव करती हैं।
  • जनजातीय समुदायों के सदस्य मानसून के दौरान भोजन के लिये वृक्ष की लाल जड़ का सेवन करते हैं। बुक्कुलैट्रिक्स क्रेटरेक्मा (Bucculatrix crateracma) कीट के लार्वा इसकी पत्तियों को खाते हैं।
  • गोल्डन-क्राउन्ड गौरैया अपने घोंसलों की परत इनके बीजों की सफेद रुई से बुनती है।
  • डिस्डेर्कस बग, इंडियन क्रेस्टेड साही, हनुमान लंगूर और कुछ अन्य प्रजातियाँ इसके फूलों के रस का आनंद लेती हैं।
  • क्षेत्र की गरासिया जनजाति भी मानती है कि वे सेमल वृक्ष के वंशज हैं। कथोडी जनजाति इसकी लकड़ी का उपयोग संगीत वाद्ययंत्र बनाने के लिये करती है जबकि भील इसका उपयोग बर्तन बनाने के लिये करते हैं।

सेमल वृक्ष (Semal Tree)

  • रेशम कपास के वृक्ष और बॉम्बेक्स सेइबा के नाम से भी जाना जाने वाला सेमल वृक्ष भारत का स्थानीय तथा तेज़ी से बढ़ने वाला वृक्ष है।
  • यह अपने विशिष्ट, नुकीले लाल फूलों और इसके रोयेंदार बीज की फली के लिये जाना जाता है जिसमें कपास जैसा पदार्थ होता है जिसका उपयोग कभी तकिये तथा गद्दे भरने के लिये किया जाता था।
  • यह वृक्ष अपने सजावटी मूल्य के लिये बहुमूल्य है और प्रायः उद्यान एवं बगीचों में उगाया जाता है।

इंडियन क्रेस्टेड साही (Indian Crested Porcupine)

  • वैज्ञानिक नाम: हिस्ट्रिक्स इंडिका (Hystrix indica)
  • भौगोलिक सीमा: यह पूरे दक्षिण-पूर्व और मध्य एशिया एवं मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, जिसमें भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, इज़रायल, ईरान तथा सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं।
  • व्यवहार:
    • रात्रिचर जीव जो प्रत्येक रात लगभग 7 घंटे भोजन की तलाश में बिताते हैं।
    • प्राकृतिक गुफाओं या खोदे गए बिलों में रहते हैं।
    • शिकारियों में बड़ी बिल्लियाँ, भेड़िये, लकड़बग्घा और मनुष्य शामिल हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • IUCN स्थिति: कम चिंतनीय (LC)
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची IV

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