झारखंड Switch to English
झारखंड में मंडा महोत्सव
चर्चा में क्यों?
झारखंड में सप्ताह भर चलने वाले 'मंडा' महोत्सव के आखिरी दिन, बड़ी संख्या में भक्त उत्सव में भाग लेने के लिये सड़कों पर एकत्र हुए।
- 'भोक्ता' के नाम से जाना जाने वाला एक विशेष व्यक्ति 25 फीट की ऊँचाई पर खड़ा हुआ और नीचे भीड़ पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा की।
मुख्य बिंदु:
- आदिवासियों ने अच्छी बारिश और भरपूर फसल के लिये देवताओं को प्रसन्न करने के लिये एक सदियों पुराना वार्षिक अनुष्ठान मंडा पूजा मनाया।
- यह सामान्यतः वसंत ऋतु के दौरान होता है और कृषि चक्र की समाप्ति का प्रतीक है।
- राँची के चुटिया क्षेत्र में, मंडा पूजा समिति ने शिव मंदिर में महोत्सव आयोजित किया, जिसमें राँची नगर निगम के डिप्टी मेयर ने भाग लिया।
- उत्सव के दौरान, अनुयायी सात से नौ दिनों तक उपवास रखने के बाद आग पर चलने और अपनी पीठ से जुड़े बाँस के ढाँचे से स्वयं को उल्टा लटकाने में भाग लेते हैं।
- मंडा महोत्सव का एक विशिष्ट पहलू 'भोक्ता' की भूमिका है, सामान्यतः पुरुष भक्त जो पूरे महोत्सव में सख्त उपवास रखते हैं।
- ये भोक्ता समुदाय के भीतर एक सम्मानित स्थान रखते हैं और त्योहार के समारोहों में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
- चुटिया के बाद, यह त्योहार राज्य भर में 500 स्थानों पर मनाया जाता है, जिसमें राजाउलातु, सिड्रोल, तेतरी और हुंडरू बस्ती शामिल हैं।
झारखंड की जनजातियाँ
- वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की अनुसूचित जनजाति (ST) जनसंख्या 7,087,068 है जो राज्य की कुल जनसंख्या (26,945,829) का 26.3% है।
- अनुसूचित जनजातियाँ मुख्य रूप से ग्रामीण हैं क्योंकि उनमें से 91.7% गाँवों में रहते हैं।
- ST जनसंख्या के ज़िलेवार वितरण से पता चलता है कि गुमला ज़िले में ST का अनुपात सबसे अधिक (68.4%) है।
- लोहरदगा और पश्चिमी सिंहभूम ज़िलों में कुल जनसंख्या का आधे से ज़्यादा हिस्सा ST का है, जबकि रांची तथा पकौर ज़िलों में 41.8-44.6% आदिवासी जनसंख्या है।
- चतरा (3.8%) से पहले कोडरमा ज़िले (0.8%) में ST जनसंख्या का अनुपात सबसे कम है।
- झारखंड में 32 आदिवासी समूह हैं:
- मुंडा
- संथाल
- ओरांव
- खारिया
- गोंड
- कोल
- कांवर
- सावर
- असुर
- बैगा
- बंजारा
- बथुडी
- बेदिया
- बिंझिया
- बिरहोर
- बिरजियाली
- चेरो
- चिक-बराइक
- गोराईट
- हो
- करमाली
- खरवार
- खोंड
- किसान
- कोरा
- कोरवा
- लोहरा
- महली
- माल-पहाड़िया
- परहैया
- सौरिया-पहड़िया
- भूमिज
उत्तर प्रदेश Switch to English
अग्नि सुरक्षा पर जागरूकता अभियान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 14 अप्रैल, 2024 को 'राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिये अग्नि सुरक्षा सुनिश्चित करें' विषय के तहत राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा दिवस मनाया गया।
मुख्य बिंदु:
- यह दिन उन सभी साहसी अग्निशामकों के भी सम्मान में मनाया जाता है जिन्होंने वर्ष 1944 में मुंबई डॉकयार्ड में एक जहाज़ विस्फोट के दौरान अपने जीवन का बलिदान दिया था।
- अग्निशमन विभाग ने शॉर्ट सर्किट, गैस रिसाव या आगजनी को रोकने की दिशा में निवारक उपायों के बारे में दुकान मालिकों और निवासियों को शिक्षित करने के लिये आवासीय क्षेत्रों, अपार्टमेंट, औद्योगिक इकाइयों, बाज़ारों, मॉल तथा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में व्यापक जागरूकता अभियान चलाया है।
भारत में अग्नि सुरक्षा के संबंध में वर्तमान प्रावधान
- अग्निशमन सेवा देश की सबसे महत्त्वपूर्ण आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं में से एक है, जो नगरपालिका कार्यों से संबंधित भारतीय संविधान की 12वीं अनुसूची के अंतर्गत आती है।
- वर्तमान में, आग की रोकथाम और अग्निशमन सेवाएँ संबंधित राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों (UT) तथा शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा आयोजित की जाती हैं।
- भारत का राष्ट्रीय भवन कोड (NBC), 2016: भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रकाशित, NBC एक "अनुशंसित दस्तावेज़" है और राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे कानूनों द्वारा इसे अपने स्थानीय भवन में शामिल करें, जिससे सिफारिशें एक अनिवार्य आवश्यकता बन जाएंगी।
