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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 13 Dec 2022
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उत्तराखंड में जंगलों की आग बुझाने के लिये ग्रामीणों को मिलेगी प्रोत्साहन राशि

चर्चा में क्यों?

12 दिसंबर, 2022 को उत्तराखंड वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन के मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि वनाग्नि पर काबू पाने के लिये जन सहभागिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य में वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया जा रहा है। इसके लिये उन्हें प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया गया है।

प्रमुख बिंदु  

  • निशांत वर्मा ने बताया कि जंगलों की आग बुझाने के लिये ग्रामीणों को प्रोत्साहन राशि देने के प्रथम चरण में चीड़ बाहुल्य वन प्रभागों को योजना में लिया जा रहा है। इसमें वन पंचायतों का क्षेत्र भी शामिल होगा। इसके लिये वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया जा रहा है।
  • गौरतलब है कि राज्य के वनों में प्रतिवर्ष औसतन 2000 से 2200 वनाग्नि की घटनाएँ होती हैं। इनमें हर साल करीब तीन हज़ार हेक्टेयर से अधिक जंगल जल जाता है। वर्ष 2022 में अब तक वनाग्नि की 2,186 घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। इनमें 05 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुँचा, जबकि इससे पहले वर्ष 2021 में वनाग्नि की 2,780 वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की गई थीं। 
  • उन्होंने बताया कि बीते सालों में सर्दियों के मौसम में भी वनाग्नि की घटनाएँ हो चुकी हैं। इस समस्या से पार पाने के लिये पहली बार ग्राम पंचायत स्तर पर वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया जा रहा है। अभी तक तीन वन प्रभागों अल्मोड़ा, टिहरी और गोपेश्वर में 48 वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया जा चुका है। समिति में ग्रामीणों के साथ ग्राम पंचायतों, वन पंचायतों के सरपंच और वनकर्मियों को शामिल किया जा रहा है।
  • विदित है कि राज्य में कुल 11 हज़ार 300 वन पंचायतें हैं। इन्हें अस्थायी तौर पर आसपास के जंगलों की वनाग्नि से सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाएगी।
  • निशांत वर्मा ने बताया कि जंगल में आग लगने पर यदि यह समितियाँ तत्परता दिखाते हुए उसे बुझा देती हैं, तो उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह राशि कितनी होगी, इस पर अभी विचार किया जा रहा है। राज्य में वनाग्नि पर काबू पाने के लिये प्रतिवर्ष करीब 15 करोड़ रुपए के आसपास खर्च किये जाते हैं।

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उत्तराखंड राज्य (न्यायालयों द्वारा आजीवन कारावास की सजा से दंडित सिद्धदोष बंदियों की सजामाफी/समयपूर्व मुक्ति के लिये) स्थायी नीति, 2022 की अधिसूचना जारी

चर्चा में क्यों?

12 दिसंबर, 2022 को उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव गृह राधा रतूड़ी ने उत्तराखंड राज्य (न्यायालयों द्वारा आजीवन कारावास की सजा से दंडित सिद्धदोष बंदियों की सजामाफी/समयपूर्व मुक्ति के लिये स्थायी नीति, 2022 की अधिसूचना जारी की। 

प्रमुख बिंदु  

  • उत्तराखंड राज्य (न्यायालयों द्वारा आजीवन कारावास की सजा से दंडित सिद्धदोष बंदियों की सजामाफी/समयपूर्व मुक्ति के लिये) स्थायी नीति, 2022 के अंतर्गत आजीवन कारावास में बंद महिला और पुरुष कैदी समान सजा के बाद रिहा हो सकेंगे। रिहाई के लिये उन्हें अच्छे आचरण, अपराध की प्रकृति और आयु की कसौटी पर परखा जाएगा। उनकी 50 हज़ार रुपए के निजी मुचलके पर रिहाई हो सकेगी।
  • अपराध की प्रकृति के साथ बंदियों की रिहाई पर निर्णय होगा। यदि कोई बंदी गलती से रिहा हो जाता है तो उसे दोबारा जेल भेजा जा सकेगा। 13 से अधिक गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बंदियों को भी रिहाई मिल सकेगी।
  • इस नीति के तहत आजीवन कारावास के तहत अब अधिकतम 14 साल की सजा होगी। अभी तक महिलाओं के लिये 14 साल और पुरुषों के लिये 16 साल की सजा का प्रावधान था। लेकिन अब ऐसे सिद्धदोष महिला व पुरुष बंदी जिनकी बिना पैरोल के 14 साल और पैरोल के साथ 16 वर्ष की सजा पूरी हो गई है, उनकी सजा माफ हो सकेगी।
  • इसी तरह 70 वर्ष से अधिक आयु के बगैर पैरोल वाले बंदी 12 वर्ष और पैरोल पर रहे 14 वर्ष और 80 वर्ष से अधिक उम्र के कैदी बगैर पैरोल 10 वर्ष और पैरोल के साथ 12 वर्ष में रिहा हो सकेंगे। 
  • नीति के अनुसार ऐसे मामलों पर विचार करने के लिये प्रमुख सचिव या सचिव गृह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनेगी। इस कमेटी में प्रमुख सचिव या सचिव न्याय एवं विधि परामर्शी, प्रमुख सचिव या सचिव गृह और अपर सचिव गृह (कारागार) सदस्य होंगे, जबकि महानिरीक्षक कारागार सदस्य सचिव होंगे।  

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