बिहार में थारू और सुरजापुरी भाषा विलुप्त होने की कगार पर | बिहार | 13 Jun 2022
चर्चा में क्यों?
12 जून, 2022 को बिहार हैरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी (बीएचडीएस) के कार्यकारी निदेशक बिजॉय कुमार चौधरी ने बताया कि बिहार में बोली जाने वाली दो बोलियाँ- थारू और सुरजापुरी विलुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं।
प्रमुख बिंदु
- बिजॉय कुमार चौधरी ने कहा कि बीएचडीएस ने क्षेत्र में जाकर गहन और विस्तृत जाँच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। उन्होंने कहा कि थारू भाषा विलुप्त होने के कगार पर है, जबकि सुरजापुरी में विविधताएँ देखी जा रही हैं।
- विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यदि इन्हें पुनर्जीवित करने के लिये कदम नहीं उठाए गए, तो ये दोनों भाषाएँ भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बांग्ला में घुल-मिल जाएंगी।
- थारू भाषा भोजपुरी और मैथिली के मेल से बनी है और यह थारू समुदाय द्वारा मुख्यरूप से पश्चिमी और पूर्वी चंपारण ज़िलों में बोली जाती है। सुरजापुरी भाषा बांग्ला, मैथिली और हिन्दी के मेल से बनी है और इसको बोलने वाले मुख्यरूप से राज्य के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया ज़िलों में रहते हैं। इस भाषा को ‘किशनगंजिया’ नाम से भी जाना जाता है।
- राज्य सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग की एक शाखा के रूप में कार्यरत् बीएचडीएस बिहार की मूर्त और अमूर्त विरासत के संरक्षण एवं प्रचार के लिये काम करती है।
- गौरतलब है कि समुदाय के रूप में थारू लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में स्थित हिमालय की तलहटी तथा नेपाल के दक्षिणी वन क्षेत्रों में रहते हैं। सुरजापुरी भाषा बोलने वालों का एक बड़ा हिस्सा पूर्णिया ज़िले के ठाकुरगंज प्रखंड से सटे नेपाल के झापा ज़िले में रहता है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में सुरजापुरी भाषा बोलने वालों की कुल संख्या 18,57,930 है।