- इसमें मुख्य रूप से प्रशासनिक नियम, सामान्य भवन आवश्यकताएँ जैसे अग्नि सुरक्षा आवश्यकताएँ, संरचनात्मक डिज़ाइन और निर्माण (सुरक्षा सहित) प्रावधान शामिल हैं।
- मॉडल बिल्डिंग उपनियम, 2003: इसके तहत प्रत्येक बिंदु पर अग्नि निकासी मुख्य अग्निशमन अधिकारी की ज़िम्मेदारी है। संबंधित विकास प्राधिकरण को मंज़ूरी उद्देश्यों के लिये मुख्य अग्निशमन अधिकारी को भवन योजना प्रदान करनी होगी।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देश अस्पतालों सहित सार्वजनिक भवनों के लिये अग्नि सुरक्षा आवश्यकताओं के साथ-साथ खुली जगह, निकास तंत्र, सीढ़ियों और निकासी ड्रिल के न्यूनतम स्तर को बनाए रखने से संबंधित डिज़ाइन दिशा-निर्देशों को निर्धारित करते हैं।
राजस्थान Switch to English
DRDO ने हथियार प्रणाली का परीक्षण किया
चर्चा में क्यों?
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (MPATGM) हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण करके एक महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर पर पहुँच गया है।
- MPATGM जिसकी मारक क्षमता 2.5 किलोमीटर है, जिसमें पैदल सेना के उपयोग के लिये फायर-एंड-फॉरगेट और शीर्ष हमले की क्षमताएँ हैं।
मुख्य बिंदु:
- राजस्थान में पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज (PFFR) में किये गए परीक्षणों ने उपयोगकर्त्ता टीम के सामने MPATGM के प्रभावशाली प्रदर्शन को प्रदर्शित किया।
- DRDO द्वारा भारत में निर्मित, MPATGM हथियार प्रणाली में MPATGM, मैन पोर्टेबल लॉन्चर, लक्ष्य अधिग्रहण प्रणाली (TAS) और फायर कंट्रोल यूनिट (FCU) शामिल हैं।
- परीक्षण से साबित हुआ है कि सिस्टम भारतीय सेना के जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स (GSQR) द्वारा उल्लिखित पूर्ण परिचालन विशिष्टताओं के भीतर कार्य कर सकता है।
- MPATGM के टेंडेम वारहेड सिस्टम के लिये प्रवेश परीक्षणों का पूरा होना आधुनिक कवच-संरक्षित मुख्य युद्धक टैंकों को हराने की इसकी क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- दिन/रात और शीर्ष हमले की क्षमताओं के साथ, यह एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल सिस्टम टैंक युद्ध स्थितियों में बढ़ी हुई प्रभावशीलता के लिये ड्यूल मोड/दोहरे मोड साधक की सुविधा प्रदान करता है।
- सफल परीक्षण 'आत्मनिर्भर भारत' के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
- DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
- DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
राजस्थान Switch to English
अनुच्छेद 371
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत की एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष ने राजस्थान की एक सार्वजनिक रैली में अनुच्छेद 371 का ज़िक्र किया जिससे विवाद उत्पन्न हो गया।
मुख्य बिंदु:
- भारतीय संविधान के भाग XXI के तहत अनुच्छेद 371, कुछ राज्यों को कुछ अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है।
- यह 26 जनवरी, 1950 से संविधान का हिस्सा रहा है।
- हालाँकि, अनुच्छेद 371 (A-J) को अनुच्छेद 368 के माध्यम से संशोधन के माध्यम से लाया गया था।
- 12 अन्य राज्य हैं जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। इनमें महाराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा और कर्नाटक शामिल हैं।
- केंद्र ने यह भी सुझाव दिया है कि वह अनुच्छेद 371 जैसी सुरक्षा को लद्दाख तक बढ़ाने पर विचार कर रहा है।
- इस अनुच्छेद के तहत विशेष प्रावधानों में भूमि के स्वामित्व की सुरक्षा से लेकर विकास बोर्डों की स्थापना तक शामिल हैं।
- अनुच्छेद 371 विदर्भ, मराठवाड़ा, सौराष्ट्र और कच्छ के लिये पृथक विकास बोर्डों की स्थापना तथा इन क्षेत्रों के लिये धन एवं अवसरों का समान आवंटन सुनिश्चित करने हेतु महाराष्ट्र व गुजरात के राज्यपाल को विशेष ज़िम्मेदारी देता है।
- अनुच्छेद 371A नगालैंड को विशेष दर्जा देता है और प्रावधान करता है कि संसद राज्य विधानसभा की सहमति के बिना नागा धर्म, सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून, भूमि अधिकार तथा नागरिक एवं आपराधिक न्याय से संबंधित मामलों पर कानून नहीं बना सकती है।
- अनुच्छेद 371B असम से संबंधित है और इसे वर्ष 1969 में लाया गया था। यह राष्ट्रपति को आदिवासी से चुने गए सदस्यों वाली विधान सभा की एक समिति के गठन और कामकाज से निपटने की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 371C मणिपुर पर लागू होता है और इसे वर्ष 1972 में संविधान में शामिल किया गया था। यह मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों के विधायकों की एक समिति के गठन का प्रावधान करता है।
- यह राज्यपाल को पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन पर राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट देने की विशेष ज़िम्मेदारी देता है।
- अनुच्छेद 371 D और E में आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के लिये विशेष प्रावधान शामिल हैं।
- राष्ट्रपति आंध्र प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के लोगों को सार्वजनिक रोज़गार और शिक्षा में समान अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान करने के लिये आदेश पारित कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 371F सिक्किम को विशेष दर्जा देता है और प्रावधान करता है कि सिक्किम के लोगों के मौजूदा कानूनों, रीति-रिवाज़ों तथा अधिकारों का संसद द्वारा सम्मान एवं संरक्षण किया जाएगा।
- अनुच्छेद 371G मिज़ोरम पर लागू होता है। इसमें मिज़ोरम में मिज़ोस की धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून और प्रक्रिया को संरक्षित करने के साथ-साथ भूमि के स्वामित्व तथा हस्तांतरण के अलावा आपराधिक व नागरिक न्याय प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान शामिल हैं।
- अनुच्छेद 371H कानून और व्यवस्था के संबंध में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को विशेष ज़िम्मेदारी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 371I गोवा से संबंधित है। इसके लिये आवश्यक है कि गोवा की विधान सभा में कम-से-कम 30 सदस्य हों।
- अनुच्छेद 371J हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र (कल्याण कर्नाटक) को विशेष दर्जा देता है और क्षेत्र के लिये एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना का प्रावधान करता है।
झारखंड Switch to English
राष्ट्रीय वर्ड पावर चैम्पियनशिप
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल वर्ड पावर चैम्पियनशिप का आयोजन मुंबई में किया गया। इस राष्ट्रव्यापी प्रतियोगिता में आठ राज्यों के प्रतिभागियों ने असाधारण कौशल का प्रदर्शन किया। उनमें से, झारखंड के चार छात्रों ने श्रेणी 2, 3, 4 और 5 में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया तथा समग्र चैंपियन का प्रतिष्ठित खिताब अर्जित किया।
मुख्य बिंदु:
- प्रतियोगिता में भाग लेने वाले आठ राज्य थे- झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश।
- झारखंड ने श्रेणी 2 में शीर्ष स्थान हासिल किया, श्रेणी 3 में पाँचवाँ स्थान हासिल किया, श्रेणी 4 में चौथा स्थान हासिल किया और श्रेणी 5 में दूसरा स्थान हासिल किया।
- राज्य ने तमिलनाडु और महाराष्ट्र के खिलाफ 0.23% के अंतर से प्रतियोगिता जीती, जिन्होंने क्रमशः दूसरा तथा तीसरा स्थान हासिल किया।
- वर्ड पावर चैम्पियनशिप प्रतियोगिता अमेरिका की लोकप्रिय 'स्पेलिंग बी कॉम्पिटिशन' की तर्ज पर आयोजित की जाती है।
- यह भारत की एकमात्र अंग्रेज़ी प्रतियोगिता है जो विशेष रूप से क्षेत्रीय भाषाई स्कूलों के छात्रों के लिये आयोजित की जाती है।
- जिसका उद्देश्य अत्यधिक कठोर 'अंग्रेज़ी साक्षरता कार्यक्रम' में भाग लेने के बाद क्षेत्रीय भाषा स्कूल के छात्रों को अपनी नई अर्जित अंग्रेज़ी प्रतिभा को प्रदर्शित करने हेतु एक विशेष मंच प्रदान करना है।
- इससे शिक्षकों और छात्रों में समान रूप से अंग्रेज़ी भाषा के प्रति उत्साह एवं उद्देश्य की भावना विकसित होती है।
- यह प्रतियोगिता प्रत्येक वर्ष लीप फॉर वर्ड और मैरिको नामक संस्था द्वारा आयोजित की जाती है।
छत्तीसगढ़ Switch to English
मुरिया जनजाति
चर्चा में क्यों?
रिपोर्टों के अनुसार, वामपंथी चरमपंथियों और राज्य प्रायोजित सलवा जुडूम के बीच संघर्ष के दौरान मुरिया जनजातियाँ छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र से पलायन कर गईं तथा आंध्र प्रदेश के आरक्षित वन्य क्षेत्रों में बस गईं।
- हालाँकि, प्राथमिक शिक्षा, सुरक्षित पेयजल और सामाजिक कल्याण लाभों तक उनकी पहुँच एक सपना बनी हुई है तथा अब उन पर विस्थापन का भी खतरा मंडरा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- यह बस्ती नक्सलवाद से प्रभावित आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा पर 'भारत के लाल गलियारे (Red Corridor)' के भीतर स्थित है जो एक आरक्षित वन के भीतर एक निर्जन स्थान (Oasis) के रूप में बसी है, जो बस्ती और निर्वनीकरण पर प्रतिबंध लगाने वाले सख्त कानूनों द्वारा संरक्षित है।
- वे छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर ज़िलों से पलायन कर तत्कालीन पूर्वी एवं पश्चिमी गोदावरी ज़िलों में बस गए
- मुरिया बस्तियों को आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDP) की बस्तियों के रूप में जाना जाता है, जिनकी आबादी आंध्र प्रदेश में लगभग 6,600 है और यहाँ के मुरियाओं को मूल जनजातियों द्वारा 'गुट्टी कोया' कहा जाता है।
- गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के एक समूह द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में 1,621 मुरिया परिवार हैं।
सलवा जुडूम
- यह गैरकानूनी सशस्त्र नक्सलियों के प्रतिरोध के लिये संगठित आदिवासी/जनजातीय व्यक्तियों का एक समूह है। इस समूह को कथित तौर पर छत्तीसगढ़ में सरकारी तंत्र द्वारा समर्थित किया गया था।
- वर्ष 2011 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों को इस तरह से हथियार देने के विरुद्ध निर्णय सुनाया व सलवा-जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया और छत्तीसगढ़ सरकार को माओवादी गुरिल्लाओं से निपटने के लिये स्थापित किसी भी मिलिशिया बल को भंग करने का निर्देश दिया।
मुरिया जनजाति
- मुरिया भारत के छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले का एक स्थानीय आदिवासी, अनुसूचित जनजाति द्रविड़ समुदाय है। वे गोंडी लोगों का हिस्सा हैं।
- ये लोग कोया बोलते हैं, जो एक द्रविड़ भाषा है।
- उनका विवाह और समग्र जीवन के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण है। सबसे बड़ा उदाहरण घोटुल (एक कम्यून या छात्रावास) है, जिसका उद्देश्य मुरिया युवाओं में उनकी लैंगिकता को समझने के लिये एक वातावरण बनाना है।
आंतरिक रूप से विस्थापित लोग (Internally Displaced People- IDP)
- IDP ऐसे व्यक्ति विशेष या व्यक्तियों के समूह हैं जिन्हें विशेष रूप से सशस्त्र संघर्ष, सामान्यीकृत हिंसा की स्थितियों, उल्लंघनों, मानवाधिकार या प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के परिणामस्वरूप या उनके प्रभाव से बचने के लिये पलायन करने या अपने घरों या अभ्यस्त निवास स्थानों को छोड़ने के लिये बाध्य किया गया है और जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा को पार नहीं किया है।
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